पर्यटकों को खूब भा रहा है उत्तराखंड में दुर्लभ पक्षियों का जमावड़ा

देवभूमि उत्तराखंड न सिर्फ अपने देव-देवालय और मठ मंदिरों के लिए ही काफी प्रसिद्ध है बल्कि जैव विविधता के मामले में भी खूब चर्चित है। ऐसा इसलिए क्योंकि तेजी से पांव पसारती ठंड में उच्च हिमालय के कुछ दुर्लभ पक्षी छह महीने के शीतकालीन प्रवास के लिए मध्य हिमालय यानी उत्तराखंड में पहुंचने लगे हैं। देखने में यह भी आया है कि जैसे – जैसे ठंड रफ्तार पकड़ती जा रही है वैसे-वैसे देशी-विदेशी पर्यटकों के साथ-साथ प्रवासी परिंदों के आने की संख्या में भी इजाफा हो रहा है। इस तरह इन दिनों उत्तराखंड में बढ़ते प्रवासी पक्षियों की कलरव व चहचहाहट की गूंज हरेक पक्षी प्रेमियों का मन मोह रही है।
यकीनन ,खलिया टाप पर सूर्य की रोशनी में सोने से दमकते पंखों के कारण ये सभी परिंदे दर्शकों को अपनी और आकर्षित कर मनमुग्ध करने में कोई कसर शेष नहीं छोड़ रहे हैं। तभी तो विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी इनके दुर्लभ दर्शनों हेतु दूर दराज देशों से बड़ी संख्या में बर्ड वाचर्स यहां पहुँच रहे हैं।


बता दें कि इस बार इन समस्त विचित्रा निराले दुर्लभ पक्षियों का पसंदीदा स्थान उत्तराखंड के पिथौरागढ़ का खूबसूरत पर्यटक स्थल खलिया टाप बना है। सप्तरंगी रंगों की नायाब जादूगरी से सुसज्जित एवं प्रकृति की अनुपम कलाकारी से लबरेज खलिया टाप में दुर्लभ पक्षियों का सुंदर संसार का जमावड़ा समेटे दुनियाभर की नजरों से दूर, उच्च हिमालय में बसर करने वाले एक से बढ़कर एक सुंदर पक्षियों का आकर्षण लोगों में कुछ ज्यादा ही चर्चित हो रहा हैं। यहाँ के वन विभाग अधिकारियों का कहना है कि उच्च हिमालयी पक्षियों का आने वाले कुछ माह तक यही बसेरा होता है।इसीलिए सर्दियों के दिनों में यहां 90 फीसदी दुर्लभ पक्षियों का आना लगातार बदस्तूर जारी रहता हैं। उनके मुताबिक शीतकालीन ऋतु में विभिन्न ट्रांस हिमालयन प्रवासी पक्षी  इस स्थान पर विश्राम करने आते हैं। अक्टूबर से नवंबर और फरवरी से मार्च तक की अवधि तक वे यही डेरा डाले रहते हैं। इस तरह यहाँ 90 प्रतिशत दुर्लभ जलपक्षी, 11 प्रवासी पक्षी प्रजातियां आपस में कलरव करते बखूबी दिखाई देते हैं।


इनमें विंटर रैन, गोल्डन बुश रोबिन पक्षी के अतिरिक्त कोकलास फिजैंट इत्यादि प्रवासी पक्षियों को पर्यटक अपनी अदाओं के बलबूते आकर्षित कर सम्मोहित होते हुए बखूबी देखे जा सकते हैं जबकि वन बीट अधिकारी बताते हैं कि उत्तराखंड उच्च हिमालय में इन दुर्लभ पक्षियों को देखने हेतु अनेक देशों के विदेशी पर्यटक भ्रमण करने के लिए आने के कारण अच्छी खासी भीड़ एकत्रित हो जाती है। परिणामस्वरूप, यहां एक अनोखी रौनक देखने को मिलती है।


गौरतलब है कि उत्तराखंड में सिर्फ खलिया टाप ही नहीं अपितु कालामुनी, बिटलीधार, पातलथौड़ आदि लोकप्रिय स्थानों पर भी ये प्रवासी पक्षी अपना रैन बसेरा बना करतब दिखलाते मिलते हैं । शायद इनकी इसी खूबसूरती को देखने के लिए पर्यटकगण भी अपने साथ लाये कैमरे में उन्हें खूब कैद कर अपने संग लेकर जाना बेहद पसंद करते हैं। इतना ही नहीं, अब तो उत्तराखंड में अनेक पक्षी विशेषज्ञ भी यहां आकर अनेक पक्षियों के कई पहलु पर शोध करने लगे हैं। बकौल पक्षी विशेषज्ञ, निस्संदेह यह मौसम पक्षी प्रेमियों के लिए यह एक दुर्लभ और यादगार मौका बन सकता है जिसका लाभ सभी पक्षी प्रेमियों को अवश्य उठाना चाहिए। तो चलिए, अब नजर डालते हैं दूर दराज से आकर अपनी अद्भुत अदाओं से पर्यटकों के दिलों को घायल करने वाले उन अनगिनत प्रवासी पक्षियों के बारे में जिसको देखकर विदेशी सैलानियों को भी इनकी फोटो लेने हेतु अपना कैमरा चलाने के लिए मजबूर हो जाना पड़ता है।

