अब तक हुए संविधान संशोधनों का कच्चा चिट्ठा

अंततः रविवार को भाजपा ने अपना 2024 के चुनाव का ‘मोदी की गारंटी’ का संकल्पपत्र जारी कर ही दिया। इस संकल्प पत्र में कई बातें ऐसी हैं जो बिना संविधान में संशोधन किये मूर्तरूप ले ही नहीं सकती हैं। इसके लिए मोदी सरकार को कई संविधान संशोधन करने ही पड़ेंगे। शायद इसीलिए मोदी जी ‘अबकी बार चार सौ पार’ का नारा लगा रहे हैं।

संविधान संशोधन की परम्परा प्रारम्भ से ही है। आइये एक नजर इस पर भी डालें।  

संविधान बनाने के बाद भीमराव आंबेडकर ने संविधान समिति का अध्यक्ष होने के नाते जो भाषण नवंबर 1949 को नई दिल्ली में दिया था। वह इस प्रकार था-

“संविधान चाहे जितना अच्छा हो, वह बुरा साबित हो सकता है, यदि उसका अनुसरण करने वाले लोग बुरे हों. यह कौन कह सकता है कि भारत की जनता और उसके दल कैसा आचरण करेंगे, अपना मक़सद हासिल करने के लिए वे संवैधानिक तरीके अपनाएंगे या क्रांतिकारी तरीके? यदि वे क्रांतिकारी तरीके अपनाते हैं तो संविधान चाहे जितना अच्छा हो यह बात कहने के लिए किसी ज्योतिषी की आवश्यकता नहीं कि वह असफल ही रहेगा।”

अंबेडकर के इस भाषण के कुछ ऐसे ही अंश अक्सर तब सुने जाते हैं। जब ‘संविधान के अनुरूप काम नहीं करने’ के आरोप सत्तारूढ़ दलों पर लगाए जाते हैं।

संविधान की प्रस्तावना में बदलाव हो, जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली हो, दल-बदल क़ानून हो, जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा ख़त्म करना हो या फिर चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की बात।

ऐसे कई मुद्दे हैं जिन्हें लेकर अक्सर पक्ष और विपक्ष में तीखी जुबानी जंग लड़ी जाती रही है और हर बार हवाला दिया जाता है संविधान का।

संविधान में पहला संशोधन 1951 में अस्थायी संसद ने पारित किया था। उस समय राज्यसभा नहीं थी। पहले संशोधन के तहत ‘राज्यों’ को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की प्रगति के लिए सकारात्मक कदम उठाने का अधिकार दिया गया था। यूँ तो अब तक संविधान में 106 संशोधन किए जा चुके हैं लेकिन संविधान की प्रस्तावना में केवल एक बार संशोधन किया गया है।

ये संशोधन इंदिरा गांधी के शासन के आपातकाल के दौरान हुआ था। ये 42वां संविधान संशोधन था और अब तक का सबसे व्यापक और विवादास्पद भी। इसमें संविधान की प्रस्तावना में तीन नए शब्द- समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता जोड़े गए।

1976 में किए गए 42वें संशोधन में अहम बात ये थी कि किसी भी आधार पर संसद के फ़ैसले को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती थी।

साथ ही सांसदों एवं विधायकों की सदस्यता को भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती थी. किसी विवाद की स्थिति में उनकी सदस्यता पर फ़ैसला लेने का अधिकार सिर्फ़ राष्ट्रपति को दे दिया गया और संसद का कार्यकाल भी पांच साल से बढ़ाकर छह साल कर दिया गया था।

इस संविधान संशोधन को लेकर सड़क से संसद तक जमकर बवाल और सियासत हुई। 1977 में सत्ता में आने के बाद तत्कालीन जनता पार्टी की सरकार ने इस संशोधन के कई प्रावधानों को 44वें संविधान संशोधन के ज़रिए रद्द कर दिया। इनमें सांसदों को मिले असीमित अधिकारों को भी नहीं बख्शा गया, हालाँकि संविधान की प्रस्तावना में हुए बदलाव से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई।

