एग्जिट पोल की पोल कई बार खुल चुकी है, विगत चुनावों की उनकी भविष्यवाणियां भी औंधे मुंह गिरी हैं। स्क्रीन के जरिए दर्शाए उनके अनुमान धरातल पर फेक साबित हुए? कई दफे तो रिजल्ट के आसपास भी नहीं टिके। ऐसा होने पर लोगों ने एग्जिट पोलों पर विश्वास करना तकरीबन-तकरीबन छोड़ दिया था पर चैनल इतने ठीठ हैं कि पुरानी बातों पर जरा भी गौर नहीं करते, पिछली बातें भुलाकर आगे बढ़ते हैं। मौजूदा पांच राज्यों के विधानसभाओं चुनाव जैसे ही निपटे, अनगिनत न्यूज चैनलों ने अपने ‘एग्जिट पोल’ के पिटारे खोल दिए। 30 नवंबर यानी गुरूवार शाम छह बजे के बाद बताए गए अनुमान तीन दिसंबर के रूझानों में तब्दील होंगे या फिर दिल्ली विधानसभा चुनावों की तरह एक बार फिर झूठे ही साबित होंगे।
मध्यप्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, मिजोरम व छत्तीगढ़ को लेकर इस बार ज्यादातर न्यूज चैनलों का एक मत नहीं है। सबके अपने-अपने अनुमान हैं लेकिन, एग्जिट पोलों ने फिलहाल दोनों प्रमुख पार्टियों में खलबली जरूर मचा दी है। चैनल भी इस बात को मानते हैं कि उनकी भी विश्वसनीसता खतरे में पड़ी हुई है। जनता की अदालत में इस बार उनकी कड़ी परीक्षाएं हैं क्योंकि हर बार अपने बताए रुझानों के लिए वो गच्चा खाते आए हैं। अगर इस बार भी बताएं आकलन सही साबित नहीं होते, तो उन पर भविष्य में कोई विश्वास आसानी से नहीं कर पाएगा। कमोबेश, एग्जिट पोल्स की स्थिति कुछ कांग्रेस की ही तरह हो गई थी। जनता न कांग्रेस को तवज्जो दे रही है और न ही एग्जिट पोल को? कांग्रेस इन पांच राज्यों को जीतकर आगामी लोकसभा चुनाव भी जीतने का मन बनाया हुआ है।
बहरहाल, 30 नवंबर को संपन्न हुए पांच विधानसभाओं के चुनाव के तुरंत बाद अपनी आदत से मजबूर खबरिया चैनलों ने एग्जिट पोलों की एक साथ बौछार कर दी। इस बार ज्यादातर चैनलों के आकलन विपक्षी पार्टी यानी कांग्रेस की तरफ दर्शाया हैं। जबकि, कुछ जगहों पर सत्ताधारी पार्टी को आगे बताया है। फिलहाल, परिणाम के दो दिन पहले इन एग्जिट पोल ने प्रमुख दलों की धड़कने बढ़ा दी हैं। हालांकि, कांग्रेस एग्जिट पोल के मुताबिक उनके रुझानों पर ही जश्न मनाने में लग गई है। तो वहीं भाजपा नेताओं के माथे पर चिंता की कुछ लकीरें भी खिंच गईं हैं। मध्य प्रदेश का चुनाव मामा और राजा के भविष्य तय करेगा। एग्जिट पोल्स को देखकर भाजपा में खलबली मच गई और वरिष्ठ नेताओं के बीच मनन-मंथन भी शुरू हो गया। क्योंकि, भाजपा इन चुनाव को ही आगामी लोकसभा-2024 चुनाव का सेमीफाइनल मानकर चल रही है क्योंकि उनकी तैयारियां लोकसभा को ध्यान में रखकर की गई हैं।
