आदर्श पति होते नहीं बनाए जाते हैं

औरत में यह आदिम मनोवृत्ति होती है कि जो उसे आसानी से उपलब्ध हो उसकी वह कद्र नहीं जानती किन्तु जो उसे अप्राप्त नजर आता है उसे पाने की वह प्राण-पण से चेष्टा करती है।


अब यह बात देखें दुनिया में कुंवारों की क्या कमी है? पढ़ी-लिखी, सुंदर, स्मार्ट, अमीर लड़की को पसंद करके ब्याहने वाले बहुत मिल जाएंगे लेकिन उन सबको छोड़कर कई बार जब वह अपनी ही सखी या दूर की रिश्तेदार के या पड़ोसन के पति या आफिस के विवाहित सहकर्मी से फ्लर्ट करना शुरू कर देती है तो बात आगे बढ़ते और किसी निर्दोष स्त्री का घर टूटते देर नहीं लगती। कभी किसी केस में हो सकता है पत्नी की भी गलतियां हों लेकिन ऐसा कम होता है।


ऐसे मामले में पुरुष दोषी कम कहलाएगा क्योंकि उसकी फितरत ही ऐसी है लेकिन स्त्री से आशाएं ज्यादा रखी जाती हैं। क्योंकि ईश्वर ने उसे धैर्य और त्याग की मूरत बनाया है।
अगर पुरुष वास्तव में संस्कार हीन नहीं है, नैतिक मूल्यों को मानकर उन पर चलता है तो वह ऐसी स्त्री के जाल में नहीं फंसेगा। सोचने वाली बात यह है कि जिस औरत का केरेक्टर ही नहीं है उससे संबंध बनाकर क्या हासिल होगा। दु:ख की साथी पत्नी ही हो सकती है, फ्लर्ट करने वाली स्त्री नहीं।


मीनाक्षी और बाला दोनों सखियां एक-दूसरे पर जान छिड़कती थीं। मीनाक्षी साधारण रंगरूप की थी जब कि बाला किसी मॉडल से कम नहीं थी। कॉलेज के लड़के-लड़कियां उसकी तुलना ऐश्वर्या राय से किया करते थे। चांस की बात मीनाक्षी को बहुत ही स्मार्ट सजीला हैण्डसम पति मिला लेकिन बाला के मां-बाप ने सिर्फ पैसा देखकर जिस लड़के से उसकी शादी की उसका व्यक्तित्व पत्नी के सामने बहुत ही बौना लगता था।


शादी के बाद भी चूंकि दोनों सहेलियां एक ही शहर में ब्याही थीं, वह एक-दूसरे से मिलती रहीं। पहले-पहले तो मीनाक्षी के यौवन में डूबा पति केवल उसी का था लेकिन जब बाला ने स्वयं आगे होकर सहेली के पति पर डोरे डालकर उसे  फांसना चाहा तो वह कच्चे धागे से बंधा चला आया उसके आगोश में। मीनाक्षी को जब तक पता चला बहुत देर हो चुकी थी। उसका पति पूरी तरह बाला के जाल में फंस चुका था।


कई पुरुषों की तरह कई स्त्रियों को भी एक का बनकर रहना अच्छा नहीं लगता। उन्हें दूसरों के पति में वे सब बातें दिखाई देती है जिसे वे शिद्ïदत से चाहती हैं। अपने पति में तो उन्हें सिर्फ ऐब ही ऐब नजर आते हैं। वे यह भूल जाती हैं कि हर व्यक्ति में अगर खूबियां होती हैं तो खामियां भी होती हैं जैसे किसी में खामियां होती है तो खूबियां भी होती हैं, मुकम्मल तो कोई नहीं होता।


अगर आपने उपयुक्त पति का चयन किया है तो दाम्पत्य में तालमेल बैठाकर उसमें खुशियां, संतुष्टि हासिल करना काफी हद तक आपके अपने जीवन दर्शन और स्पष्टï नजरिए पर आश्रित रहता है। याद रखिए आदर्श पुरुष होते नहीं बनाए जाते हैं। अगर स्त्री अपनी आंखें खुली रखे तो विवाहेत्तर संबंधों की अनैतिकता तथा उससे होने वाली बर्बादी को वह देख सकेगी।


किसी की आहें लेकर कोई फल-फूल नहीं सकता। एक अपराध बोध हमेशा उसे कोंचता रहेगा।