अमेठी और रायबरेली के बारे में गांधी परिवार क्या सोच रहा है ?

यदि हम पिछले  2019 के चुनाव पर नज़र फेरे तो तब कांग्रेस की 15 उम्मीदवारों की पहली सूची में अमेठी और रायबरेली शामिल थे। इस बार कांग्रेस ने 15 सूची में 244 उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए लेकिन इन दोनों सीटों के नाम सामने नहीं आए। रायबरेली से चुनाव लड़ती रही सोनिया गांधी अब राजस्थान से राज्यसभा सांसद बन चुकी है। ऐसे में वे अब लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी। उनकी जगह कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी का नाम कई बार सामने आया, लेकिन पार्टी ने अधिकृत तौर पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। प्रियंका के पति रॉबर्ट वाड्रा ने जरूर यहां से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की है। अमेठी में 2019 में राहुल गांधी भाजपा की स्मृति ईरानी से चुनाव हार गए जबकि वायनाड से जीते थे। वायनाड से राहुल के बतौर उम्मीदवार नाम पहली सूची में आ गया, लेकिन अमेठी की घोषणा रोक दी। रायबरेली से प्रियंका के चुनाव लड़ाने का विकल्प खुला हुआ है।

कांग्रेस नेता तर्क देते हैं कि अमेठी-रायबरेली में चुनाव 20 मई को है इसलिए अभी फैसले के लिए काफी समय है। दूसरी ओर कांग्रेस वाराणसी, देवरिया, बांसगांव, महाराजगंज सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर चुकी है जहां अंतिम चरण में एक जून को मतदान है। ऐसे काफी समय होने का पार्टी का तर्क दमदार नजर नहीं आता। कांग्रेस के रणनीतिकारों को यह डर भी सता रहा है कि दोनों सीट से गांधी परिवार का कोई सदस्य चुनाव नहीं लड़ता है तो भाजपा चुनाव में यह मुद्दा बना सकती है वह डर गए हैं। ऐसे में पार्टी ने सारे विकल्प खुले रखे हैं और सोच विचार के बाद ही इस पर फैसला किया जाएगा।

सूत्रों की मानें तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी वायनाड के साथ-साथ अमेठी सीट से भी लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं। कांग्रेस के आला नेता का कहना है कि अमेठी से चुनाव लड़ने को लेकर कांग्रेस सांसद का मन बदल रहा है। पहले वायनाड छोड़ू तो अमेठी नाराज और अमेठी छोड़ू तो वायनाड नाराज के चलते राहुल गांधी अमेठी से दूरी बनाए हुए थे, लेकिन हाल में जब राहुल पर हार के डर से भागने की तोहमत बीजेपी ने लगाई, तो कांग्रेस नेता ने भी अपने फैसले पर गंभीरता से विचार करना शुरू कर दिया है। कांग्रेस की अंदरूनी बैठक में राहुल गांधी ने कहा, “हम डरने वाले नहीं हैं। मेरी व्यक्तिगत वजहें थीं, लेकिन डर के भागने जैसी बात की जा रही है। आप लोग भी कह रहे हैं कि उत्तर भारत में संदेश ठीक नहीं जाएगा, पारंपरिक सीट है, तो मैं इस पर गंभीरता से विचार करूंगा, क्योंकि डर कर भाग गया। ये संदेश गलत है, इसको नेस्तनाबूद करना होगा।

कांग्रेस के भीतर भी नेता अपने अपने तरीके से कयास लगा रहे हैं। भले ही वे मीडिया के सूत्र बनकर कुछ न कुछ बोल दे रहे हैं, लेकिन वे भी हवा में ही कयास लगा रहे हैं – लेकिन अमेठी पर फैसले में वायनाड फैक्टर की एक खास भूमिका जरूर लगती है।  