भाजपा कम से कम हिंदी के तीनों राज्यों छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान को जीतना चाहती है। वहीं, तेलंगाना और मिजोरम में मात्र अच्छे प्रदर्शन से संतुष्ठ होना चाहती है। यानी ‘तीन बटे दो’ का अनुमान लगाए बैठी है। वहीं, कांग्रेस पांचों राज्यों में विजय पताका फहराना चाहती है। दो राज्यों में उनकी सरकार है भी। बहरहाल, बुद्धिजीवी वर्ग एग्जिट पोल को गंभीरता से अब नहीं लेता? यही वजह है कि एग्जिट पोल की विश्वसनीयता पूरी तरह से दांव पर लग चुकी है। क्योंकि अगर इस बार भी बेअसर साबित हुए तो इनसे आमजन का विश्वास लगभग खत्म हो जाता। दरअसल पूर्व के कई एग्जिट पोल हवा-हवाई साबित हुए हैं। तीन साल पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम में सभी चैनल मुंह की खा चुके हैं। उस वक्त सभी चैनलों ने भाजपा को जिता दिया था, लेकिन रिजल्ट आम आदमी पार्टी के पक्ष में गया।
यही कारण है कि विगत कुछ वर्षों से एग्जिट पोलों की साख पर लोग सवाल खड़े करने लगे हैं। क्योंकि चैनलों का अतित्साह होना और जल्दबाजी के चलते पिछले कुछ सालों से इन एग्जिट पोलों की ही पोल खुल गई। मालूम हो जब दिल्ली में विधानसभा के चुनाव हुए, तो अधिकतर चैनलों ने भाजपा को जीता हुआ दर्शाया था। लेकिन रिजल्ट आने के बाद पता चला की जिसकी सरकार बना रहे थे वह सिर्फ तीन ही सीटों पर सिमट गई। खैर, अतीत को ध्यान में न रखकर खबरिया चैनलों ने इस बार अपनी इज्जत बचाते हैं या नहीं? ये बड़ा सवाल चैनलों के लिए खड़ा हो गया है। न्यूज चैनल मध्यप्रदेश में भाजपा को जिताने का दावा कर रहे हैं। लेकिन चुनावी पंड़ितों का मत कुछ और ही कहता है।
लोकसभा चुनाव में कुछ महीने ही बचे हैं। प्रधानमंत्री मोदी केंद्र में अपना तीसरा टर्म चाहते हैं। इस लिहाज से मौजूदा पांच विधानसभाओं के इलेक्शन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बने हुए हैं। इन्हें जीतने के लिए सत्ताधारी पार्टी ने अपनी पूरी मशीनरी लगाई। पूरी ताकत झोंकी। सभी में जीतने का अनुमान था, लेकिन परिणाम से पूर्व ही एग्जिट पोल्स कुछ और ही बता रहे हैं। कांग्रेस भी कुछ ऐसा ही चाहती है।ये सच है अगर परिणाम एग्जिट पोलों से विपरित होते तो चैनलों की विश्वसनीसता खतरे में पड़ जाती। क्योंकि इसके बाद भविष्य में कोई भी एग्जिट पोलों पर विश्वास नहीं करेगा।
वैसे, कुल मिलाकर देखें तो एग्जिट पोलों ने चुनाव परिणामों का क्रेज काफी हद तक खत्म कर दिया है। एक वक्त हुआ करता था, जब लोग परिणाम की तारीख का इंतजार करते थे। लेकिन एग्जिट पोल पहले ही खलल डाल देते हैं। वैसे, एग्जिट पोल्स महज अनुमान भर होते हैं। रिसर्च और सर्वे एजेंसियों के साथ मिलकर न्यूज चैनलों द्वारा जारी होने वाला एग्जिट पोल मतदान केंद्रों में पहुंचने वाले मतदाताओं और मतदान संपन्न होने के बाद के अनुमानों पर आधारित होते हैं। एग्जिट पोल के नतीजों से सिर्फ चुनावों की हवा का रुख पकड़ में आता है, एग्जिट स्थिति तो कतई नहीं, इसलिए तीन दिसंबर तक सभी को इंतजार करना पड़ेगा।