कहानी- सास-बहू

घर में आते नोट तो सबको अच्छे लगते हैं, लेकिन नोट कमाकर लाने वाली की सुविधाओं की किसी को परवाह नहीं। आखिर मैं भी हाड़-मांस की बनी हूं, कोई मशीन नहीं हूं जो बिना थके चलती रहे।‘


‘ये सब किसे सुना रही हो बहू। तुम्हारा कौन-सा काम नहीं हुआ है। बात तुम्हारे मुंह से निकलते ही तुरंत पूरी हो जाती है और क्या चाहिए तुम्हें।‘


बात अभी और लंबी खिंचती कि नीचे से कार की पीं… पीं… सुनाई दी। सुमेधा ने सोफे पर से पर्स उठाया और कंधे पर लटकाकर खटाखट सीढिय़ां उतरकर दरवाजा जोर से बंद करते हुए नीचे की ओर तेज कदमों से प्रस्थान किया।


सुमेधा के बॉस चिंतन सरीन ने सुमेधा के बिगड़े तेवर जो देखे तो सहानुभूति दर्शाते हुए पूछा- नितिन की माताश्री से आज फिर कुछ खटपट हो गई है?


सुमेधा भी भरी बैठी थी। सहानुभूति के दो बोल सुनते ही उसकी आंखें छलछला आईं। मन का बोझ हल्का करने की गरज से बोल पड़ी ‘सर, हम सो कॉल्ड प्रगतिशील कमाऊ औरतों की यही त्रासदी है। हमसे सभी को बहुत ज्यादा आशायें रहती हैं। आशा करने वाले ये भूल जाते हैं कि हम कोई सुपरवुमेन नहीं हैं। न ही दुर्गा मां की तरह हमारे कई हाथ हैं।‘
हुआ क्या कुछ पता भी चले।


ये तो रोज का किस्सा है। कल महरी नहीं आई। सुबह उठके बर्तन साफ किए। पराग छोटा है। उसे भी देखना होता है। नितिन किसी भी काम में जरा हाथ नहीं बंटाते, बस बैठे-बैठे हुकुम चलाते रहते हैं। माताजी को मंदिर, पूजा पाठ से ही फुर्सत नहीं। काम के वक्त उनके घुटनों का दर्द बढ़ जाता है। मैं अकेली कहां तक पिसूं। नौकरी छोडऩा चाहती हूं तो उसके लिये भी मां-बेटे तैयार नहीं। मैं क्या करूं कुछ समझ में नहीं आता। कभी-कभी तो मन करता है कि जहर खा के सारी झंझटों से मुक्ति पा लूं।


अपने को एजर्ट करना सीखो सुमेधा। तुम एक पढ़ी-लिखी आर्थिक रूप से स्वतंत्र नारी हो। कोई पारंपरिक खूंटे की गाय टाइप की नारी नहीं हो जो अपने को यूं शोषित होने दो।
बॉस की बातों से सुमेधा का मूड कुछ-कुछ नॉर्मल हो चला था। अपने क्षोभ निकालकर वह कुछ मानसिक रूप से शांत महसूस करने लगी।


शाम को क्लाइंट्स को एंटरटेन करने बॉस गए तो सुमेधा को भी साथ जाना पड़ा। उसे लगा वह वहां से जल्दी ही फ्री हो जाएगी, लेकिन वहां जाने के बाद देर होती चली गई। वहां कई प्रसिद्ध गायकों का प्रोग्राम भी चल रहा था। सुमेधा को अरसे बाद मन पसंद पुराने गीत जो सुनने को मिले तो उसका भी उठने का मन न किया फिर जब तक सब बैठे थे वह अकेली उठ भी नहीं सकती थी। आखिर वह वॉस की पर्सनल सेक्रेटरी थी।


यह समय है घर आने का। इतनी देर कहां मौज-मस्ती करके आ रही हो, नितिन ने गुस्से से पूछा। सुमेधा उसे इग्नोर करते हुए बेडरूम की ओर बढ़ गई।


