युग धर्म का प्रतीक है अणुव्रत

मानव जीवन की न्यूनतम व विषिष्ट आचार संहिता है अणुव्रत। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो आचरण व विचार के बीच समन्वय को स्थापित करती है। सही मायने मंे यह संयम की साधना और प्रामाणिकता से युक्त नैतिक जीवन जीने का सुगम पथ है। जिस पर चलकर व्यक्ति धर्म की नई परिभाषा को ग्रहण करता है। ऐसा धर्म जो जाति, रंग, सम्प्रदाय के भेद से अलग आत्मा का स्वतंत्र धर्म कहलाता है। सही मायने में यह धर्म का एक ऐसा नवनीत है जो विषमपरिस्थितियों में मानवता को त्राण दे सकता है। अणुव्रत स्वर्ग-नरक की बात नहीं करता यह आचरण सुधार की बात करता है। नैतिक जीवन जीने का संदेष देने वाला यह तत्व सचमुच मानवता एवं राष्ट्र को संकट में समाधान देने वाला है। युगधर्म के रूप में स्थापित यह धर्म भारतीय संस्कृति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।

 

सबका है यह धर्म

यह धर्म हर उस व्यक्ति के लिए है जो नैतिकता, ईमानदारी व चरित्रनिष्ठता में विष्वास रखता हैं। यह धर्म किसी व्यक्ति या सम्प्रदाय का ना होकर इंसानियत का धर्म है जो मानवता को नई राह दिखाने में सक्षम है। अणुव्रत का ध्येय सूत्र है कि व्यक्ति रक्षक भले न बन सके, लेकिन भक्षक न बनें। इंसान देव न बन सके लेकिन दानव भी नहीं बनें। ऐसी स्पष्ट चेतना का वाहक यह धर्म सचमुच मानव जीवन के लिए उपयोगी है। यह सदाचार की रक्षा करने वाला कवच है, आत्म तृप्ति का यज्ञ है। असम्प्रदायिक धर्म के रूप में प्रतिष्ठित यह धर्म इंसानियत को सच्ची राह दिखाने में सक्षम है।
व्यवहारिक चेतना का रूप    
अणुव्रत मानवीय चेतना विकास का वाहक आंदोलन है। इस आंदोलन के प्रवत्र्तक आचार्यश्री तुलसी ने इस धर्म के माध्यम से व्यक्ति को चरित्रवान बनाना, व्यवहार की शुद्धि करना एवं धार्मिक समन्वय स्थापित करने का सूत्र दिया। आज धार्मिक जगत मंे अणुव्रत का नये धर्म के रूप मे ंप्रतिष्ठा मिली है। अणुव्रत धर्म का उद्देष्य है मानवीय एकता में विष्वास, सह-अस्तित्व की भावना का विकास, व्यवहार में प्रामाणिता का विकास, आत्म-निरीक्षण की पद्धति का विकास, समाज में सही मानदण्डों का विकास करने के साथ साथ संस्कृति की सुरक्षा करना है। धर्म की मौलिकता को उजागर करने वाला यह धर्म व्यवहारिक चेतना विकसित करने वाला धर्म है।

 

नैतिकता से ओत-प्रोत

यह धर्म सीखाता है कोई व्यक्ति पूजा पाठ करे ना करें, दान-पुण्य करे न करें, धर्म का उपदेष दे या नहीं लेकिन नैतिकता को आधार मानकर चले, मानवता को जीवन का श्रृंगार बनायें यही अभिष्ट है। यह धर्म किसी भी व्यक्ति की व्यक्तिगत धार्मिक आस्था में दखल नहीं देता। यहां तो केवल जीवन की पवित्रता और चरित्र को उन्नत रखने का संदेष दिया जाता है। मानवता के धरातल से कोई व्यक्ति नीचे नहीं गिरे। जीवन के साथ मूल्यों का समावेष प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का ध्येय बने यह इस धर्म मार्ग है। अणुव्रत गीत में धर्म-लक्ष्य को परिभाषित किया गया है-


मानवीय मूल्यों की रक्षा, अणुव्रत का आषय है।
आध्यात्मिकता, प्रामाणिकता, उसका अमल हृदय है।।

आत्मानुषासित बनने कि दिषा
पारिवारीक एवं सामाजिक दायित्व निर्वहन के साथ परिस्थियों के साथ मूल्यों का समन्वय स्थापित करने वाला व्यक्ति अपने जीवन को आदर्ष बना सकता है। यह अनूठा धर्म हमें अन्याय को मिटाने के लिए संयम, संतुलन एवं अहिंसा की षिक्षा देता है। व्यक्ति का जीवन इस रूप में सामने आये कि आदर्ष केवल ग्रन्थ एवं वाणी में न रहकर दैनिक जीवन का अंग बने। अणुव्रत आत्मा का सषक्त धर्म है। अणुव्रत व्यक्ति सुधार की बात करता है। सुधरे व्यक्ति, समाज व्यक्ति से राष्ट्र सुधार की चेतना प्रवाहित करन ेवाला यह धर्म मानवता का अखण्ड तत्व है। प्रामाणिकता, सद्भावना, मैत्री, संतोष और सात्त्विकता से अनुप्राणित यह धर्म जीवन को नई दिषा देने में सक्षम है।


जीवन की पवित्रता का समावेष नइ चेतना को विकसित करता है। जिसके द्वारा सत्य और सौन्दर्य की समन्विति के माध्यम से मानवीय चेतना का अभ्युदय किया जा सकता है। वर्तमान की तमाम समस्याओं का समाधान देने वाले विष्व के मौलिक धर्म के माध्यम से शोषण विहिन समाज की अवधारणा को साकार रूप दिया जा सकता है। आचार निष्ठता इस का प्राण है। यह धर्म मानवीय आचार संहिता है। जिसके माध्यम से व्यक्ति अहिंसक जीवन का पालन करे, दूसरों के श्रम का शोषण न करे, दूसरों के अधिकार को छिनने का प्रयास न करे और समतावादी विचारधारा का प्रसारक बने यह जरूरी प्रक्रिया है।


अणुव्रत धर्म सन्यास की बात नहीं करता, यह आम आदमी की बात करता है जोन ये जीवन-दर्षन के साथ समाज में शुद्ध आचार और शुद्ध विचार की बात करता है। यह जीवन जीने का धर्म एवं आत्म निर्माण का मार्ग है, जिस पर चलकर व्यक्ति एक अच्छे इंसान के रूप में मानवता एवं समाज का भला कर सके। यह जीवन में अहिंसा, शांति, पवित्रता और चरित्र निर्माण का उदभव स्थल है। यह आचरण का धर्म है। मूल्य परिवर्तन व चरित्र विकास के साथ कथनी-करनी की समानता की सीधी सी प्रक्रिया है यह धर्म। अणुव्रत को इस सूत्र के माध्यम से समझा जा सकता है-


अपने से अपना अनुषासन, अणुव्रत की परिभाषा।
वर्ण, जाति या सम्प्रदाय से, मुक्त धर्म की भाषा।।