मृत्यु का कारण है धूम्रपान

एशिया के अधिकतर लोग धूम्रपान की लत में अपना स्वास्थ्य और जीवन बर्बाद कर रहे हैं जबकि उन्हें मालूम है कि धूम्रपान करना एक तरह से मौत को बुलावा देना है।
यह एक विडम्बना है कि पश्चिमी देशों में धूम्रपान करने की प्रवृत्ति में गिरावट आई है परन्तु अब एशियाई देश तम्बाकू के सबसे लाभप्रद बाजार बनते जा रहे हैं। भारत में लाखों लोग बीड़ी एवं सिगरेट के प्रेमी हैं। जबकि चीन में भी लाखों लोग सिगरेट पीते हैं। पड़ोसी देश पाकिस्तान में सिगरेट का इस्तेमाल काफी बढ़ गया है जहां सिगरेट की वर्तमान खपत 58 प्रतिशत तक बढ़ गयी है। वहीं जापान के लोग प्रतिव्यक्ति विश्व औसत से 26 गुना ज्यादा सिगरेट पीते हैं जो धूम्रपान की बढ़ती समस्या की ओर गंभीरता से इंगित करता है।
तम्बाकू के अनेक हानिकारक उत्पादों से एशियाई बाजार पट चुके हैं। क्योंकि यहां के अनेक देशों में व्यापार के लिए तम्बाकू की खेती होती है। विकासशील देश भारत दुनियां में तम्बाकू का तीसरा बड़ा उत्पादक देश है। भारत अपने राजस्व का एक अच्छा अंश तम्बाकू और शराब के माध्यम से एकत्र करता है। हालांकि दुनिया भर में तम्बाकू की खपत के मुकाबले आज भारत में इसकी कुल खपत में सिगरेट का हिस्सा करीब 20 प्रतिशत है। परन्तु यहां तम्बाकू का उपयोग चबाने, पाइप व गुटकों के माध्यम से सर्वाधिक होता है।
सिगरेट के पैकटों और इससे संबंधित संवैधानिक चेतावनी लिखने को सन् 1975 से कानून की शक्ल दे दी गयी और सन् 1986 में यह कानून चबाने वाले तम्बाकू तथा सन् 1990 में गुटका पर भी लागू कर दिया गया। जबकि अन्य तम्बाकू उत्पादों के लिए किसी तरह की संवैधानिक चेतावनी का पालन करना अभी तक अनिवार्य नहीं है। विश्व भर में प्रतिवर्ष धूम्रपान से करीब 30 लाख लोग मौत के मुंह में चले जाते हैं। इनमें से एक तिहाई लोग सिर्फ विकासशील देशों में हर वर्ष मरते हैं। तम्बाकू सेवन की यदि यही प्रवृत्ति जारी रही तो अगले 30-40 वर्ष में विश्व में धूम्रपान के कारण मौत के ग्रास बनने वाले करीब एक करोड़ लोगों में से 70 लाख लोग विकासशील देशों के होंगे। प्रत्येक शहर और छोटे बड़े कस्बों में भी स्मैक के गुप्त ठेके जोरों पर चल रहे हैं और शराब तो सरकार की एक अच्छी आय का साधन बन चुका है।



आधुनिक तड़क-भड़क के चलते मादक पदार्थों के सेवन में महिलायें भी पीछे नहीं है जिनकी संख्या विश्व में करीब पच्चीस करोड़ है। वास्तव में धूम्रपान असामयिक मृत्यु का कारण बन गया है जो मनुष्य में बेहतर दिखने की प्रवृत्ति अथवा गलत संगत का नतीजा है।