पन्ना का श्री प्राणनाथ मंदिर

पन्ना में श्री प्राणनाथ का मंदिर बुंदेलखंड स्थापत्य शैली की सर्वाधिक सुंदर इमारत है। इसकी निर्माणशैली धुंबेला के भवनों से काफी मिलती-जुलती है। मंदिर की रचना, शिखर पर प्रमुख गुम्बद और कोनों पर सहायक गुंबदों का निर्माण, भारतीय स्थापत्य शैली का प्रभाव दर्शाते हैं। प्रमुख गुंबद के नीचे पालकी के आकार का तोरण विशुद्ध रूप से बुंदेली शैली का प्रस्तुतिकरण है। गुंबदों के किनारे चारों ओर ये महाबदार सज्जा, इन गुंबदों के सौंदर्य को द्विगुणित कर देती है। मुख्य प्रवेश द्वार के पास बनी हुई बेलें, लडिय़ां और ज्यामितीय अनुक्रम में तराशे गये चित्र, बड़े ही मनोहर प्रतीत होते हैं।


इस भव्य मंदिर के निर्माण में बुंदेलखण्ड की स्थापत्य शैली और तत्कालीन उत्तर भारतीय स्थापत्य कला का अत्यंत संतुलित सम्मिश्रण बहुत प्रभावोत्पादक है। बुंदेलखण्ड में इसी प्रकार की सम्मिलित शैली का प्रभाव, ओरछा के मंदिरों और राजमहलों में भी दिखाई देता है। मुगल स्थापत्य शैली से प्रभावित भवनों में जहांगीर महल (ओरछा) और दतिया का महल विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इसी प्रकार धुंबेला में महारानी कमलावती की समाधि, महाराजा छत्रसाल की समाधि और पन्ना में छत्रसाल उद्यान के पीछे बुंदेले राजाओं की समाधियों के ध्वंसावशेषों में बुंदेलखण्ड की मौलिक स्थापत्य कला का विकसित रूप दिखाई देता है।


महामति श्री प्राणनाथ, कृष्ण और कृष्ण के दर्शन को इस धरा के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि मानते थे। वे कहा करते थे, ‘तोले न आवे एक ने, मुख श्री कृष्ण कहेत’, इसलिए कालांतर में उनका साधना स्थल – ‘श्री पद्यावती पुरी धाम’ नाम से विख्यात हुआ। पन्ना के एक प्रसिद्ध कवि मिश्रीलाल शास्त्री ‘दुष्यंत’ ने इस प्रसिद्धि से जुड़ीं कथाओं पर आधारित प्रसिद्ध खंडकाव्य ‘मुक्तपीठ’ की रचना की है, जिसमें एक जगह वे लिखते हैं-


प्रभु की परम विहार भूमि के,
तुम्हें कोटि परनाम करूं।
परम मुक्ति के दिव्य पीठ
मैं धुरी कहूं या धाम कहूं?


पन्ना में हीरे की खानें जग प्रसिद्ध हैं। इस नगरी में छत्रसाल के समर्थ गुरु महामति श्री प्राणनाथ जी का यह विशाल मंदिर, पर्यटकों, कलाप्रेमियों और धार्मिक जिज्ञासुओं के लिए आकर्षण और कौतूहल का केंद्र है। महामति प्राणनाथ जी (संवत् 1675 से 1751) के जीवनकाल में ही यह अद्भुत मंदिर, जिसे वे अपना साधना स्थल कहते थे, बनकर तैयार हो गया था। महामति प्राणनाथ के साथ आये हुए लगभग पांच हजार साथियों ने अपने श्रमदान से इस भव्य इमारत का निर्माण किया था। एक दशक से भी ज्यादा समय तक महामति प्राणनाथ जी यहां रहे और जिज्ञासु तत्वदर्शियों को योग, सांख्य, भक्ति और वेद-कंतेब के गूढ़ रहस्य समझाते रहे।


महामति प्राणनाथ के जीवनकाल में इस स्थान पर कुरान, पुराण और उपनिषदों का पाठ और उन पर समान रूप से चर्चाएं हुआ करती हैं। इस विशाल मंदिर में एक ओर (पराक्रमा में) रास रचाते हुए श्रीकृष्ण की प्रतिमाएं बनी हुई हैं, वहीं दूसरी ओर (ऊपरी बुर्ज के दोनों तरफ सामने) अरबी में कुरान की आयतें आज भी लिखी हुई हैं।
महामति श्री प्राणनाथ जो सर्वधर्म समभाव में विश्वास रखने वाले महान युगदृष्टा थे, उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों को उनके पाखंड के लिए अपनी वाणी में जगह-जगह सावधान किया है-


जो कुछ कहा वेद ने
सोइ कहा कतेब
दोऊ बंदे एक साहेब के,
लड़त बिना पाये भेद।


महामति प्राणनाथ गुजरात प्रदेश के जामनगर नामक स्थान के रहने वाले थे। गुजरात में आज भी इसी प्रकार के सैकड़ों मंदिर हैं। महात्मा गांधी ने, ‘ईश्वर अल्ला तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान’ की मूल भावना पोरबंदर के ऐसे ही एक प्रणामी मंदिर से ग्राह्य की थी। एटिनबरी की बहुचर्चित फिल्म ‘गांधी’ में समुद्र तट के किनारे टहलते हुए गांधीजी यह बात एक विदेशी पत्रकार से कहते हुए दिखाई देते हैं।


आज हमारा देश सांप्रदायिकता की आग में झुलस रहा है और आये दिन हमें   सुलगते सवालों से जूझना पड़ रहा है।


यहां रोज ही सांप्रदायिकता का विषय अलगाववादी ताकतों को जीवनदान दे रहा है, वहीं इस देश की धरती पर एक ऐसा भी साधना स्थल है, जो तीन सौ वर्षों से दोनों दिशाओं (हिंदू और मुसलमान) को जोडऩे का प्रयास कर रहा है।