माँ छिन्नमस्तिका

0

श्री श्री माँ छिन्नमस्तिका देवी रजरप्पा पीठाधीश्वरी (सिद्धपीठ) वर्तमान में शाक्तपंथ के तांत्रिक मत का दूसरा जगत प्रसिद्ध स्थान है, क्योंकि प्रथम स्थान माँ कामरुप कामख्या (कामख्या) शक्तिपीठ को प्राप्त है। छिन्नमस्तिका (रजरप्पा) झारखंड राज्य की जनपद रामगढ़ में देवनगर दामोदर एवं नदी भैरवी के संगम पर संगम स्थल के निकट दामोदर के दक्षिण एवं भैरवी (भेड़ानदी) के पश्चिम में विराजमान है। कामख्या देवी असम राज्य के जनपद कामरूप में पहाड़ी  पर विराजमान हैं। बंगला भाषा यानी बंगाली में छिन्नमस्तिका को छिन्नमस्ता बोलते हैं परंतु झारखंडी भाषा   एवं हिंदी तथा संस्कृत भाषा में ‘छिन्नमस्तिकाÓ ही कहा जाता है। बौद्ध मत धर्म में इन्हें ‘देवी छिन्नमुण्डा वज्रवराही’ कहा जाता है।      


शाक्त मत के तंत्र शास्त्र में जो दस महाविद्याओं का वर्णन किया गया है, उनमें पांचवें स्थान पर माँ छिन्नमस्तिका रौद्र रूप में है। रूप चाहे कोई भी हो, मां अन्तत: मां ही होती है। यहां वे हृदय से सबके लिए दयालु व कृपालु हैं। मां श्रद्धालु भक्तों की सारी मनोकामना पूर्ण करने वाली, शत्रु बाधा दूर करने वाली तथा रोगों से मुक्ति दिलाने वाली हैं। माँ छिन्नमस्तिका की कृपा से जगतपालनहार भगवान विष्णु के अंशावतार भगवान परशुराम को अपार शक्ति प्राप्त हुई, वहीं योगी गुरु गोरक्षनाथ को अपार सिद्धियां। इन्हें प्रचण्ड चण्डिका भी कहा जाता है। देवी का प्राकट्य ही देवों व मानवों के  कल्याण के लिए हुआ है।


रजरप्पा तीर्थ में माँ का स्वरूप नग्नता लिए है जिसे गले एवं कमर तक मुण्ड-मालाओं ने ढंका हुआ है। एक हाथ में खण्डा व दूसरे हाथ में अपना ही कटा सिर लिए हुए है, कटे सिर से रक्त की तीन धाराएं निकल कर उनकी दोनों और खड़ी जया व विजया के मुख में और तीसरी रक्त-धारा उनके स्वयं के मुख में जा रही है। माँ नदी जल के प्रवाह के ऊपर अवस्थित कमल फूल के ऊपर लेटे हुए पुरुष और स्त्री युग्म के ऊपर खड़ी हंै जिनका दाहिना पैर आगे की ओर बढ़ता दिखता है। मानों माँ कह रही हैं कि जो भी इस जगत में कुछ भी वीरोचित कार्य करना चाहता है वह जल के ऊपर कमल की तरह संसार से निर्लिप्त रहकर तथा कामवासना को पैरों तले रौंदते हुए स्वयं का सिर भी काटकर स्वयं रक्तपान करे व अन्यों को भी करा सके तो वह कुछ भी करने में समर्थ हो सकता है। वह ऐसी माँ हैं जो अपने बच्चों व भक्तों के लिए अपना सिर भी काटकर अलग कर देती हैं और रक्तपान कराकर उन्हें तृप्त करती हैं।


इनके बारे में कथा है कि पृथ्वी पर असुरों का आतंक अत्यंत बढ़ गया था, दैत्य व दानव तथा राक्षस-निशाचर उनके ही साथ हो गए थे। संसार में मानव व देवजन उनसे त्रस्त थे। अत्याचार असहनीय था, तब भक्तों ने त्राहिमाम करते हुए अपनी रक्षा हेतु मातृ-शक्ति जगन्माता से प्रार्थना की। माँ शक्ति प्रचण्ड रूप में अवतरित हुईं और असुरों का संहार करने लगीं। उनका खण्डा लगातार प्रहार करने लगा। भक्तों की रक्षा के लिए वह व्याकुल थीं। उनकी क्षुधा भी तिरोहित हो गई। पापियों के संहार के क्रम में कुछ निर्दोष भी चपेट में आने लगे। पृथ्वी पर उथल-पुथल मच गई।


देवों ने परिस्थिति सम्भालने के लिए भगवान शिव से गुहार लगाई। तब भगवान महादेव (शंकर) देवी को टोकने-रोकने पहुंचे। मां ने उनसे कहा, ‘प्रभु, जोरों की भूख लगी है, कैसे क्षुधा शांत करूं? तब शिव जी बोले-आप स्वयं ब्रह्माण्ड की देवी हैं, स्वयं ही ‘शक्तिÓ है। आप अपना सिर काटकर स्वयं का रक्तपान कर लें, तृप्ति हो जाएंगी। माँ ने ऐसा ही किया।Ó  
एक अन्य कथा इस प्रकार है:- मंदाकिनी नदी में माँ अपनी सहेलियों के साथ स्नान कर रही थीं। भूख-प्यास सभी को लग गई। जया-विजया भूख से व्याकुल दिखीं। उन लोगों ने माँ से भोजन की मांग की। तब माँ ने उन्हें कुछ धैर्य रखने को कहा परंतु वे बेचैन हो गईं। तब माँ ने अपना सिर काटकर रक्त की एक-एक धारा जया एवं विजया के मुख में प्रवाहित कर दी और एक धारा स्वयं के काटे सिर के मुख में।


 रजरप्पा में माँ छिन्नमस्तिका की आकृति (प्रतिमा) एक ऊंचे टीले में दक्षिण की ओर मुख करके है, यहां अलग से प्रतिमा स्थापित नहीं है। इस टीले के ऊपर ही मंदिर निर्मित है और परिसर भी। मंदिर का द्वार पूरब की और है यानी भैरवी (भेड़ा) नदी की ओर। मंदिर से उत्तर की ओर देवनंद दामोदर तक सीढिय़ां गई हैं, जहां तांत्रिक घाट है। बगल में श्री माँ काली प्रक्षेत्र में अनेक मंदिर हैं। दक्षिणेश्वर काली मंदिर, नौ महाविद्या के नौ मंदिर, दुर्गा मंदिर, सूर्य मंदिर आदि। मुख्य मंदिर के बगल के मंदिर में 21 फीट ऊंचा विशाल शिवलिंग विराजमान है। भैरवी नदी के पूरब में भी अनेक मंदिर हैं। यहां अनेक आश्रम, श्री गुरु निवास परिसर, धर्मशाला, डॉक बंगला आदि भी हैं। दामोदर में नौका विहार की व्यवस्था है। झारखंड सरकार द्वारा अनेक प्रकार की संरचनाएं बनी हैं और बनाई जा रही हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *