ताकि आवाज बन सके मधुर

आवाज व्यक्ति के लिए उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितने शरीर के बाकी अंग। आवाज से कई लोग अपना जीविकोपार्जन करते हैं। आवाज को व्यक्ति की मनोदशा का मापयंत्रा कहा जाता है क्योंकि आवाज़ पर उस व्यक्ति की मातृभाषा, सामाजिक वातावरण व मनोदशा का प्रभाव स्पष्ट रूप से प्रतिबिंबित होता है। हम अपने जीवन का 40 प्रतिशत हिस्सा वार्तालाप में बिताते हैं। सच तो यह है कि आवाज के बिना जीवन सूना है।


हमारी शारीरिक संरचना की भिन्नता के साथ-साथ हमारी आवाजों में भिन्नता होती है। किसी की बहुत मोटी (भारी आवाज) होती है तो किसी की पतली। वैज्ञानिक तरीके से देखें तो आवाज का संबंध गले की संरचना के साथ-साथ श्वसन क्रिया से भी है, इसलिए खांसी, गला-जुकाम होने पर आवाज एकदम भारी हो जाती है।


हमारी आवाज कई कारणों से प्रभावित होती है जैसे आयु, मनोदशा, स्वास्थ्य आदि। आवाज़ उम्र के साथ बदलती रहती है। बचपन में बच्चों की आवाज़ में सबसे ज्यादा मधुरता होती है जो उम्र बढ़ने के साथ कम होती जाती है। किशोरावस्था में कदम रखते ही लड़कों की आवाज़ लड़कियों की अपेक्षा अधिक भारी हो जाती है। 20-21 साल की उम्र तक आवाज भी पूरी तरह वयस्क हो जाती है। 70-75 साल की उम्र के बाद आवाज़ काफी खराब होने लगती है।


आवाज़ पर हमारी मनोदशा का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। जिनकी आवाज़ कर्कश होती है, वे तेज मिज़ाज व महत्त्वाकांक्षी माने जाते हैं। जो बहुत धीरे व मधुर बोलते हैं, वे सुलझे हुए व सफल व्यक्ति होते हैं। दुःखी या चिंताग्रस्त होने पर आवाज़ भारी भर्रायी हुई लगती है। नाक से बोलने वाले लोग ज्यादातर गुस्से वाली प्रवृत्ति के होते हैं।


स्वास्थ्य का भी हमारी आवाज़ पर काफी प्रभाव पड़ता है। सर्दी जुकाम या बुखार होने पर हमारी आवाज़ भारी हो जाती है। अधिक रोने पर हमारी आवाज बैठी-बैठी हो जाती है। अतः यदि ज्यादा दिन तक गला खराब रहता है तो तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए।
यदि आप अपनी आवाज़ को खराब होने से बचाना चाहते हैं और उसे हमेशा, सुरीला या प्रभावशाली बनाए रखना चाहते हैं तो उसकी नियमित देखभाल करें और कुछ सावधानियों को ध्यान में रखें।


सावधानियां

सर्दी-जुकाम या बुखार होने पर तुरंत इलाज करवायें। यदि एंटीबायोटिक दवाएं खा रहे हैं तो उसका कोर्स पूरा करें, बीच में छोड़ें नहीं। इससे बीमारी पुनः हो सकती है।
अधिक ठंडे, तले हुए व खट्टे पदार्थों का सेवन न करें।


गर्म पानी के गरारे नियमित रूप से करें। चुटकी भर नमक डाल कर गरारे करने से भी गला साफ होता है व कफ


दूर होता है। ध्यान रखें पानी ज्यादा गर्म न हो।
नशीले पदार्थों का सेवन न करें। इससे आवाज़ पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है।
यदि आप तरह-तरह की आवाजे़ं निकालते हैं तो ऐसा न करें क्योंकि इससे गले की मांसपेशियों में ज्यादा खिंचाव होता है।


ज्यादा शोर वाले वातावरण में चीख़ कर न बोलें। धीरे बोलने का प्रयास करें, या कम बोलें।
दबे होंठ से बोलना अशिष्टता की निशानी होती है। मुंह में कुछ चबाते हुए भी न बोलें।
जोर से गला न खंखारें। इससे गले की मांसपेशियां आहत हो सकती हैं।


गरम खाना खाने के तुरंत बाद ठंडे पानी का सेवन न करें। इससे गला जल्दी खराब हो सकता है।