हम तुमरो हरि ओज न जाना तुमहो महा तपी बलवाना

श्री गुरु गोबिंदसिंघजी महाराज ने दसम ग्रंथ में चौबीस अवतारों का वर्णन किया है, जिसमें शिवजी का उल्लेख ग्यारहवें अवतार के रुप में है। दसम ग्रंथ में बताया गया है कि राजा दक्ष प्रजापति की दस हजार पुत्रियां थी। राजा ने पुत्रियों हेतु स्वयंवर रचाया जिसमें उसने सभी पुत्रियों को आज्ञा दी कि ऊंच-नीच विचारों को छोड़कर योग्य वर से विवाह करो। आज्ञानुसार सभी नेे अपनी रुचिनुसार विवाह किया। चार कन्याओं ने कश्यप ऋषि से, कईयों ने चंद्रमा से व कईयों ने अन्य देशों के राजकुमारों से विवाह किया तथा गौरी (पार्वती) ने शिव (रुद्र) से विवाह किया।


कालांतर में राजा दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उसने सभी पुत्रियों को बुलावा भेजा परंतु रुद्र की विचित्र वेशभूषा को ध्यान में रखकर किसी ने भी उसका स्मरण तक नहीं किया। अत: दक्षप्रजापति ने शिव व गौरी को आमंत्रित नहीं किया। जब गौरी ने नारद के मुख से यह सुना तो वह मन में अत्यंत क्षुब्ध हो बिन बुलाए ही पिता के घर आ गई। उसका तन-मन भावावेश में जल रहा था। अत्यंत क्रोधित अवस्था में वह यज्ञ कुंड में कूद गई परंतु सती के प्रताप से यज्ञाग्नि ठंडी हो गई। सती पार्वती ने योग अग्नि प्रज्वलित की जिससे उसका शरीर नष्ट हो गया। नारद ने ध्यानमग्न शिवजी को बताया कि गौरी जीवित जल गई है। यह सुनकर शिव का ध्यान टूटा और वे अति क्रोधित हो उठे। सती स्थल पर पहुंचकर जब शिवजी ने यज्ञ कुंड में गौरी को जला हुआ देखा तो वे शोकाकुल हो अति क्रोधित होकर यज्ञ स्थल पहुंच गए। वहां शिवजी ने अपने त्रिशूल से अनेक राजाओं का संहार कर उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए। जिस पर भी त्रिशूल का प्रहार हुआ वह उसी स्थल पर मृत्यु को प्राप्त हो गया।


गुरु गोबिंदसिंघजी ने दसम ग्रंथ में उस समय के भयानक युद्ध के दृश्य का वर्णन करते हुए बताया है कि उस समय डमडम डमरु बजने लगे और दसों दिशाओं में भूत-प्रेतादि गरजने लगे। कृपाणें झमाझम बरसने लगीं और सिर कटे हुए धड़ चारों दिशाओं में नाचने लगे। ढोल और नगाड़े बजते हुए सुनाई पनने लगे और योद्धागण युद्ध में भिड़ उठे। खंड-खंड होकर बलशाली वीर गिरने लगे और नवखंड पृथ्वी तथा संपूर्ण ब्रह्मांड कांप उठा। इस तरह रुद्र का रौद्र रुप देखकर सभी ने अपनी अपनी सेनाओं को एकत्रित किया परंतु फिर भी शिव के रुद्र रुप के सामने कोई नहीं टिक सका। अंत में राजा दक्ष के सभी साथी गिर पड़े और वे स्वयं अकेले ही रह गए। रुद्र ने दक्ष का सिर त्रिशूल से काट दिया और वह ऐसे गिर पड़ा जैसे जड़ सहित वृक्ष गिर पड़ा हो। अंत में सभी गले में आंचल डालकर रुद्र के चरणों में गिरकर कहने लगे कि ‘हम तुमरो हरि ओज न जाना तुमहो महाँ तपी बलवाना’ अर्थात हमने आपके तेज को पहचाना नहीं आप महाबली और तपस्वी हो। यह सुनकर रुद्र दयालु हो उठे और अकालपुरख का ध्यान किया जिससे दक्ष व राजकन्याओं के सभी पति जीवित हो उठे।