महिलाएं क्या पढ़ती हैं

शैक्षिक पृष्ठïभूमि का किसी भी नारी की सोच और उसकी जागरुकता पर उतना ही असर पड़ता है जितना उसके सामाजिक और आर्थिक परिवेश का। पुरुष वर्ग की आमतौर पर यही धारणा होती है कि महिलाएं सिर्फ हल्की-फुल्की मनोरंजक किताबें ही पढ़ती हैं। यह धारणा पक्षपातपूर्ण है और सरासर गलत है।


एक वर्ग है उन शिक्षित गृहिणियों का जो सामाजिक गतिविधियों में पूरी दिलचस्पी रखती है, उनमें होने वाले बदलाव से प्रभावित भी रहती हैं। घर गृहस्थी संभालने के साथ वे अपनी अस्मिता के प्रति भी सजग रहती हैं। अखबार सिर्फ उनके पतिदेव ही नहीं पढ़ते वे भी पढ़ती हैं। पत्र-पत्रिकाओं से वे रहन-सहन की क्वालिटी कैसे बेहतर की जाए इसकी तलाश में रहती हैं। बच्चों के पालन-पोषण का सही ढंग, उनके मनोविज्ञान से संबंधित पुस्तकों द्वारा ज्ञान अर्जित कर समय का सदुपयोग करती हैं वे। इस वर्ग की स्त्रियां अपनी विशिष्टता बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील रहती हैं। पश्चिमी सभ्यता का असर इन पर पूरी तरह होता है इसलिए पश्चिमी सभ्यता से प्रेरित पठन सामग्री की ओर इनका रुझान होता है।


एक अन्य वर्ग की महिलाएं समाज में मेल-मिलाप की सक्रिय गतिविधियों के कारण अपना सामान्य ज्ञान बढ़ाने के फेर में रहती हैं और इसके लिए पुस्तकों का सहारा लेती हैं, क्योंकि जहां चार आंखें मिलीं और किसी सामान्य ज्ञान के विषय पर चर्चा होने लगी तो सभी एक दूसरे से बढ़कर अपनी नॉलेज दिखाना चाहती हैं, यहां प्रेस्टिज का सवाल भी रहता है।


चार दीवारी में रहने वाली स्त्रियां भी पढ़ने में काफी रुचि रखती हैं। पढ़कर ये ज्ञानार्जन शिक्षा आदि के साथ अपना मनोरंजन भी करती हैं। पुस्तक पढ़ते हुए थकान दूर करने के लिए मजे से आराम भी कर लेती हैं। ज्यादातर ये महिलाओं की मेग्जीन ही पढ़ती हैं, जिसमें उनकी रुचि के अनुसार सिलाई, कढ़ाई,  मेहंदी, चित्रकारी के नमूने, नए-नए व्यंजनों की विधियां तथा हल्की-फुल्की कहानियां, विभिन्न विषयों पर लेख आदि होते हैं। इस वर्ग में अधिकांश मध्यमवर्गीय महिलाएं होती हैं। आजकल दिन प्रतिदिन कामकाजी महिलाओं की संख्या बढती जा रही है। ज्यादातर ये नारी चेतना का प्रतिनिधित्व करतीं पुरुष की अनैतिकता को लेकर आक्रोश से भरी होती हैं। अपने कार्य से संबंधित जानकारी तो ये पुस्तकों से बढ़ाती ही हैं, अपने व्यक्तित्व को निखारने के लिए तत्पर भी रहती हैं। राजनीति, देश-विदेश में होने वाली महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में जानकारी भी ये रखती ही हैं। अपनी विशिष्टता का अहसास लिये आत्मविश्वास से पूर्ण ये महिलाएं अधिकतर उच्च शिक्षा प्राप्त मध्यमवर्गीय श्रेणी की होती हैं। कुछ प्रबुद्ध महिलाएं जिनकी साहित्य, संस्कृति में गहरी रुचि होती है, उनके लिए पुस्तकें पढ़ना समय बिताना नहीं, बल्कि जीने का ढंग है। इनके लिए पढ़ना उतना ही जरूरी है जितना कि भोजन। ये महिलाएं मानवीय संबंधों पर आधारित सामग्री में गहरी दिलचस्पी रखती हैं इसके अलावा दर्शन, मनोविज्ञान, राजनीति, स्वास्थ्य, साइंस आदि विषयों पर भी जानकारी बढ़ाती हैं।


निम्न वर्ग की महिलाएं चूंकि बहुत व्यस्त रहती हैं और उनके सीमित साधन उन्हें पुस्तकें खरीदने की इजाजत नहीं देते। पुस्तकों का बढ़ा हुआ मूल्य भी एक कारण है लेकिन फिर भी घर में बच्चे सस्ती फिल्मी मैग्जीन इधर-उधर दोस्तों से मांगकर ले आते हैं, उन्हें ये चाव से देखती हैं तथा सनसनीखेज खबरों की ओर आकृष्ट होती हैं।


इसमें दो राय नहीं कि जीवन की बोअरडम से ऊबी नारियां उसका तोड़ ढूंढ़ती किताबों की ओर आकर्षित होती हैं, क्योंकि यही सबसे सस्ता, खतरेरहित, आसानी से सुलभ होने वाला मनोरंजन है। आजकल मैग्जीन्स भी एक से एक सुंदर रंगीन ग्लैमरस फोटोग्राफ लिए ग्लॉसी पेपर्स में छप रही हैं जिसमें प्रतियोगिता की भावना उन्हें अपने को निरंतर इम्प्रूव करने को प्रेरित करती हैं। इनमें अप टू डेट जानकारी होती है, विभिन्न विषयों को लेकर। आज की व्यस्त जिन्दगी में इनमें दी गई खिचड़ी खबरें सबके लिए निगल पाना आसान होता है।