 

मोनाल

हिमालय के मोर नाम से विख्यात ‘मोनाल’ एक अति सुन्दर और आकर्षक पक्षी होता है। शायद इसीलिए इसे उत्तराखंड का राज्य पक्षी होने का भी गौरव प्राप्त है। यह देखने में नीला भूरा और सिर पर तार जैसी कलगी होती है। वाकई अपने सुनहरे पंखों की वजह से विचरण करने  के कारण मोनाल पक्षी उत्तराखंड में खलिया टाप क्षेत्रा की शोभा को कई गुना अधिक बढ़ा देता है।

 

हिमालयन गिद्ध

सर्दियों के दिनों में प्रवासी पक्षियों के संग हिमालय की पहाड़ियों पर लंबी-लंबी उड़ान भरने वाला हिमालयन गिद्ध  इस दौरान पर्यटकों के बीच उत्तराखंड की शान में चार चांद लगाने में कतई पीछे नहीं हटता है।

 

विंटर रैन

पेड़ों की डाली -डाली पर फुदकने वाली  यह एक सबसे छोटी चिड़िया इन समय उत्तराखंड में आए दर्शकों  के मध्य काफी चर्चित होती है। इसकी उछलकूद और इसके सुनहरे पंख और अठखेलियाँ बरबस ही पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खींचने पर विवश करती हैं जिससे उन्हें अपना कैमरा उठाकर इसकी फोटो लेने हेतु मजबूर होना पड़ता है।

 

इंडियन नाइटजार

यह पक्षी पूरी रात भर एक सैनिक की भांति सक्रिय रहता है परन्तु भोर होते ही अपने ठिकाने पर वापस चला जाता है। इसकी सक्रियता दूरदराज से आये पक्षी प्रेमियों को खूब भाती है।

 

सैटर ट्रैगोपान

अब बारी आती है उच्च हिमालय के अति खूबसूरत पक्षी कहे जाने वाले ‘सैटर ट्रैगोपान’ की। इसके बारे में कहा जाता है कि यह अभी तक हिमालयन रेंज में केवल खलिया टाप क्षेत्रा में ही देखलाई देती है। अमूमन 2900 से 3400 मीटर की ऊंचाई में रहने वाला यह सैटर ट्रैगोपान फीमेल को आकर्षित करने के लिए गले को फुलाकर नीला कर लेता है। इस तरह इसकी आसमानी हरकतें भी विदेशियों का दिल जीतने में बेहद कामयाब होती है।

 

रेड बिल्ड मैगपी

यह प्रवासी पक्षी अपनी लाल चोंच के संग  हरकतें करता लोगों को खूब लुभाता दिखाई देता है जिसको देखकर निस्संदेह दर्शकगण खुद ब खुद इसकी ओर खिंचे चले आते है।

 

गोल्डन बुश रोबिन

उच्च हिमालय की यह छोटे आकार वाली चिड़िया भी अपनी अद्भुत अदाओं की वजह से उत्तराखंड में आये पर्यटकों को काफी रिझाती है।

 

कोकलास फिजैंट

2200 से 3000 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाने वाला कोकलास फिजैंट वैसे तो बेहद खूबसूरत है, लेकिन अपनी कर्कश आवाज के चलते बेहद ही बदनाम है।

 

रेड बुलफिंच

रेड बुलफिंच नाम की यह चिड़िया पांच मिश्रित रंगों का एक छोटा सा प्रवासी पक्षी है। परागों का रस चूसने वाली यह चिड़िया बेहद आकर्षक है। यह केवल 25 मीटर की ऊंचाई तक ही अपना बसेरा बनाती है जिसे देखना पर्यटक खूब पसंद करते है।


इसके अलावा हिमालयन बुलबुल, पहाड़ पर पाई जाने वाली कोयल, वुडपेकर, घुघुती, येलो बिल्ड मैपपी, रेड बिल्ड मैगपी आदि खूबसूरत रंग-बिरंगी रंगीन प्रवासी पक्षियों का लगा जमघट भी अपनी अद्भुत अठखेलियाँ द्वारा सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करते देखा जा सकता है जोकि वाकई सर्दियों के दिनों में उत्तराखंड में प्रवेश करने वाले सैलानियों का मन बरबस ही अपनी ओर खींच लेता है। फलस्वरूप, उत्तराखंड के प्रति लोगों का स्नेह और अधिक बढ़ने लगा है। तभी तो उत्तराखंड का लोकप्रिय गीत, ‘डाली-डाली फूलों की तुझको बुलाये रे मुसाफिर मेरे उत्तराखंड में..’ सुनकर विदेशी पर्यटक इससे वशीभूत हुए न चाहते हुए भी उत्तराखंड की ओर खिंचे चले आते हैं। और तो और उनके दिलों में यहाँ के प्रति एक विशेष आकर्षण बन गया है जिससे इसके गौरव और शान की गाथा में चार चांद लग गए हैं। ’