रही बात रायबरेली लोकसभा सीट की तो उसे सोनिया गांधी की चिट्ठी से समझने की थोड़ी कोशिश की जा सकती है। राजस्थान से राज्यसभा का नामांकन दाखिल करने के बाद सोनिया गांधी ने रायबरेली के लोगों के नाम बड़ी ही इमोशनल चिट्ठी लिखी थी – और पुराने रिश्तों को कायम रखते हुए आगे भी परिवार के लिए सपोर्ट सिस्टम बने रहने की सोनिया गांधी ने अपील की थी।

अपनी चिट्ठी के जरिये रायबरेली को लेकर जो संकेत सोनिया गांधी ने देने की कोशिश की थी, राहुल गांधी ने कभी ऐसे भाव नहीं व्यक्त किये। हां, भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान वो अमेठी और रायबरेली गये जरूर थे – लेकिन उस दौरे को लेकर वहां के कांग्रेस नेताओं की नाराजगी ही सामने आई थी। स्थानीय कांग्रेस नेताओं का कहना था कि कांग्रेस नेता के स्वागत के लिए जगह जगह जरूरी इंतजाम किये गये थे लेकिन राहुल गांधी किसी भी जगह अपनी गाड़ी से नहीं उतरे।

   राहुल गांधी की नाराजगी स्वाभाविक लगती है। हैं तो वो भी इंसान ही, नेता और राजनेता होने से क्या होता है? वैसे भी अमेठी के लोगों ने जो सलूक राहुल गांधी के साथ किया है, रायबरेली के लोगों ने तो सोनिया गांधी के साथ नहीं किया। 2019 में भी रायबरेली के लोग सोनिया गांधी के साथ खड़े रहे लेकिन अमेठी के लोगों ने राहुल गांधी का साथ छोड़ दिया। कांग्रेस नेताओं को हराने के लिए बीजेपी ने अपनी समझ से अमेठी की ही तरह रायबरेली में भी तो कभी गांधी परिवार के करीबी रहे कांग्रेस नेता को सोनिया गांधी के खिलाफ उतार दिया था। हां, दिनेश प्रताप सिंह और स्मृति ईरानी में बड़ा फर्क तो है ही।

बहरहाल, सीनियर कांग्रेस नेता एके एंटनी ने अमेठी और रायबरेली को लेकर जो संकेत दिया है, वो अपने आप में काफी महत्वपूर्ण है, खासकर ऐसे वक्त जब दोनों सीटों पर आम लोगों के साथ साथ बीजेपी की निगाहें टिकी हुई हों। क्योंकि कांग्रेस ही नहीं, बीजेपी ने भी अमेठी और रायबरेली में से किसी भी जगह के लिए उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है – वैसे भी अमेठी और रायबरेली में वोटिंग वायनाड के बाद ही होनी है। गांधी परिवार के लिए ये भी बहुत बड़ी राहत की बात हो सकती  है।

एक इंटरव्यू में एके एंटनी से अमेठी और रायबरेली लोकसभा सीटों कांग्रेस उम्मीदावार को लेकर सवाल पूछा गया था। एंटनी ने साफ साफ तो कुछ नहीं बताया लेकिन काफी हद तक तस्वीर साफ भी कर दी – कम से कम ये तो साफ कर ही दिया है कि गांधी परिवार ने यूपी छोड़ देने का फैसला नहीं किया है। वैसे भी यूपी छोड़ देने के मतलब तो उत्तर भारत ही छोड़ देने जैसा समझा जाएगा। एके एंटनी का कहना है कि अमेठी और रायबरेली को लेकर कयास लगाये जाने की जरूरत नहीं है। एके एंटनी कहते हैं, आप अमेठी और रायबरेली लोक सभा सीटों पर फैसले का इंतजार कीजिये। और इंटरव्यू में एके एंटनी ने जो सबसे खास बात कही है, वो है – ‘नेहरू परिवार का एक सदस्य उत्तर प्रदेश के चुनाव मैदान में होगा।’

