ईश्वर का द्वार ब्रह्म रंध्र तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करता है सहस्रार चक्र

नवरात्र के सातवें दिन भगवती दुर्गा के सप्तम स्वरूप कालरात्रि की पूजार्चना का विधान है। इस वर्ष 2024 में वासन्तीय नवरात्र का सातवां दिन 15 अप्रैल दिन सोमवार को पड़ने के कारण इस दिन देवी कालरात्रि की पूजा की जाएगी। कृष्णवर्णा कालरात्रि को देवी पार्वती के समतुल्य माना गया है। कालरात्रि शब्द दो शब्दों के मेल से बना है- काल और रात्रि। जिसमें काल का अर्थ है- मृत्यु, यह अज्ञानता को नष्ट करने का द्योतक है। और रात्रि अर्थात रात, यह माता का रात के अंधेरे के समान गहरे रंग का प्रतीक है। इस प्रकार देवी के नाम का शाब्दिक अर्थ अंधेरे को ख़त्म करने वाली है। कालरात्रि का रूप एक करूणामयी माता का अपनी सन्तान की सुरक्षा के लिए आवश्यकता होने पर अत्यंत हिंसक और उग्र स्वरूप धारण करने का है। अपने उग्र व हिंसक रूप में कालरात्रि के रूप में जानी जाने वाली माता दुर्गा का यह रूप महाकाली की ही एक अभिव्यक्ति है। एक तरफ माता का यह रूप बुरी शक्तियों के प्रति अत्यंत ही उग्र और हिंसक है, वही दूसरी ओर माता अपने भक्तों के प्रति अत्यंत करूणामयी, कोमल और को शांत है। माता इस रूप में अपने भक्तों को बुरी पाशविक शक्तियों का सामना करने का साहस और उनका नाश करने की शक्ति प्रदान करती है। पौराणिक मान्यतानुसार भगवती का सप्तम स्वरूप कालरात्रि माता का अति भयावह व उग्र रूप है, जिनकी उत्पत्ति पापियों का नाश करने के उद्देश्य से हुई थी। सम्पूर्ण सृष्टि में इस रूप से अधिक भयावह और कोई दूसरा रूप नहीं होने के बाद भी माता का यह रूप मातृत्व को समर्पित है। उनकी पूजा -उपासना की जाती है। माता का यह रूप ज्ञान और वैराग्य प्रदान करने वाला है। कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक होने के बावजूद वे सदैव ही शुभ फल देने वाली मानी जाती हैं। इसलिए इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। नवरात्र के  सप्तमी को माता कालरात्रि की पूजा के दिन साधक भक्त का मन सहस्त्रार चक्र में स्थित रहता है। उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः माता कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। माता कालरात्रि दुष्टों का विनाश और ग्रह, बाधाओं को दूर करने वाली हैं। जिससे साधक भयमुक्त हो जाता है। और उसे अक्षय पुण्य लोक की प्राप्ति होती है। देवी कालरात्रि जहाँ एक ओर पापियों का नाश करने वाली तो दूसरी ओर भक्तों को अभय देने वाली हैं।