दैविक रूप से हनुमान का अवतरण दिवस चैत्र पूर्णिमा

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मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के प्रति अटूट भक्ति के लिए प्रसिद्ध रामायण के प्रमुख पात्र श्रीराम भक्त हनुमान न केवल अपनी अद्वितीय शक्ति ,निष्ठा और बुद्धि के लिए लोकख्यात हैं, बल्कि वे साहस, निःस्वार्थता, समर्पण व धार्मिकता के प्रतीक के रूप में भी जाने जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि अष्टचिरंजीवियों में शामिल हनुमान का अवतरण त्रेतायुग के अंतिम चरण में भगवान श्रीराम की सेवा के लिए चैत्र पूर्णिमा तिथि और मंगलवार के दिन हुआ था। इसलिए प्रतिवर्ष चैत्र पूर्णिमा को हनुमान जयंती मनाए जाने की पौराणिक परिपाटी है। वर्तमान वर्ष 2024 में चैत्र पूर्णिमा 23 अप्रैल दिन मंगलवार को पड़ने के कारण इस दिन हनुमान जन्मोत्सव मनाई जाएगी। हनुमान के नामकरण से संबंधित प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार इन्द्र के वज्र से हनुमान की ठुड्डी अर्थात हनु टूट गई थी। इसलिए उनको हनुमान का नाम दिया गया। हनुमान का शरीर बज़्र की भांति कठोर होने के कारण उन्हें बजरंग बली के नाम से भी जाना जाता है। मारुति, अंजनि सुत, पवनपुत्र, संकटमोचन, केसरीनन्दन, महावीर, कपीश, शंकर सुवन आदि उनके ही नाम हैं। हनुमान के गुरु इनकी माता, भगवान शंकर, भगवान सूर्य और ऋषि मातंग थे। मान्यता के अनुसार हनुमान भगवान शिव के अवतार हैं। उन्हें शिव का ग्यारहवां रुद्रावतार माना गया है, जो अत्यंत बलवान और बुद्धिमान हैं। भगवान शिव का अवतार होने के कारण बचपन से ही उनको दैविक शक्तियां प्राप्त थीं। हनुमान को पवन देव का आशीर्वाद प्राप्त है, इसलिए उन्हें पवन पुत्र के नाम से भी जाना जाता है। रामायण काल में हनुमान ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के साथ मिलकर सीता माता की खोज की थी और लंका नरेश दुष्ट राक्षस रावण को परास्त करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

 

वाल्मीकि रामायण, रामचरित मानस और श्रीराम से संबंधित अन्य ग्रंथों में हनुमान के संबंध में वृहत वर्णन प्राप्य हैं। वाल्मीकि रामायण के किष्किंधाकांड 4/66 में हनुमान के जन्म व जन्म स्थान का वर्णन अंकित है। कथा के अनुसार माता सीता की खोज में समुद्र के किनारे सभी वानरों के पहुंचने पर यह प्रश्न आ उपस्थित हुआ कि लंका जाने के लिए समुद्र कौन पार करेगा? इस बात को लेकर सभी संशयित थे। इस पर जाम्बवंत ने हनुमान को समुद्र पार कर लंका जाने के लिए उत्साहित करते हुए उन्हें हनुमान के दिव्य जन्म की कथा सुनाई। हनुमान की दिव्य जन्म की कथा सुनाते हुए जाम्बवंत वाल्मीकि रामायण किष्किंधाकांड 4/66/8 में कहते हैं कि उनकी माता अंजना स्वर्ग की श्रेष्ठ अप्सरा पुंजिकस्थला थी, और वानरराज केसरी की पत्नी हैं। तीनों लोकों में अपनी सुंदरता के लिए विख्यात पुंजिकस्थला को एक शाप के कारण पृथ्वी पर एक वानरी के रुप में जन्म लेना पड़ा, जो कभी भी अपना रुप बदल सकती थीं। इसके आगे 4/66/10-11 में हनुमान की माता अंजना के पिता व मायका वालों का परिचय देते हुए जाम्बवंत कहते हैं कि हे हनुमान – अंजना कुंजर नामक वानर राज की पुत्री के रुप में जन्म लेती हैं। एक बार जब वह आभूषण, गहने आदि धारण कर और सुंदर मालाएं पहन कर एक पर्वत की चोटी की तरफ जा रही थी, तब 4/66/12-13 के अनुसार अचानक उनके वस्त्रों को पवन अर्थात मारुत अर्थात हवा ने उड़ा दिया। और पवन उनके आंतरिक अंगों में प्रवेश कर गए। 4/66/16 के अनुसार पवन के इस प्रकार उनके आंतरिक अंगों में प्रवेश करने पर अंजना ने पूछा कि कौन वह अदृश्य शक्ति है, जो उनके एक पतिव्रत होने की इच्छा को तोड़ रहा है? इस पर पवन देव ने कहा कि मैंने आपका अपमान नहीं किया है। मैं सभी में प्रवेश करने वाला पवन देव हूं। मैंने आपके अंदर दैविक रुप से प्रवेश किया है, जिससे आपको एक महान और तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति होगी। इस कथा में आगे स्पष्ट किया गया है कि हनुमान की माता अंजना वानरराज केसरी की पत्नी थीं। और वानरराज केसरी ने हनुमान को अपने पुत्र के रुप में ही प्राप्त किया और उनका लालन पालन किया-

