त्वचा की सुन्दरता पर ग्रहण लगा देता है एक्ने का अभिशाप

एक्ने एक ऐसा रोग है जो त्वचा की सुन्दरता पर ग्रहण लगा डालते हैं। यह रोग चमड़ी का सौंदर्य नष्ट कर डालता है। इसका सबसे अधिक प्रकोप चेहरे पर ही होता है। कुछ लोग इसके प्रति लापरवाह रहते हैं और सोचते हैं कि यह अपने आप ही ठीक हो जाएंगे परन्तु समय पर सावधानी न बरतने के कारण कभी-कभी इस रोग का उपचार असाध्य भी हो जाता है।


एक्ने त्वचा पर सफेद मुंहासों, काले मुंहासों एवं मवादों से भरे मुंहासों या सिस्ट यानी मवाद का प्रकोप होने की अवस्था तक बढ़ जाते हैं। जब एक्ने का प्रचंड प्रकोप होता है तब इस अवस्था को ‘एक्ने वल्गेरिस‘ कहा जाता है। इसके संक्रमण की कई अवस्थाएं होती हैं और यदि उपचार न किया जाय तो चर्म में सड़न उत्पन्न हो जाती है।


एक्ने के प्रकोप से सुन्दर त्वचा दाग-धब्बों से भर जाती है और कुरूप हो जाती है।
एक्ने का प्रभाव शरीर के अन्य भागों जैसे छाती, पीठ और गर्दन पर अधिक न होकर चेहरे पर ही अधिक होता है। इसका कारण यह है कि चेहरे पर तैल-ग्रंथियों का जाल बिछा रहता है जो त्वचा को तैलयुक्त बनाए रखता है।


हारमोन असंतुलन के कारण भी एक्ने निकलते हैं। इसमें सबसे पहले चमड़ों में छोटे-छोटे खूंट निकलते हैं और जब यह खूंट बड़े हो जाते हैं तो यह चेहरे पर स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं। सामान्यतः ये सफेद रंग के ही होते हैं पर जब यह वृद्धि पाते हैं और चमड़ी की सतह पर उभर आते हैं तो बाह्य प्रभाव से काले खूंट बन जाते हैं।


एक्ने संक्रामक रोग नहीं है। इसका बैक्टीरिया न तो शरीर में फैलता है और न ही शारीरिक सम्पर्क से दूसरे व्यक्ति को प्रभावित करता है। यह तैल गं्रंथियों के अधिक सक्रिय और असंतुलित हो जाने के कारण होने वाला त्वचा रोग है। जब तेल नलिका में अधिक तेल बनने लगता है तो यह ‘तेल सैक‘ यानी थैली में प्रवेश करता है और यह थैली फैलकर अपने में तेल एकत्रित करती रहती है।


त्वचा के रोम छिद्र जब अधिक तेल नहीं ले पाते तो वे अधिक दबाव के कारण चौड़े हो जाते हैं और ऐसी स्थिति में चेहरे पर एक्ने (मुंहासे) निकल जाते हैं। तैल-ग्रंथि की जमावट से और ग्लैण्ड कैनाल के बंद होने से एक्ने का आरंभ हो जाता है।


जब तैल-ग्रंथि से बहने वाला तरल पदार्थ गाढ़ा हो जाता है तो इससे रोमछिद्र बंद हो जाते हैं तो ऊपर एक कड़ा ढक्कन या आवरण बन जाता है। इसकी ऊपरी नोक जब हवा से प्रभावित होती है तो ‘आक्सीकरण‘ के प्रभाव के कारण काली पड़ जाती है। काले पड़ने के बाद ये ‘ब्लैक‘हेड्स‘ कहलाते हैं।


डॉ. सिंह के अनुसार मैलेनिन के एकत्रा हो जाने के कारण ही काली नोकें बन जाती हैं। मैलेनिन चर्म का एक तन्तु है। चेहरे के सफेद एक्ने भी इसी मैलेनिन के कारण सूर्य-प्रकाश से प्रभावित होकर काले पड़ जाते हैं।


अगर इन काले खूंटों को ऐसे ही छोड़ दिया जाया तो आसपास की त्वचा के तन्तुओं में विकार उत्पन्न होकर त्वचा में सूजन आ जाती है और सूजा हुआ भाग एक्ने का कारण बन जाता है। इन काले खूटों को निकालने की अपेक्षा तैल ग्रंथि का उपचार करना चाहिए क्योंकि जब तक तैल-ग्रंथियां सक्रिय रहेंगी, ये काले खूंट बनते ही रहेंगे।


मल, मूत्रा एवं रक्त का परीक्षण

मल-मूत्रा एवं रक्त परीक्षण करा लेने से एक्ने के संक्रमण या पेट के कीड़ों, पेट की कब्जियत आदि की जानकारियां मिल जाती हैं और उपचार का सही दिशा निर्देश भी प्राप्त हो जाता है।


