अभिषेक का मन उखड़ा-उखड़ा रहने लगा. दो दिन पूर्व अपने छोटे भाई सुमित से हुई तकरार ने उसके मन में घुटन पैदा कर दी। परिवार में कहीं बिखराव न हो जाए, इस विचार ने अभिषेक को अन्दर तक हिलाकर रख दिया। यह उनका संयुक्त परिवार था। पिताजी नहीं रहे। मां तो बचपन में ही चल बसी थी। पिता ने दोनों भाईयों को एक मूलमन्त्र दिया था – ‘परिवार को कभी टूटने मत देना। किसी भी कीमत पर नहीं।‘ छोटा सुमित भी नहीं चाहता था कि बड़े भाई के सामने ऊंचे स्वर में बोले। मगर घटना ही ऐसी घटी कि एकाएक उत्तेजना में आ गया। ऐसे शब्द निकल गए, जिनकी वह स्वयं भी कल्पना न कर सकता था दोनों ओर तनाव रहा। दोनों ओर चिन्ता बनी रही।… स्थिति सामान्य करने की इच्छा। मगर पहल कौन करें। घर की ियों को तो दोनों ने कह दिया- ‘खबरदार जो कोई हमारे इस मामले में आया’ इसलिये उन्होंने तो कुछ भी न कहा। न अच्छा, न बुरा। चुप रहीं। सहमी-सहमी। एक शाम- सुमित से बड़े भाई अभिषेक की बेटी चिंकी ने कहा- ‘चाचू! आप बहुत गंदे हैं. मैं और पिंकी बहुत अच्छे। पिंकी सुमित की बेटी थी। सुमित ने चिंकी से पूछ लिया- बताओ तो हम कैसे गंदे हैं? आप दोनों कैसे अच्छी हैं? ‘हमारा क्या, इस पल झगड़ते हैं, अगले पल मान जाते हैं। एक आप हैं चार दिनों से पापा के पास नहीं आए… पापा को देखो… मुंह दूसरी ओर करके निकल जाते हैं… आप से कुछ पूछते नहीं… बताते नहीं। जैसे उनसे बड़ा कोई न हो…. दादा जी होते तो सीधा कर देते।‘ सुनते ही सुमित ने चिंकी को बाहों में भर लिया और तेज कदमों से बड़े भाई अभिषेक के पास जा पहुंचा- ‘देखो भैया.. चिन्की कहती हैं, मैं बहुत गंदा हूं। पापा अच्छे। यह झूठ बोल रही है सुमित। अच्छा तो तू है। गंदा मैं हूं।‘ कहते-कहते उसने छोटे भाई को गले लगा लिया। छोटे भाई के आंसुओं ने बड़े भाई की पीठ गीली कर दी। घर में एकदम खुशी लौट आई। 

 

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