स त्वम् केसरिणः पुत्रः क्षेत्रजो भीम विक्रमः।।

मारुतस्य औरसः पुत्रः तेजसा च अपि तत् समः।

त्वम् हि वायु सुतो वत्स प्लवने च अपि तत् समः।।

 – वाल्मीकि रामायण किष्किंधाकांड 4/66/29- 30

अर्थात- जाम्बवंत ने कहा कि आप केसरी की पत्नी अंजना के महापराक्रमी पुत्र हैं। आप वायुदेव के औरस पुत्र हैं और आप वायुदेव के समस्त गुणों से युक्त हैं। आप उन्हीं वायुदेव के समान कहीं भी उड़ कर आ-जा सकते हैं।

 

वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड में भी हनुमान की जन्म कथा प्राप्य है। वहां ऋषि अगत्स्य के द्वारा भी हनुमान के जन्म की कथा कही गई है, जिसमें उन्हें वानरराज केसरी और वायुदेव दोनों का ही पुत्र बताया गया है। वाल्मीकि रामायण उत्तरकाण्ड 7/35/19-20 में कहा गया है-

सुवर्णदत्तवरस्वर्णः सुमेरुर्नाम पर्वतः।

यत्र राज्यं प्रशास्त्यस्य केसरी नाम वै पिता।।

तस्य भार्या बभूवेष्टा अंञ्जनेति परिश्रुता।

जनयामास तस्यां वै वायुरात्मजमुत्तमम् ।।

– वाल्मीकि रामायण उत्तरकाण्ड 7/35/19-20

अर्थात- भगवान सूर्य के वरदान से जिसका स्वरुप सुवर्णमय हो गया है, ऐसा एक सुमेरु नाम से प्रसिद्ध पर्वत है, जहां हनुमान के पिता केसरी राज्य करते हैं।

उनकी अंजना नाम से विख्यात प्रियतमा पत्नी थीं। उनके गर्भ से वायुदेव ने एक उत्तम पुत्र को जन्म दिया।

 

इस कथा से ऐसा प्रतीत होता है कि वायुदेव जहां हनुमान के जैविक पिता हैं, वहीं केसरी उनके मानस पिता हैं। महाभारत में भी हनुमान के जन्म की कथा अंकित है। महाभारत के वन पर्व में महावीर हनुमान और भीमसेन की मुलाकात होने पर हनुमान अपना परिचय वानरराज केसरी और वायुदेव दोनों के पुत्र के रुप में देते हुए कहते हैं कि कमलनयन भीम! मैं वानरश्रेष्ठ केसरी के क्षेत्र में जगत के प्राणस्वरुप वायुदेव से उत्पन्न हुआ हूं। मेरा नाम हनुमान वानर है।