आहारगत नियंत्राण

असंतुलित भोजन करने से, पानी का कम प्रयोग करने से, चॉकलेट, आइसक्रीम और अत्यधिक वसायुक्त भोजन करने से भी त्वचा पर प्रभाव पड़ता है। संतुलित एवं सुपाच्य पौष्टिक आहार लेते रहकर एक्ने पर काबू पाया जा सकता है। विटामिनों से युक्त भोजन, अल्पवसायुक्त भोजन, फल और हरी सब्जियों का आहार में अधिक प्रयोग करना चाहिए। यद्यपि उक्त भोजन से ही एक्ने पर नियंत्राण नहीं पाया जा सकता तथापि ये एक्नेरोधी होते हैं।


त्वचा की स्वच्छता

त्वचा की सफाई की ओर विशेष रूप से ध्यान देना आवश्यक होता है। सफाई रखने के लिए यह आवश्यक है कि दिन में दो बार औषधियुक्त साबुन से त्वचा को धोया जाए। तैलयुक्त त्वचा को किसी अत्यधिक प्रभावशाली ब्यूटीग्रेन से धोना चाहिए, जिससे त्वचागत अतिरिक्त तेल निकल जाये और चेहरे के रोमकूप बंद न हो सकें। तैलयुक्त त्वचा के होने पर चर्मरोग विशेषज्ञ से सलाह अवश्य ले लेनी चाहिए, तभी तीव्र औषधियुक्त साबुन का प्रयोग करें। चेहरे पर निकलने वाले ब्लैक हैड्स इस उपचार से साफ हो जाते है तथा भविष्य में नये खूंट नहीं निकलते।


चेहरे के लिए गुलाबजल काफी उपयोगी होता है। इसके लगाने से त्वचा कोमल बनी रहती है और उसके रंग में भी निखार आता है। यह उपचार भी पूर्ण नहीं कहा जा सकता क्योंकि अधिक बार चेहरा धोने से जलन भी होती है, साथ ही क्लोरीनयुक्त पानी के कारण चमड़ी सूख जाती है परन्तु चेहरा धोने से एक्ने सूखते हैं और संक्रमण का भय कम रहता है।
नोंचने पर एक्ने तीव्र गति से बढ़ते हैं। अगर आरंभ में ही काले खूंटों को निकाल दिया जाए तो एक्ने पर रोक लगाई जा सकती है। एक्ने को किसी कुशल चर्म विशेषज्ञ से ही निकलवाना चाहिए तथा विशेषज्ञ द्वारा बताई गई औषधि का ही प्रयोग करना चाहिए। ब्लैकहेड्स को अंगुलियों से दबाना अत्यंत हानिकारक होता है। ऐसा करने से चमड़ी के तन्तुओं को हानि पहुंचती है और संक्रमण के साथ ही चर्म कैंसर होने का भी खतरा बना रहता है।
तीव्र एक्ने के लिए ब्यूटी ग्रेन्स को गुलाब जल के साथ मिलाकर पेस्ट बना लिया जाए और त्वचा पर हल्के हाथ से मालिश की जाय तो न केवल रोमछिद्रों की ही सफाई होती है बल्कि इसके साथ-साथ मृत कोष भी साफ हो जाते है और त्वचा निखर उठती है।


प्रसाधनों के प्रयोग पर रोक

एक्ने पीड़ित लोगों को तरल प्रसाधन प्रयोग में लाने चाहिए। तैलयुक्त फेस क्रीम या क्लीनजिंग क्रीम या कोई अन्य चिकनाईयुक्त लोशन नहीं लगाना चाहिए। सौन्दर्य प्रसाधनों के अधिक प्रयोग से रोमकूप बंद हो जाते हैं। परिणाम स्वरूप तैल और कीटाणु चमड़ी के नीचे एकत्रा हो जाते हैं और त्वचा को हानि पहुंचाते हैं।


एक्ने से पीड़ित लोग जब त्वचा को नया निखार देने के लिए फेशियल करवाते हैं तो एक्ने और भी भयंकर रूप धारण कर लेता है। फेशियल के समय तैलीय क्रीम से मालिश करने से तैल ग्रन्थियां अधिक सक्रिय हो जाती हैं। एक्ने से पीड़ित लोग यदि फेशियल कराने की अपेक्षा औषधियुक्त मॉश्चराइजर प्रयोग में लायें तो अधिक उचित होता है। फूलों का अर्क, खीरा, शहद आदि का लेप मॉश्चराइजर का काम करता है।


फाउंडेशन से रोमकूप बंद हो जाते हैं जिससे त्वचा के लचीले तन्तु नष्ट होने लगते हैं और असमय ही झुर्रियां पड़ जाती हैं।


एक्ने से पीड़ित चेहरे के लिए शहद, दही और अंडे की सफेदी से बना फेशियल कंडीशनर प्रयोग में लाया जा सकता है। शहद तो प्राकृतिक मॉश्चराइजर होता है। दही में लैक्टिक एसिड होता है जिसके कारण त्वचा का रंग निखरता है तथा अंडे की सफेदी में तन्तु बनाने और त्वचा को कसावदार बनाने वाले तत्व होते हैं।


डर्माब्रेजन उपचार

एक्ने के निशान को हटाने के लिए डर्माब्रेजन कराया जाता है परन्तु इसे किसी कुशल चर्म विशेषज्ञ द्वारा ही कराया जाना चाहिए अन्यथा रोग के बढ़ने और घाव होने की संभावना अधिक रहती है।