सुगन्ध एवं आहार का नवग्रहों के उपचार में महत्व

ग्रह शांति का सवोत्तम उपाय क्या हो, इस मामलें में ज्योतिष की अनेक धारणायें प्रचलित है। रत्न, मंत्र यंत्र, टोने-टोटके, रंग, दान तथा अनेक कर्मकाण्ड इस क्षेत्र में प्रचलित हैं। कुछ ज्योतिषियों ने उपचार की दुकानें खोल रखी है। उपाय काम करते भी है या नहीं यह भी एक उलझा हुआ प्रश्न हैं। मेरी मान्यता तो यह है कि उपाय वही किया जाये जिससे जातक को खोया आत्मविश्वास प्राप्त हो। हकीकत भी यही है कि कोर्ई भी ज्योतिषी तकदीर नहीं बदल सकता वह तो केवल मार्गदर्शन कर सकता है। ईश्वर के आगे शरणागत्ï हो जाओं यही श्रेष्ठï उपाय है ग्रहों की पीड़ा से बचने का।


ईश्वर  चिंतन के बाद यदि सबसे बड़ा कोई उपाय है तो यह कि ग्रहों की प्रकृति जानकर उनके अनुसार अपना आहार तथा सुगन्ध को अपनी नियमित दिनचर्या में सम्मिलित करना। आहार व सुगन्ध जीवन का अनिवार्य भाग है तो क्यों न इसे ग्रहों के अनुसार ग्रहण किया जाये। फलित ज्योतिष में रवि, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र तथा शनि प्रमुख ग्रहों के साथ राहु एवं केतु भी छायाग्रह के रूप में महत्वपूर्ण हैं। इन्हीं ग्रहों की प्रतिकूलता से बचने के लिए ग्रहशांति के विभिन्न उपाय प्रचलित है। हम केवल आहार एवं सुगन्ध की चर्चा करेंगे:-
रवि आत्मा स्वरूप है, अग्नि तत्व का ग्रह है। कटु रस रवि का प्रमुख गुण है। ज्योतिषीय उपाय आत्मविश्वास बढ़ाकर जातक को जीवन शक्ति देते है। रवि आत्म रूप है इसीलिए कहा जाता है कि बलवान रवि सब ग्रहों के दोष दूर कर देता है। रवि की अनुकूलता के लिये जातक को अपने आहार में केशर, गेहूँ, आम, सुरजना की फली, चिकने पदार्थ तथा शहद का उपयोग अवश्य करना चाहिये। केशर तथा गुलाब के इत्र या सुगन्ध का उपयोग करने से रवि की अनुकूलता प्राप्त होती है।


चन्द्रमा मन का कारक है तथा जल तत्व का प्रतिनिधि। मन की प्रसन्नता जीवन को आनन्दमय तथा स्वस्थ बनाती है। यह मानसिक शांति से भी संबंधित है। चंद्रमा की अनुकूलता के लिये गन्ना, सफेद गुड़, या खांड, दूध, दूध से बने पदार्थ, आईस्क्रीम, नमक तथा मिठाईयों को अपने आहार में निश्चित ही सम्मिलित करना चाहिये। चमेली तथा रातरानी का इत्र या सुगन्ध चंद्रमा की पीड़ा को शांत करती है।


मंगल अग्रि तत्व का ग्रह है तथा तीखा व चटपटा रस इसे प्रिय है। मंगल जीवन में उत्साह देता है मंगलकारी है इसीलिये यह मंगल    कहलाता है। मंगल की पीड़ा को कम करने के लिये जातक को अपने आहार में मूंग व मूंग की दाल, प्याज, चाय, गुड़, मसूर की दाल, अनाज, काफी, कोको, लाल सरसों, जौ तथा घी का उपयोग करना चाहिये। लाल चंदन का इत्र, तेल या सुगन्ध मंगल को प्रसन्न करती है। लोभान की सुगन्ध का भी उपयोग किया जा सकता है।
बुध पृथ्वी तत्व का तथा मिश्र रस प्रधान ग्रह है। बुध को इलायची सर्वाधिक प्रिय है।

 

