अत्यंत गुणकारी है अदरक

आयुर्वेद के चिकित्सा शास्त्रा में अदरक को ‘वृष्य‘ कहा गया है अर्थात अदरक में सांड सी शक्ति होती है। पुराने समय से हमारे देश में अदरक का उपयोग कच्चे सलाद के रूप में सब्जी में, अचार के रूप में या चाय, शर्बत के साथ होता आ रहा है। अदरक ताजा और सूखा दो रूपों में मिलता है। सूखे को सोंठ कहते हैं। दोनों की प्रकृति गर्म है।

 

अपच और कब्ज

तमाम रोगों का घर पेट है। खाया-पिया पचा नहीं तो अपच हो गई। अपच से कब्ज और फिर अनेक रोग। भोजन से पूर्व एक चम्मच अदरक, नींबू व सेंधा नमक छिड़ककर खाएं। कब्ज की दशा में अदरक को पतले-पतले चिप्स में काटकर सुबह-शाम गुड़ के साथ खाएं।

 

अरुचि

बुखार के कारण अथवा किसी अन्य कारण से भूख होने के बाद भी खाया न जाए, मुंह फीका लगे, भोजन अरुचिकर लगे तो 5 ग्राम अदरक को बराबर शहद के साथ लें। अदरक को हल्का भूनकर चूसते भी रह सकते हैं।

 

खांसी

अदरक व प्याज का रस एक-एक चम्मच मिलाकर हल्का गर्म करके दो-तीन बार लें। सोते वक्त अवश्य लें। दवा लेने के बाद कुछ भी खाएं-पिएं नहीं। अन्य उपायों से न जाने वाली खांसी भी दो-तीन दिन में चली जायेगी। सर्दी-जुकाम से मुक्ति के लिए दिन में तीन-चार बार अदरक का काढ़ा गर्म-गर्म पिएं। उसकी भाप भी लें।

 

स्वर विकार

अदरक की एक गांठ छिद्र करके उसमें दो ग्राम हींग डाल दें। अब उस पर पान का पत्ता लपेट कर गीली मिट्टी का लेप लगाएं और आंच पर रखकर उलट-पुलट कर पका लें। जब मिट्टी लाल हो जाए तो उसे खुरच कर हटा दें और अदरक को पीस लें। पांच-पांच ग्राम की गोलियां बना लें। दिन में 5-6 बार चूसने पर आवाज बैठना, खुरदरी होना या फटी-फटी होना ठीक हो जाएगा।

 

घाव

सोंठ को आकाश बेल के साथ मिलाकर-पीसकर बनाए गये चूर्ण को गोघृत में भून लें। ठन्डे मलहम घाव पर लेपें। घाव सूखेगा, रक्त की शुद्धि भी होगी।


अदरक के दूसरे भी बहुत से औषधीय गुण हैं। यहां इसके विशेष प्रभावशाली गुणों का वर्णन किया गया है। अदरक को अपने खाद्य पदार्थों में यदि हम शामिल कर लें तो अनेक बीमारियों से सहज ही बचा जा सकता है। यह भोजन को स्वादिष्ट और पौष्टिक बनाता है। इसे सलाद में कच्चा भी खाया जा सकता है। इसे हर मौसम में खाया जा सकता है।


अदरक की यह खूबी है कि यह आलस्य और सुस्ती को पास नहीं फटकने देता। काम करने की क्षमता बढ़ाता है। स्मरण शक्ति व अन्य सामान्य क्रियाओं को सतत् गतिशील रखता है। रक्त संचार सही ढंग से होता है।


हमारे पूर्वजों के समय में जन्म के साथ ही इसका प्रयोग शुरू हो जाता था। शिशु को जन्मते ही उसे सोंठ मिले पानी से नहलाया-धुलाया जाता था।