शीत ऋतु में सेहत की देखभाल

हमारा देश उष्ण जलवायु वाला देश है और शीत-काल का समय अल्पकालीन ही रहता है। शीतऋतु प्राकृतिक रूप से स्वास्थ्य रक्षक और शरीर को बल पुष्टि प्रदान करने वाली होती है। इस ऋतु में रहन-सहन, खान-पान में लापरवाही और भूल-चूक कदापि नहीं करनी चाहिए।


हमारा शरीर पांच तत्वों से बना है यथा अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश। इन तत्वों के सहयोग से ही शरीर की सारी गतिविधियां चलती रहती हैं। अग्नि हमारे शरीर को जीवित और ऊर्जावान रखती है तथा खाये हुए पदार्थ को पचाती है।


शीतकाल में पौष्टिक आहार का सेवन करना बहुत जरूरी होता है क्योंकि मनुष्य ने प्रकृति के साथ इस कदर छेड़-छाड़ और मनमानी की है कि प्रकृति की व्यवस्था भी अस्त-व्यस्त हो गई है यानी मौसम भी बेईमान हो गया है।


शीतकाल में पाचन शक्ति बढ़ती है। पाचनशक्ति बढ़ने का एक मुख्य कारण यह है कि इस काल में रात लम्बी और दिन छोटे होते हैं यानी रातें लम्बी होने के कारण सोने का समय ज्यादा मिलता है। इससे खाया-पिया हजम हो जाता है। सुबह पेट भी ठीक से साफ हो जाता है। भूख खुल कर लगेगी तो आहार भी पर्याप्त मात्रा में खाया जायेगा और हजम भी होगा जिससे शरीर भी पुष्ट और बलवान होगा। यही शीतऋतु का शरीर और स्वास्थ्य पर पड़ने वाला उत्तम प्रभाव है।


ऐसी स्थिति में जो सबसे प्रमुख और महत्त्वपूर्ण बात ख्याल में रखने की है वह यह है कि ऐसी स्वास्थ्यवर्धक और बलपुष्टि प्रदान करने वाली ऋतु में पौष्टिक आहार अवश्य लिया जाए और दोनों वक्त सुबह शाम निश्चित समय पर ही लिया जाए ताकि शरीर को भूख न सहनी पड़े क्योंकि शीतऋतु में जठराग्नि बढ़ी हुई होती है जिसे शान्त करने के लिए ठीक समय पर भोजन करना बहुत जरूरी होता है और भोजन में भारी, पौष्टिक और तरावट वाले पदार्थों का पर्याप्त मात्रा में लेना जरूरी होता है जो बढ़ी हुई जठराग्नि का मुकाबला कर उसे शान्त कर सके वरना मामूली और हल्के पदार्थों को भस्म करके जठराग्नि शरीर की धातुओं को जलाने लगेगी।


शीतकाल में जब अच्छी ठण्ड पड़ने लगे, तब हमें अपने आहार में पौष्टिक, चिकनाई वाले मधुर, लवण, रसयुक्त, मांसवर्धक, रक्तवर्धक, बलवीर्य वर्धक पदार्थों को शामिल करना चाहिए जैसे दूध, घी, मक्खन, उड़द की दाल, रबड़ी मलाई, दूध चावल, दूध केला या दूध मखाने की खीर, हरी शाक सब्जी, सौंठ, अंजीर, पिण्ड खजूर, लहसुन, काले तिल, गाजर आंवला, शहद, पुराना गुड़ तथा मौसमी फल आदि।


रात में सोते समय भोजन करने के डेढ़ दो घण्टे बाद दूध अवश्य पीना चाहिए। एक गिलास दूध में आधा चम्मच पिसी सौंठ और दो से चार अंजीर के टुकड़े डालें और गरम करें। जब अंजीर नरम हो जाए तो उतार लें। अंजीर खूब चबा-चबा कर खाते जाएं और घूंट-घूंट करके दूध पी लें। इस तरह दूध तैयार कर सोते समय पूरे शीतकाल में दूध अवश्य पीना चाहिए।
लहसुन की 2 से 4 कलियां छील कर दूध में उबाल कर इसी दूध के साथ या ठण्डे पानी के साथ, कैप्सूल की तरह निगल लें। चाहें तो घी में तल कर खा लें। लहसुन वात प्रकोप का शमन करता है। हृदय को बल देता है।


ताजे दूध में 1-2 चम्मच शहद घोल कर सोते समय भी पी सकते है। दूध व शहद शरीर को पुष्ट व सुडौल बनाते हैं।


शीतकाल में रहन-सहन का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए क्योंकि खाया-पिया भी तभी हजम होगा जब रहन-सहन दिनचर्या और अच्छा आचरण होगा। प्रकृति का सहयोग दिया जाए यानी प्राकृतिक नियमों का पालन किया जाए तो प्रकृति भी सहयोग देती है।


प्रातः सूर्योदय होने से पहले शौच व स्नान से निवृत्त होकर 2-3 कि. मी. तक सैर करना या योगासन, व्यायाम करना, उबटन या तेल मालिश करके स्नान करना चाहिए।
देर रात तक जागना, सुबह देर तक सोये रहना, आलसी दिनचर्या, दिन में सोना आदि काम इस ऋतु में न करें।


इस ऋतु में रूखे-सूखे, हल्के, ज्यादा ठण्डे, बासे व खट्टे पदार्थों का सेवन न करें।