 यूकेलिप्टस्ï, इलायची तथा चम्पा की सुगन्ध भी बुध को प्रिय है। चम्पा का इत्र या तेल से स्नान करना बुध की दृष्टि से उत्तम है। मटर, ज्वार, मोंठ, कुलथी, हरी दालें, अमरूद व हरी सब्जियाँ बुध की प्रसन्नता के लिये आहार में सम्मिलित करना चाहिये।


बृहस्पति आकाश तत्व तथा मधुर रस का प्रतिनिधि तथा समृद्घि का दाता है। बृहस्पति की कृपा के लिये आहार में चना, चनादाल, बेसन, मक्का, केला, हल्दी, सेंधानमक, पीली दालें तथा फल को सम्मिलित करना चाहिए। पीले फूलों की सुगन्ध, केसर तथा केवड़े का इत्र भी बृहस्पति की कृपा दिलवाता है। गुग्गल का प्रयोग भी किया जा सकता है।


शुक्र जल तत्व, खट्टा रस तथा सुगन्ध प्रिय ग्रह है। यह काम जीवन पर आधिपत्य रखता है। यही कारण है कि जब शुक्र अस्त होता है तब विवाह के मुहूर्त नहीं होते हैं। चावल, दही, त्रिफला, दालचीनी, खुरमानी, कमलगट्टे, मिश्री, मूली तथा सफेद सलगम का उपयोग आहार में करने से शुक्र प्रसन्न होते हैं। सफेद पुष्प, चंदन तथा कपूर की सुगन्ध लाभदायी  है। चंदन का लेप तथा तेल में कपूर डालकर उपयोग करना श्रेष्ठï है। शुक्र सुगन्ध प्रिय है लेकिन चम्पा, चमेली तथा गुलाब की तीक्ष्ण सुगन्ध काम बिगाड़ देती है।


शनि वायु तत्व तथा मोक्ष का कारक है। इसे तीखे रस पसंद है। शनि बहुत ही दयालु ग्रह है। यह तो ज्योतिषी बंधुओं की कृपा है कि उन्होंने शनि के बुरे परिणामों का हौआ खड़ा कर रखा है। जातक की शनि की कृपा के लिये आहार में तिल, उड़द काली मिर्च,अलसी एवं मूंगफली का तेल, अचार, लोंग, तेजपात तथा काले नमक का उपयोग अवश्य करना चाहिये। कस्तूरी, लोभान, सांैफ की सुगन्ध शनि को प्रिय है अत: जातक को इनका उपयोग करना चाहिये।


राहु को शनिवत् तथा केतु को मंगल की तरह माना जाता है फिर भी राहु-केतु की पीड़ा में उड़द, तिल, गुड़ तथा रसें राहत देती है। लोभान व कस्तूरी प्रिय है। काली गाय का घी विशेष राहत देता है।


चन्द्र एंव शनि की संयुक्त पीड़ा में बिल्वफल उपयोगी है। मंगल-शुक्र की संयुक्त पीड़ा चंदन से कम होती है। रवि एवं चन्द्रमा को सदैव स्मरण करने से आत्मा व मन को आनंद प्राप्त होता है। नवग्रह की शांति के लिये शहद, घी, अर्क, पलाश, खदिर, अपामार्ग, अश्वगंध, उदुम्बर, शमी, दूर्वा तथा कुश का चूर्ण  धूप में मिलाकर घर में धूप देना तथा सुगन्ध प्राप्ति करना उत्तम है।


हर्षल, नेपच्चून एवं प्लूटों का जातक पर बहुत ही धीमा प्रभाव होता है। शेअर तथा सट्ïटाबाजार से संबंधित जातकों को इनकी कृपा आवश्यक होती है।  शेअर बाजार व व्यापारियों को गुलाब तथा चंदन का उपयोग उत्तम होता है। ग्रहों की पीड़ा को ज्योतिषी से जानिये तथा उपचार स्वयं कीजिए। आत्मविश्वास बढ़ेगा तथा परेशानियों का सामना करने की हिम्मत प्राप्त होगी।

आचार्य पं. रामचन्द्र शर्मा ”वैदिक’