बच्चों से दूरियां न रखें

मालिनी जरा पिंकी को तुम ही समझाओ अच्छे घर की लड़कियां क्या ऐसी खुली पारदर्शी ड्रेस पहनती हैं। कादम्बिनी ने अपनी सखी से इसरार करते हुए कहा।
कादम्बिनी मैं अपनी तरफ से पिंकी को समझाने का प्रयत्न करुंगी लेकिन मुझे यह बताओ तुम्हारे बीच ऐसा रिश्ता आखिर क्यों है कि किसी तीसरे को हस्तक्षेप करना पड़े। तुम्हारी बात को वह आखिर अहमियत क्यों नहीं देती। विशाल, पिंकी के पापा बाहर से ही उनका वार्तालाप सुन रहे थे। भीतर आकर बोले-माफ करना तुम लोगों के बीच दखल दे रहा हूं लेकिन क्या है ना मालिनी जी कादम्बिनी की हर समय की रोक टोक ने इन्हें पिंकी से दूर कर दिया है। अब  कई बातें जो वह मुझसे शेयर करती हैं। मम्मी से मुझे न बताने के लिए कहती हैं। सोचने वाली बात है ऐसे में अगर बेटी विद्रोह पर उतर आए तो क्या केवल वही कसूरवार नहीं।


पांच साल की टीना को घर में मेहमान आना इसलिए अच्छा नहीं लगता क्योंकि उनके आते ही मम्मी उसके नृत्य की तारीफ करते हुए उसे कैसेट लगाकर नचवाएगी, जब कि डांस क्लास और पढ़ाई के बाद वह कु छ देर टीवी पर बच्चों का प्रोग्राम देखना या पार्क में खेलना चाहती है। मम्मी-पापा दोनों का उसे यूं फोर्स करना, उसका मन रोने को हो जाता है। आखिर ये बच्चों के मन को क्यों नहीं समझते।


शैलेष के मम्मी-पापा को उसे लेकर बहुत ज्यादा महत्वाकाक्षाएं थीं। छोटी सी उम्र में ही वे उसे हर काम में दक्ष कर देना चाहते थे यह भूलकर कि सब की अपनी सीमाएं होती है। शैलेष एक एवरेज बच्चा था। मां-बाप की गलतियों का मुआवजा उसे ट्रेजिकली चुकाना पड़ा। शुरु में तो वह बेहद संकोची दब्बू बना रहा। उसे सही रूप से समझने, मारल सपोर्ट और प्यार देने के बजाय उसके मम्मी-पापा हर समय उसकी तुलना पड़ोस के नीरज से करते हुए कहते एक नीरज को देखो उसके पेरेन्ट्स को उस पर कितना गर्व है। एक तुम हो पता नहीं परिवार में किस पर गये हो। किससे तुम्हें यह डफर जैसा दिमाग मिला है। ऐसा तो था नहीं कि शैलेष उन्हें अजीज न था, प्यारा न था। लेकिन अंडरस्टैंडिंग, समझ की कमी के कारण ही वे बेटे की मन:स्थिति समझे बगैर उस पर यूं  अपना क्षोभ निकालते।


नन्ही अर्चना की मम्मी जो सोसायटी में मिसेज तनेजा के नाम से ज्यादा मशहूर थी अक्सर सहेलियों के आने पर उनसे बातों में ऐसे मशगूल हो जाती कि अर्चना का उन्हें जरा भी ध्यान रहता। वह बार-बार उनका ध्यान आकर्षित करने की नाकाम कोशिश करती। एक बार ऐसे ही उसने मम्मी की बहुत नाजुक सी साड़ी का पल्ला खींचा तो चर्र से साड़ी फट गई। वह इतना सहम गई थी कि मम्मी को उस पर तरस आ गया। अर्चना ने शह पाकर यही क्रिया दोहरानी शुरू कर दी, मम्मी का ध्यान पाने के लिए। उन्होंने सजा के रूप में उसकी फ्रेंड्स के सामने उसका मजाक बनाना शुरू कर दिया। इत्ती बड़ी लड़की देखो मम्मी के पल्लू से चिपकी रहती है। मम्मी की यह बात अर्चना के नन्हें मन में काम्पलैक्स बन कर समा गई।
 पिंकी , टीना, शैलेष अर्चना सभी अपने मां-बाप के लाड़ले बच्चे थे। उनको वे अच्छे से अच्छे स्कूल में शिक्षा दिलवा रहे थे। उन्हें वे आदर्श बच्चों के रूप में देखना चाहते थे। लेकिन क्या वे स्वयं आदर्श माता-पिता थे? उन्हें अपनी कमी नहीं मालूम थी। जानते तो वे बच्चों को गलत ढंग से ट्रीट नहीं करते।


 जरूरी है बच्चे में अपने प्रति विश्वास जगाना। यह विश्वास कायम होता है उनसे करीबी रिश्ता रखने पर। एक छत के नीचे रहना ही काफी नहीं। मानसिक रूप से भी बच्चे से जुड़ें। उसकी तकलीफ परेशानी को शेयर करें, दिलासा दें, प्यार जताएं। प्यार इजहार के बगैर अधूरा है। बच्चे की बात यूं ही न टालें। उस पर ध्यान दें।

उषा जैन ‘शीरी’