जानिये अपनी बेटी को

जैसे ही बेटियां किशोरावस्था में कदम रखती हैं, अक्सर माताओं के चेहरे पर परेशानी के भाव झलकने लगते हैं।


यह एक विशेष नहीं आम माताओं की समस्या होती है। कदली के फल जैसी या फिर नागर बेल जैसी बढ़ती बेटियों की काया उनकी रातों की नींद एवं दिन का चैन उड़ा बैठती है। दादी-नानी कहती हैं राम-राम पोती बड़ी हो गई और किसी को फिकर ही नहीं। मगर फिक्र किस मां-पिता या अभिभावक को नहीं होती।


कल तक घर आंगन में गुड्डे-गुडिय़ा का ब्याह रचाती रिंकी-पिंकी, सोनाली, शाहिदा, सिम्पल, डिम्पल के शरीर में जैसे ही बदलाव आना शुरु होता है, वैसे ही उनमें हृदय परिवर्तन भी खास बात हो जाती है।


गुड्डे-गुडिय़ा, चाबी वाले खिलौने से मन उचटने लगता है। एकांत में अपने आपसे बातें करना, बात-बात में शरमाते हुए फिसड्डी हंसी हंसना, आईने में स्वयं को देखकर कभी इतराना तो कभी शरमाना, उनकी खास अदा बनती जाती है और भावनाओं के अथाह सागर में वो गोते लगाने लगती हैं। यही उम्र होती है जब विपरीत लिंगी के प्रति मन में सहज ही आकर्षण महसूस होने लगता है।


चाहे वो मन से चाहें, अथवा न चाहे  14 से 16 की उम्र ही बड़ी हसीन और नाजुक होती है। वजह होती है खास। किशोरावस्था में लड़कियों के शरीर में हारमोन्स सक्रिय हो जाते हैं। उन्हीं की वजह से शारीरिक बनावट और ढांचे में बदलाव आना प्रारंभ हो जाता है। यही वजह है कि इस नाजुक दौर में लड़के लड़कियों का एक दूसरे के प्रति आकर्षित होना आम बात हो जाती है। इसी उम्र में जबकि लड़कियां बालिकाएं भी नहीं रहतीं ना ही युवतियां ही पूर्ण रूप से बन चुकी होती हैं, उनका मन चंचल भौंरे की तरह दौड़ायमान हो जाता है। पतंग की तरह आकाश में कुलाचें मारने लगता है और स्वयं सारे निर्णय लेने हेतु प्रयत्नशील। मगर अनुभव की कमी अपरिपक्व सोच कभी-कभी उन्हें मार्गच्युत भी कर देती है।


जब भी सयानी होती बेटी जब तब कमरा बंद करके अपने सपनों के घोड़े पर सवार रंगीन सपने बुनने लगे, या फिर हवाई रथ पर सवार कुछ-कुछ महसूसने लगे तब हर समझदार मां का कर्तव्य बनता है कि सयानी होती बेटी के मन की जानने की सफल कोशिश करें।
स्नेहिल, दोस्ताना व्यवहार, मृदुभाषिता, उसे मां पर विश्वास करने पर मजबूर करती है। तब वह मां पर अंधविश्वास करते हुए सब कुछ एवं सारा कुछ जो उसके मन में होता है उगल देती है।


कभी-कभी तो वह विचित्र-विचित्र प्रश्र भी करती है, वह ऐसा क्यों कहता है, वो ऐसा क्यों करता है या फिर ऐसा क्यों होता है आदि? मन के भेद परत दर परत मां के सामने खोलकर ही उसे चैन मिलता है।


सयानी होती बेटी के बारे में सर्तकता बरतना होशियारी ही नहीं वक्त का तकाजा भी होता है। जितना किशोर होती बेटी का पालन पोषण सही होना जरुरी होता है, उससे कहीं ज्यादा उसकी फिक्र करना भी। जैसे-


1. यदि मां को अपनी लाडली के चाल-चलन पर किसी भी प्रकार का शक हो तो उसके कमरे का जायजा लेना न भूलें।


2. लाड़ली की पर्सनल डायरी, किताबें आदि समय-समय पर चेक करती रहें।


3. सयानी होती बेटी को सगे संबंधियों के यहां भी ज्यादा देर तक अकेले ना छोड़ें। विशेषकर उस समय और जब रिश्तेदारी में भी समान उम्र के लड़के होने की बात हो। अनेक उदाहरण इस बात के गवाह हैं कि सगे रिश्तेदारों में भी…


4. जब भी ज्यादा देर के लिये घर से बाहर जाना हो जैसे पार्टी, सत्संग, धार्मिक उत्सव का आयोजन या फिर खरीददारी तो लड़कियों को साथ ही ले जाना चाहिए। अकेली लड़की का घर में भी अकेले रहना खतरों से खाली नहीं होता।


5. अगर आपको लगे कि बेटी ज्यादा देर फोन के पास मंडराती या चिपकी रहती है तो समझ जाइये कि उसे लवेरिया हो गया है। तब फोन की घंटी, घंटी न होकर आपके लिये तो वह खतरे की घंटी बन सकती है।


6. लड़की का माइण्ड डायवर्ट हो ऐसे  उपाय करना चाहिए।


7 पढ़ाई के बाद अगर बेटी खाली नजर आती है तो उसे घरेलू काम करने हेतु प्रेरित करना चाहिए। इसी तरह कुंकिंग, बागवानी, नृत्य, संगीत का शौक, पेटिंग के अलावा अध्यात्म में भी रूचि जागृत करना चाहिए। ईश भक्ति अगर सुबह शाम की जाए या करने की आदत डाली जाए तो मन मूल समस्या से आसानी से डायवर्ट हो सकता है। यही नहीं हावी कोर्सेस द्वारा भी बिटिया को व्यस्त रखा जा सकता है।


8. कम्प्यूटर पर चैटिंग करने की इजाजत तो कतई नहीं देनी चाहिए।


9 देश काल, मौसम के अनुकूल कपड़े वह पहने। मगर अधिक फैशनेबल भी न पहने, इसका भी ख्याल रखें।


10. हर समय पार्टी मेकअप भी वह ना करें, इसका भी ध्यान रखें।


11. बिटिया की सहेली एवं मित्रों के घर का पता, टेलीफोन नंबर वगैरह अपनी पर्सनल डायरी में लिखकर रखें।


12. ज्यादा देर तक उसे घर के बाहर अकेले रहने की कदापि इजाजत न दें।
जैसे ही उत्तर किशोरावस्था प्रारंभ होती है, बेटी के मन में भी ठहराव की स्थिति आने लगती है। वह अच्छा-बुरा समझने लगती है। तब उसे कम ही संरक्षण की जरुरत होती है। फिर भी बेटी तो शीशे की तरह होती है। संभालकर रखने वाली…. अत: सतर्क रहें, सचेत भी, तभी आप कुशल मां एवं मार्गदर्शिका की भूमिका निभा सकेंगी।

सरल जैन