गर्भावस्था के दौरान सूजन

स्त्रियों में गर्भावस्था के दौरान प्रायः पैरों या शरीर के अन्य भागों में सूजन देखने को मिलती है। आमतौर से लगभग पचास प्रतिशत स्त्रियों में यह समस्या रहती ही है।


इस समस्या को एक आम बात मानकर अक्सर महिलाएं टालती रहती हैं। बड़ी-बुजुर्ग महिलाएं भी ‘यह तो गर्भावस्था में हो ही जाता है‘ कहकर नजर अंदाज कर देती हैं। यही शोथ – सूजन कई बार गंभीर रूप धारण कर लेती है अतः इसे कभी भी नजर अंदाज नहीं करना चाहिए।


अंगुली से दबाने पर उस स्थान पर गड्ढा पड़ना इसकी प्रमुख पहचान होती है। कभी-कभी दबाने पर गड्ढ़ा नहीं भी पड़ता।


सूजन सामान्यतः गर्भावस्था के अंतिम तीन माह में शरीर के निम्न भाग में रक्त के कंसन्ट्रेशन के बढ़ने के कारण होती है जो एक सामान्य क्रिया है किन्तु इस प्रकार की सूजन पैर ऊपर करके आराम करने से ठीक भी हो जाती है।


इसके अतिरिक्त सूजन पैरों तक सीमित न रहकर शरीर के अन्य भागों पर भी आ जाती है। ऐसे में यह किसी गंभीर रोग की सूचक होती है। सूजन कभी कभी किसी रोग के प्रारंभिक लक्षण के रूप में तो कभी किसी गंभीर बीमारी के लक्षण के रूप में भी होती है। कुछ सामान्य लक्षण हम बता रहे हैं जिससे पाठक स्वयं भी शरीर में किसी कारणवश होने वाले परिवर्तनों से सावधान हो सकें।


कुछ रोग ऐसे हैं जिनमें सूजन अन्य लक्षणों के साथ विद्यमान रहती है। ये निम्न प्रकार से हैं।
रक्ताल्पता


रक्त में हीमोग्लोबिन की सामान्य मात्रा 12 से 16 ग्राम होती है किन्तु इससे कम होने पर खून की कमी से होने वाले लक्षण प्रकट होने लगते हैं जैसे कि सूजन के साथ-साथ थकान, शरीर का रंग सफेद या फीका होना, थोड़े काम से भी श्वास चढ़ना, भूख न लगना या अनियमित भूख होना, जी मिचलाना, सिरदर्द, चक्कर आना, चेहरे पर झाँई होना या आँखों के नीचे काले घेरे बनना इत्यादि।


यह स्थिति गर्भावस्था के प्रारंभ से लेकर अंत तक कभी भी आ सकती है। अतः नियमित रूप से हर माह चिकित्सक के परामर्श से रक्त परीक्षण कराते रहें।


हरी सब्जियाँ, दूध, फल, दालें इत्यादि एवं नियमित रूप से समय पर सन्तुलित व पौष्टिक आहार लेने पर रक्ताल्पता से बचा जा सकता है।


प्रोटीन की कमी

प्रोटीन की कमी से होने वाली सूजन प्रायः सारे शरीर पर ही होती है किन्तु सबसे पहले इसका आभास सुबह सोकर उठने पर चेहरे व आँखां के आसपास सूजन से होता है।
धीरे-धीरे रोग बढ़ने पर शरीर के अन्य भागों पर भी सूजन आ जाती है।
रक्त परीक्षण करने पर रक्त में एल्ब्युमिन की मात्रा कम पाई जाती है। मूत्रा की जाँच प्रायः सामान्य पाई जाती है। प्रायः प्रोटीन की कमी के साथ रक्ताल्पता भी पाई जाती है।
प्रोटीनयुक्त आहार जैसे अंडे, मछली, दूध, वनस्पति तेल, दालें, पनीर इत्यादि का भोजन में समावेश कर प्रोटीन के पाउडर भी  बाजार में उपलब्ध हैं जिन्हें चिकित्सक की सलाह से दूध में डालकर पीने पर भी प्रोटीन का सन्तुलन शरीर में बना रहता है।


केन्डिडोसिस

कभी-कभी केन्डिडा आल्बिकेन्स नामक फंगस के संक्रमण के कारण योनिप्रदेश के आसपास सूजन आ जाती है।


योनिमार्ग से दही सदृश्य स्राव, पेशाब में दर्द या जलन अथवा खुजली इसके प्रमुख लक्षण हैं।
इस प्रकार के लक्षण यदि पाए जाएँ तो तुरंत डाक्टर की सलाह लें व उचित उपचार बिना विलम्ब किए लें। भग प्रदेश की सफाई का विशेष ध्यान रखें।


वृक्क शोथ

गुर्दो में संक्रमण के कारण कई बार सुबह सुबह उठने पर चेहंरे पर या आँखों के नीचे सूजन दिखाई पड़ती है। यह रोग प्रायः गर्भावस्था से पूर्व भी विद्यमान होता है किंतु गर्भावस्था में बढ़ जाता है। मूत्रा परीक्षण करने पर मूत्रा में प्रोटीन, लाल व सफेद रक्तकण, एपिथिलियल सेल्स मिलते हैं। ब्लड यूरिया बढ़ जाता है। इस प्रकार के लक्षण दिखाई देने पर कभी भी लापरवाही न बरतें एवं तुरंत चिकित्सक से परामर्श लें।


हृदय रोग

कुछ स्त्रियों को गर्भावस्था से पूर्व ही हाई ब्लड प्रेशर रहता है एवं गर्भावस्था में अधिक कष्टप्रद हो जाता है। ब्लड प्रेशर की जाँच नियमित रूप से कराना अत्यावश्यक है। अत्याधिक चर्बीयुक्त भोज्य पदार्थ व अधिक नमक सेवन परहेज करना चाहिए।
एन्डोकार्डाइटिस व रुमेटिक हार्ट-डिसीज के कारण भी शरीर पर सूजन आ जाती है किंतु इनमें भी हृदय रोग के अन्य लक्षण जैसे ज्वर, दर्द श्वास हृदय का बढ़ना या हृदयावरण शोथ, आमवात इत्यादि भी पाए जाते हैं।


गर्भावस्था के दौरान नए रोग पैदा न हों व यदि पहले से ही कोई रोग हो तो वह बढ़ न जाए, इसके लिए हर माह चिकित्सक के परामर्श के अनुसार नियमित अंतराल पर ब्लड प्रेशर, रक्त व मूत्रा परीक्षण वजन व अन्य जरूरी जाँच कराते रहना चाहिए।


एक स्वस्थ शिशु के जन्म व सुरक्षित प्रसव के लिए उचित खानपान व विहार का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है।


शोथ या सूजन को एक आम बात समझ कर कभी-कभी नजर-अंदाज न करें। समय पर उचित देखभाल व चिकित्सा के द्वारा इन विकृतियों से निश्चित स्प से काफी हद तक बचा जा सकता है।