बच्चों की परवरिश कैसे करें?

किसी ने सच ही कहा है कि बच्चों को जन्म देना बहुत आसान है, लेकिन उनकी उचित परवरिश करना बहुत मुश्किल। बच्चों का व्यक्तित्व बहुत कोमल और नाजुक होता है उसे हम जिस दिशा में मोडऩा चाहें वह उसी दिशा में मुड़ जाता हैं और जिस सांचे में ढालना चाहें वह ढल जाता है।
वास्तव में यदि हम बचपन से ही बच्चों के मन में अच्छे संस्कारों का समावेश करेंगे, उन्हें सही-गलत का अन्तर समझायेंगे, उनमें नैतिकता के गुणों को समाहित करेंगे तो कोई संदेह नहीं कि उनका पूर्ण विकास न हो पाये। माना कि बहुत से बच्चों की प्रवृत्ति, उनका स्वभाव अलग होता है, उन्हें समझाने और उनको समझने में हमें समय लगता है। मेरे स्वयं के दोनों बच्चे बेटी, बेटा बला के शैतान है,   लेकिन बच्चे तो हमारे ही हैं और उनकी अच्छी परवरिश करना और उन्हें अच्छा इंसान बनाना भी तो हमारा ही कत्र्तव्य है। इस लेख में अभिभावकों के लिए कुछ उपयोगी टिप्स दिये गये हैं, जो आपके बच्चों की अच्छी परवरिश में उपयोगी सिद्ध होंगे-
बाल मनोविज्ञान का ज्ञान अर्जित करें- अभिभावकों को बाल मनोविज्ञान का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है। माता-पिता को अपने बच्चों की रुचियों और व्यवहार का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए, क्योंकि यह ज्ञान ही बच्चों को अनुकूल परिस्थितियां प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। माता-पिता का कत्र्तव्य बनता है कि वह बच्चों के कोमल मन पर कभी किसी प्रकार का आघात न पहुंचने दें। न ही बच्चों पर किसी प्रकार के कार्य और इच्छा का दबाव डालें जिससे कि बच्चों की आकांक्षाएं ही दम तोड़ दें और उनका पूरा व्यक्तित्व ही कुंठित हो जाये। बाल-मनोविज्ञान के ज्ञान से बच्चों का व्यवहार समझने में सरलता होती है।
प्रोत्साहित करें- माता-पिता को चाहिए कि वह अपने बच्चों की अच्छी आदतों को प्रोत्साहित करें, उनके अच्छे कार्यों की सबसे प्रशंसा करें। समय-समय पर गिफ्ट आदि देकर उन्हें प्रोत्साहित करें उन्हें सच बोलने को प्रेरित करें। ऐसा करने से वह जीवन में सदैव सच बोलने और नैतिक मूल्यों को बिना किसी भय के स्थापित रखने का प्रयास करेंगे। ज्ञात रहे अपने बच्चों को सच बोलने का पाठ पढ़ाने से पहले आपको स्वयं सच बोलने की आदत डालनी होगी।
अच्छे-बुरे स्पर्श की जानकारी दें- बाल यौनशोषण की बढ़ती हुई घटनाओं को देखते हुए माता-पिता का कत्र्तव्य बनता है कि वह अपने बच्चों को अच्छे और बुरे स्पर्श के बारे में जानकारी दें। साथ ही अपने बच्चों के व्यवहार पर भी विशेष ध्यान दें। बच्चों को शारीरिक शोषण के विषय में स्पष्टï रूप से समझाएं, बच्चों के साथ ऐसा रिश्ता बनायें कि बच्चे स्वयं ही बिना झिझक के आपसे अपनी खुशियां और समस्याएं शेयर कर सकें।
अन्तद्र्वन्द्व की भावना उत्पन्न न होने दें- बच्चों का सम्पूर्ण विकास तब तक संभव नहीं हो सकता, जब तक कि अभिभावक अपने सभी बच्चों के प्रति समदर्शी न हों। बच्चों के प्रति माता-पिता का व्यवहार समान होना चाहिए। व्यापक दृष्टि रखने वाले माता-पिता अपने बच्चों विशेषकर लड़के-लड़की में भेदभाव नहीं रखते। वह दोनों को समान सुविधायें प्रदान करते हैं। माता-पिता को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों के प्रति उनके व्यवहार में किसी भी प्रकार की असमानता व प्रतिद्वन्द्विता का समावेश नहीं हो। संयुक्त परिवार हो तो चाचा, ताऊ के भाई-बहिनों में भी किसी प्रकार के भेदभाव की भावना को नहीं आने देना चाहिए।
बच्चों से झूठे वादे न करें- माता-पिता इस बात का विशेष ध्यान रखें कि वह अपने बच्चों से कभी न झूठ बोलें और न ही उनसे झूठे वादे करें। झूठे वादे का बच्चे के मस्तिष्क पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है, जिससे बच्चा आपकी बात पर कभी विश्वास नहीं करेगा, इसलिए बच्चे से जो भी वादा करें खूब सोच-समझकर करें और उसे पूरा भी करें।
जिज्ञासाओं को शान्त करें- माता-पिता का यह कत्र्तव्य भी बनता है कि वह अपने बच्चों के मन में उठी जिज्ञासाओं का सदैव ही उत्तर देकर शान्त करें। परिवार में जहां तक हो खुली बातचीत का वातावरण बनायें, ताकि बच्चे अपनी जिज्ञासाओं को शान्त करने के लिए इधर-उधर भटककर गुमराह न हों।
खेलने-कूदने के लिए प्रेरित करें- बच्चों के विकास और अच्छे स्वास्थ्य के लिए खेलना-कूदना बहुत आवश्यक है। जो बच्चे खुले वातावरण में खेलते-कूदते हैं उनका मानसिक और शारीरिक विकास उन बच्चों से अच्छा होता है जो दौड़-भाग भरे खेल-कूद के विपरीत घर के कमरे में कम्प्यूटर या वीडियो गेम में उलझे रहते हैं। आपका कत्र्तव्य बनता है कि बच्चों को उसी प्रकार से खेलने-कूदने दें जैसे कि आप अपने बचपन में खेलते-कूदते थे।
बच्चों को समय दें- बच्चों का सर्वांगीण विकास तब तक नहीं हो सकता, जब तक कि उन्हें माता-पिता के साथ रहने का पर्याप्त समय नहीं मिलेगा।
आज की व्यस्त जीवनशैली में नौकरी करने वाले माता-पिता के पास अपने बच्चों को देने के लिए समय नहीं होता, जिसके कारण बच्चे अनेक समस्याओं से ग्रस्त हो जाते हैं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि बच्चे को कभी अकेला महसूस न होने दें जैसे भी और जितना भी आपको अपनी व्यस्त जीवनशैली में से समय मिले, वह समय सिर्फ अपने बच्चों को दें।