रफ कापी के स्टैपल्ड़ पन्ने

स्कूल कालेज के दिनो में पीरियड किसी भी विषय का हो , क्लास नोट्स जिस कापी में लिखे जाते थे , बस्ते का वह महत्वपूर्ण दस्तावेज एक अदद रफ कापी हुआ करती थी। रफ कापी अपेक्षाकृत मोटी और सजिल्द होती थी। किन्तु वह अधिकृत नोटबुक नहीं मानी जाती थी।  यूं समझें कि रफ कापी ड्राफ्ट और फेयर कापी फाइनल मेमो की सिमली हुई। रफ कापी पर लिखे गये जल्दबाजी के नोट्स को सुलेख में, बेहतर समझ के साथ विषयवार स्वच्छ प्रति में सब्जेक्ट कापी में उतारा जाता था, शिक्षक इसी साफ कापी को जांचते व उस पर ही माक्र्स देते थे। रफ कापी काफी बहुत कुछ व्यैक्तिक हुआ करती थी अत: उसके भिन्न भिन्न तरह के उपयोग थे।  छुट्टी के लिये आवेदन लिखना हो तो रफ कापी से ही बीच के पृष्ठ सहजता से निकाल लिये जाते थे। रफ कापी के सफे फाड़कर ही राकेट , नाव और फलावर्स बनाकर ओरोगामी के प्रारंभिक पाठ हमने सीखे हैं। रफ कापी में हाशिये पर गोदे गये चित्र हर किसी  के मनोविज्ञान को समझने के लिये एक समर्थ साधन हो सकते हैं , यह बात मुझे अब समझ आ रही है। यह रफ कापी ही होती थी , जिसके अंतिम पृष्ठ में नोटिस बोर्ड की महत्वपूर्ण सूचनायें एक टांग पर खड़े होकर घुटने पर कापी रखकर लिखी जाती थीं।

 

रफ कापी में ही कई कई बार लाइफ रिजोल्यूशन्स लिखे जाते थे , जब परीक्षायें पास आने लगती थीं तो डेली टाइम टेबल लिख लिख कर हर बीतते दिन के साथ बार बार सुधारे जाते थे। जब टीचर के व्याख्यान उबाऊ लग रहे होते थे तो रफ कापी ही क्लास में दूर दूर बैठे मित्रों के बीच लिखित संदेश वाहिका बन जाती थी। उम्र के एक पड़ाव पर रफ कापी से ही पृष्ठ फाड़कर पहला लव लेटर भी लिखा था , जिसे स्वयं ही चिंदी चिंदी कर डाला था। यदि ताजमहल भगवान शिव का पवित्र मंदिर नहीं, प्रेम मंदिर ही है तो इस तरह चिंधी में तब्दील वह सफा अपना ताज बनाने से पहले उसकी भ्रूण हत्या हमने स्वयं की है । कुल मिलाकर रफ कापी जिंदगी का बेहद महत्वपूर्ण दस्तावेज रहा है।


याद करूं तो शायद जिंदगी की पहली कविता और व्यंग्य भी रफ कापी पर ही लिखे हैं मैंने। कालेज तक पहुंचते पहुंचते समझ कुछ विकसित हुई , सभी विषयों की एकीकृत रफ कापी की जगह सब्जेक्ट वाइज क्लास नोट्स रफ कापी बनाने लगा। अच्छे सुलेख और समझ के चलते मेरी रफ कापी भी लगभग फेयर कापी ही बन गई । क्योंकि फेयर कापी में रि राइट करने की अपेक्षा साइकिल से कुछ खास घरों के चक्कर मारने में वह समय व्यतीत होने लगा था। इस वजह से जब कभी मजबूरी में टीचर्स रिव्यू के लिये नोट्स जमा करने पड़ते , तो इस रफ कापी के वे पन्ने जो सचमुच रफ वर्क के होते उन्हें स्टेपल कर देता  या चिपका देता था। जब कभी कुछ गोदने या लगातार साईकिल के केरियर पर रखने से इस कापी के कवर की दशा गड़बड़ा जाती और दूसरे दिन कापी जमा करनी विवशता होती तो नया साफ सु्थरा ब्राउन कवर चढ़ा कर निजात पाता। नये कवर में पुराना माल ढका मुंदा बन्द बना रहता। स्टेपल्ड बन्द सफों को खोलने की जहमत कोई कभी न उठाता।