अब तक हुए संविधान संशोधनों में से कई को अदालत में चुनौती दी गई है, लेकिन देश के उच्चतम न्यायालय ने केवल 99वें संविधान संशोधन को असंवैधानिक करार दिया है। यह संशोधन राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (एनजेएसी क़ानून) के गठन के संबंध में था। सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर 2015 को जजों द्वारा जजों की नियुक्ति की 22 साल पुरानी कॉलेजियम प्रणाली की जगह लेने वाले एनजेएसी क़ानून, 2014 को निरस्त कर दिया था।

लगातार 10 साल तक चली मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को हटाकर एनडीए गठबंधन ने साल 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सत्ता संभाली। इसके बाद से सरकार के कई फ़ैसलों और इसके द्वारा लाए गए कई नई अध्यादेशों और क़ानूनों को लेकर ख़ासा विवाद रहा है। इस दौरान कुल मिलाकर संविधान में आठ  संशोधन किए गए।

नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद एक अहम फ़ैसला लिया, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का गठन करने की दिशा में आगे बढ़ना। इस आयोग के ज़रिये केंद्र सरकार न्यायाधीशों का चयन ख़ुद करने में सक्षम हो जाती। इस संविधान संशोधन पर 29 राज्यों में से गोवा, राजस्थान, त्रिपुरा, गुजरात और तेलंगाना समेत 16 राज्यों की विधानसभाओं ने अपनी मुहर लगाई. तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के इस विधेयक को मंज़ूरी देने के साथ ही इस संविधान संशोधन ने क़ानून की शक्ल ले ली लेकिन इस क़ानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। याचिकाओं पर सुनवाई के बाद 16 अक्टूबर 2015 को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने चार-एक के बहुमत से इस संविधान संशोधन क़ानून को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि जजों की नियुक्ति पुराने कॉलिजियम सिस्टम से ही होगी।

भारत और बांग्लादेश के बीच हुई भू-सीमा संधि के लिए संविधान में 100वां संशोधन किया गया। देश में वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी को लागू करने के लिए भारतीय संविधान में 101वां संशोधन किया गया। मकसद था राज्यों के बीच वित्तीय बाधाओं को दूर करके एक समान बाज़ार को बांध कर रखना।  तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मंज़ूरी और राज्यों से सहमति मिलने के बाद एक जुलाई 2017 से यह लागू हो गया। ‘एक देश-एक कर’ कहे जाने वाली इस सेवा को मोदी सरकार ने आज़ादी के सत्तर साल बाद का सबसे बड़ा टैक्स सुधार बताया।

2018 में संसद ने संविधान में 102वां संशोधन पारित किया था जिसमें संविधान में तीन नए अनुच्छेद शामिल किए गए थे। नए अनुच्छेद 338-बी के ज़रिए राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया। इसी तरह एक और नया अनुच्छेद 342ए जोड़ा गया जो अन्य पिछड़ा वर्ग की केंद्रीय सूची से संबंधित है। तीसरा नया अनुच्छेद 366(26सी) सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को परिभाषित करता है। इस संशोधन के माध्यम से पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा मिला।

9 जनवरी, 2019 को संसद द्वारा 103वां संविधान संशोधन अधिनियम 2019 पारित किया गया। यह अधिनियम आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों से संबंधित व्यक्तियों को 10 फ़ीसदी आरक्षण का प्रावधान करता है।  104वां संशोधन के तहत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 334 में संशोधन किया गया और लोकसभा और विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण की अवधि को 10 साल के लिए और बढ़ा दिया गया था। इसके अलावा अधिनियम के ज़रिये लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एंग्लो इंडियन के लिए सीटों के आरक्षण को समाप्त कर दिया गया।

तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 18 अगस्त, 2021 को ‘105वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2021’ को अपनी स्वीकृति दी। संशोधन के अनुसार राष्ट्रपति केवल केंद्र सरकार के उद्देश्यों के लिए सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की सूची का नोटिफिकेशन जारी कर सकते हैं।

संविधान का 106 वां संशोधन लोकसभा, राज्य सभा, विधान सभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधान सभा में महिलाओं के लिए सभी सीटों में से एक तिहाई सीटें आरक्षित करता है, जिसमें अजा और अजजा के लिए आरक्षित सीटें भी सम्मिलित हैं।

मोदी सरकार तीसरी बार आने पर क्या क्या संशोधन करेगी यह समय के गर्त में है।