एके एंटनी का ये जवाब एक चीज तो स्पष्ट कर ही रहा है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के अमेठी और रायबरेली से नाता तोड़ लिये जाने की बातें पूरी तरह बकवास हैं – लेकिन दायरा बढ़ा कर एके एंटनी ने नये नये कयासों को दावत दे डाली है। कांग्रेस नेता ने सिर्फ गांधी परिवार का नाम न लेकर नेहरू परिवार की बात कही है, यानी गांधी परिवार से बाहर का भी कोई व्यक्ति अमेठी या रायबरेली से उम्मीदवार हो सकता है – हालांकि, रॉबर्ट वाड्रा के नाम पर एके एंटनी ने फुल स्टॉप लगा दिया है।

इंटरव्यू में एके एंटनी से अमेठी और रायबरेली सीटों को लेकर तो सवाल पूछा ही गया, अमेठी लोकसभा सीट से प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा को उम्मीदवार बनाये जाने की संभावनाओं पर भी पूछ लिया गया। जवाब तो एके एंटनी ने अमेठी और रायबरेली लोकसभा सीटों को लेकर भी दिये, लेकिन सबसे ज्यादा स्पष्ट रिस्पॉन्स उनका रॉबर्ट वाड्रा को लेकर ही लगा। असल में हाल ही में एक इंटरव्यू में रॉबर्ट वाड्रा ने एक साथ कई दावे किये थे।

रॉबर्ट वाड्रा का कहना था कि चाहते तो वो यही हैं कि पहले प्रियंका गांधी ही संसद पहुंचें और उसके बाद उनका नंबर आये। अमेठी के लोगों का हवाला देते हुए रॉबर्ट वाड्रा ने कहा था कि वे चाहते हैं कि अगर मैं चुनाव लड़ने का फैसला करूं तो अमेठी से ही – और लगे हाथ, रॉबर्ट वाड्रा ने ये भी दावा कर डाला था कि कांग्रेस के राजनीतिक विरोधी दलों से भी उनके पास टिकट के ऑफर हैं।

कांग्रेस नेता ने रॉबर्ट वाड्रा के नाम को तो खारिज कर दिया है लेकिन जो बात कही है, उसमें तो राहुल और प्रियंका के साथ साथ वरुण गांधी भी शामिल हो जाते हैं। अभी तक ऐसे कोई संकेत तो नहीं मिले हैं कि वरुण गांधी के लिए कांग्रेस ने नो-एंट्री वाला बोर्ड हटा लिया है लेकिन पीलीभीत से बीजेपी ने उनकी जगह जितिन प्रसाद को टिकट देकर ऐसी संभावनाओं के द्वार तो खोल ही दिये हैं। सुनने में तो ये भी आ रहा है कि प्रियंका गांधी वाड्रा का रायबरेली से चुनाव लड़ना करीब करीब पक्का है लेकिन जो स्थिति है उसमें प्रियंका गांधी वाड्रा अमेठी में राहुल गांधी की तुलना में बीजेपी की स्मृति ईरानी को ज्यादा कड़ी टक्कर दे सकती हैं  और जिस तरह से राहुल गांधी को वारिस के तौर पर पेश किया जाता रहा है, रायबरेली का मैदान उनका ज्यादा सूट करता है।

अमेठी को लेकर राहुल गांधी के अलावा दो नाम चर्चा में हैं। एक नाम है एमएलसी रह चुके कांग्रेस नेता दीपक सिंह का – और दूसरा नाम है, बीजेपी सांसद वरुण गांधी का। दीपक सिंह को सोशल मीडिया पर स्मृति ईरानी से बड़े ही  सख्त लहजे में दो-दो हाथ करते देखा जा सकता है – और वरुण गांधी के बारे में यहां तक बातें हो रही हैं कि वो संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार हो सकते हैं। अमेठी सीट तो वैसे भी समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में कांग्रेस के ही पास है। वरुण गांधी को लेकर ऐसी चर्चाओं को एक ही बात कमजोर करती है वो है मेनका गांधी का ताज़ा बयान कि  ‘हम ऐसे लोग नहीं हैं।’