वाल्मीकि रामायण किष्किंधाकांड 4/66 में जाम्बवंत कथा में आगे कुछ और ही तथ्य प्रस्तुत करते हुए प्रतीत होते हैं। इसके आगे अंकित कथा से यह स्पष्ट हो जाता है कि महावीर हनुमान का जन्म माता के गर्भ से नहीं हुआ था, बल्कि वे प्रगट हुए थे। और वे एक गुफा में दिव्य रुप से पाये गये थे। वाल्मीकि रामायण किष्किंधाकांड 4/66/20 में कहा गया है-

एवम् उक्ता ततः तुष्टा जननी ते महाकपेः।

गुहायाम् त्वाम् महाबाहो प्रजज्ञे प्लवगर्षभ।।

– वाल्मीकि रामायण किष्किंधाकांड 4/66/20  

अर्थात- हे महाकपि हनुमान! जब पवनदेव के वरदान को तुम्हारी माता ने सुना तो वह  प्रसन्न और अनुग्रहित हो गईं। तब तुम्हारी मां ने तुम्हें दिव्य रुप से तुम्हें गुफा में पाया।

 

रामायण के वैदिक विद्वानों के अनुसार इस श्लोक में आये प्रजज्ञ शब्द के गहरे अर्थ है। प्रजज्ञ और प्रजनन में अंतर होता है। प्रजज्ञ का अर्थ होता है- पाया जाना। अर्थात हनुमान का जन्म नहीं हुआ था। वे पाये गए थे, अथवा प्रगट हुए थे या फिर दैविक रुप से उनका अवतरण अर्थात आगमन हुआ था। वाल्मीकि रामायण के सुंदरकांड में महावीर हनुमान लंका में माता सीता को अपना परिचय देते हुए अपने जन्म के बारे में कथा सुनाते हुए कहते हैं-

माल्यवान नाम वैदेहि गिरीणाम् उत्तमो गिरिः।

 ततो गच्छति गो कर्णम् पर्वतम् केसरी हरिः।।

स च देव ऋषिभिः दृष्टः पिता मम महाकपिः।

तीर्थे नदी पतेः पुण्ये शम्ब सादनम् उद्धरत्।।  

तस्य अहम् हरिणः क्षेत्रे जातो वातेन मैथिलि।

हनूमान् इति विख्यातो लोके स्वेन एव कर्मणा ।।

– -वाल्मीकि रामायण सुंदरकांड 5/35/80-82

अर्थात-विदेहनंदिनी! पर्वतों में माल्यवान नाम से प्रसिद्ध एक उत्तम पर्वत है। वहां केसरी नामक एक वानर निवास करते थे। एक दिन वो वहां से गोकर्ण पर्वत पर गए। महाकपि केसरी मेरे पिता हैं। उन्होंने समुद्रतट पर विद्यमान उस पवित्र गोकर्ण तीर्थ में देवर्षियों की आज्ञा से शम्बसादन नामक दैत्य का संहार किया था। मिथिलेश कुमारी! उन्हीं कपिराज केसरी के गर्भ से वायुदेवता के द्वारा मेरा जन्म हुआ है और मैं लोक में अपने ही कर्म के द्वारा हनुमान नाम से विख्यात हूं।

इस श्लोक में हनुमान स्वयं माता सीता से अपने पिता, उनके राज्य तथा उनके पिता द्वारा गोकर्ण तीर्थ क्षेत्र में शम्बसादन दैत्य के संहार के पराक्रम बारे में बतलाते हैं। माता सीता को अपने जन्म के बारे में भी बताते हैं। फिर भी इस कथा में हुनमान के जन्म स्थान के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है कि उनुमान का जन्म किस स्थान पर, किस राज्य में हुआ था। जिसके कारण आज भी उनके जन्म स्थान को लेकर कई राज्यों के मध्य विवाद है कि हनुमान का जन्म स्थल उनके राज्य में है।

 

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