इस पर आपा खोते हुए नितिन चीखा। क्या सुनाई देना बंद हो गया है मैं कुछ पूछ रहा हूं। मांजी ने बात बढऩे के डर से बेटे को हाथ के इशारे से शांत रहने का संकेत किया।
अम्मा तुम ही पूछो अपनी बहू से इतनी देर से क्यों आ रही है। क्या ये रोज ही देर से आती है? तुम भी इसकी हरकतों पर पर्दा डालती रहती हो। ऐसे ही चलता रहा तो ये एक दिन बिलकुल हाथ से निकल जाएगी। भाग जाएगी तुम्हारी बहू अपने उस यार (अपने बॉस) के साथ।


मांजी कमरे में सुमेधा को समझाने की गरज से चली आईं। वे अपनत्व से बोलीं, बेटी उसकी बात का जवाब तो दे दिया कर। बता दे कि दफ्तर में काम ज्यादा था। अब नौकरी में ये सब तो चलता ही है।


सुमेधा को बात समझ में आई तो वह तुरंत बाहर आकर पति से बोली आप भी सर्विस करते हैं तो सर्विस की जिम्मेदारियां भी खूब समझते होंगे। क्या मैंने कभी आपको कटघरे में खड़ाकर पूछा है कि आपको ऑफिस से आने में देर क्यों हुई और कुछ भी ऊल जलूल तोहमत लगाना आप जैसे पढ़े-लिखे इंसान को शोभा नहीं देता।


अपनी घटिया मानसिकता के कारण पत्नी पर लगाये इल्जाम से नितिन मन ही मन शर्मिदंगी महसूस कर रहा था, लेकिन अपने पुरुष होने का दंभ तो मन में ठाढे मार ही रहा था। सुर थोड़ा नीचे कर बोला-


कुछ पूछो तो जवाब क्यों नहीं देती हो।
तुम जवाब देने का समय ही कहां देते हो, बस शुरू हो जाते हो।
मां जी ने उनका झगड़ा खत्म करने की गरज से कहा बहू तेरा बेटा आज मां, मां कहना सीख गया। देर से सो रहा है उठने ही वाला होगा।


मां की ममता जागी। सुमेधा बेटे को खिलाने उसके पालने की ओर बढ़ गई। नितिन टीवी पर न्यूज सुनने लगा।


अकेली बैठी मां जी सोच रही थी पहले नितिन सुमेधा के नाज-नखरे उठाते नहीं थकता था, उन्हें उसका यूं हर समय पत्नी के आगे-पीछे डोलना जरा न सुहाता। वह बेटे को ताकीद करती कि बीवी को इतना सिर चढ़ाना ठीक नहीं वरना वह उस पर हावी हो जाएगी उसकी कौड़ी भर इज्जत नहीं करेगी, लेकिन बाद में उन्हें लगा कि जीवन भर जिसके साथ रहना है उसके साथ सामंजस्य होना चाहिए। एक-दूसरे की परेशानियों को वे तभी समझ पाएंगे जब आपसी प्यार और समझ होगी। रही नाज-नखरे उठाने की बात तो ये सब करने की उनकी उम्र है। यह तो बेचारा ऐसा कुछ भी मर्यादाहीन व्यवहार नहीं करता था, इसके दोस्तों को ही देखें तो कैसे…. हैं मरे। बड़ों का भी लिहाज नहीं करते। बीवी को लेकर ऐसी-ऐसी हरकतें करते हैं कि दूसरों को ही शरम आ जाए।


मेरे बेटे-बहू जरा भी मर्यादाहीन व्यवहार नहीं करते, वे लाखों से अच्छे हैं। अगर उनके छोटे-मोटे दोषों पर पर्दा डालना ही पड़े तो यह अनुचित न होगा। तोड़-फोड़ का काम मरे आतंकवादी करते हैं। घर के बड़े बुजुर्गों का फर्ज तो किसी भी तरह घर को जोड़े रखना ही है। घर की खुशहाली ही हर औरत का स्वर्ग है। चाहे सास हो या बहू घर तो दोनों का ही है।