सहेलियों की नाराजगी कैसे हैंडिल करें

प्रत्याशा और अनुष्का एक ही क्लास में थीं। दोनों ही पढऩे में तेज। कभी प्रत्याशा के दो-चार अंक ज्यादा होते, कभी अनुष्का के। पहले तो उनमें किसी तरह की प्रतिद्वंद्विता नहीं थी लेकिन बाद में धीरे-धीरे उनमें इसी बात को लेकर मनमुटाव रहने लगा। जो कि सरासर उनकी नादानी थी।


अमिता और अजया दोनों ही कॉलेज की बैडमिंटन चैंपियन थीं। वे एक-दूसरे के साथ खेलना बहुत एंजॉय करतीं, लेकिन जब उन्हें स्टेट लेवल पर खेलने का चांस मिला तो अमिता को डर था कि अजया बाजी मार लेगी। वह उसे दोस्ती का वास्ता देकर मैच में पार्टीसिपेट न करने की गुजारिश करने लगी।


अजया के समझाने पर कि हैव स्पोट्र्सवुमंस स्पिरिट डियर। यह महज कांपीटिशन है जो कि हैल्दी होना चाहिए। मैं बैकऑउट कर गई तो तुम्हें भी जीतने में मजा नहीं आयेगा या हो सकता है कोई और बेहतर खिलाड़ी मैच में बाजी मार तुम्हें हरा दे। बात अमिता की समझ में आ गई।


लेकिन रुचि मेहरा और कनिका तेजवानी के केस में ऐसा नहीं हुआ। डांस कांपीटिशन में रुचि के फस्र्ट आने पर कनिका ने उससे बोलना ही छोड़ दिया। तब रुचि ने भी कनिका की परवाह करना छोड़ दी। रुचि को लगा वह लड़की दोस्ती के लायक ही नहीं है। अगर वह सच्ची दोस्त होती तो मेरी जीत से खुश होती यूं ईष्र्यालु होकर बोलना ही न छोड़ देती।
दोस्ती का रिश्ता अनमोल है। जहां तक बन पड़े इसे बचाए रखने की ही कोशिश रहनी चाहिए। यह मानकर कि मनुष्य गलतियों का पुतला है। छोटी-छोटी सी बात को लेकर मन में बैर नहीं पालना चाहिए। सखी को वक्त दें। उसमें गुण अगर कमियों से ज्यादा हैं तो उन्हें नजरअंदाज किया जा सकता है।


अक्सर झगड़े, मनमुटाव, नाराजगी का कारण गलतफहमियां ही हुआ करती हैं। इसमें दोष किसी एक का नहीं होता। समझदारी से इससे निपटा जा सकता है। इसमें कम्युनिकेशन का अहम रोल है। कम्युनिकेट नहीं करेंगे तो सुलह-सफाई की गुंजाइश कहां रहेगी? बातचीत के गतिरोध को दूर करने का तरीका भी बातचीत ही है।


लड़कियों को प्रकृति ने इमोशनल बनाया है, जितनी शिद्दत से वे प्यार करती हैं उनकी नफरत भी उतनी ही तीव्र होती है, लेकिन वे मनाने पर शीघ्र मान भी जाती हैं। बदले की भावना उनमें खासकर कम उम्र में कम ही पाई जाती है। वे तुनकमिजाज हो सकती हैं, लेकिन मन में अभी इतनी कालस नहीं होती, इसलिए उनकी नाराजगी भी भोलापन लिए होती है जिसे दूर करना उतना कठिन कार्य नहीं होता।


कभी-कभी तो महज एक छोटे से लफ्ज ‘सॉरी’ से ही काम बन जाता है। रूठकर मुंह फुलाए सखी के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान आकर सब गिले-शिकवे मिटा देती है। दोस्ती में अहम आड़े नहीं आना चाहिए। सच्ची दोस्ती तभी कहलाती है, जब वो ये छोटे-छोटे हर्डल्स आसानी से पार कर लेती है। बगैर बात का बतंगड़ बनाए जिस इरादे से बात कही गई है उसे समझकर सखी के प्रति सदा स्नेहभाव रखें। एक प्रिय सखी का साथ एक नेमत है। यह आपको पॉजीटिव वाइब्स देता है। एक सुखद अहसास से भर देता है, जबकि उसकी नाराजगी बेहद कष्टप्रद होती है। इससे दोनों का सुकून चला जाता है। उनकी प्रतिभा कुंठित होने लगती है। वे डिप्रैशन तक में आ जाती हैं। ऐसी नौबत आये ही क्यों? नाराज सहेली को मनाने के मंत्र सीख लें। नंबर वन तो सॉरी है ही बाकी हर एक को अपनी शख्सियत के हिसाब से ही जाना जा सकता है कि उसे मनाने के लिए कौन-सा फॉर्मूला आजमाया जाए। तोडऩा बहुत आसान है, जोड़े रखना मुश्किल जरूर है, लेकिन इसमें फायदे बहुत हैं। बगैर किसी पुख्ता कारण के दोस्ती न तोड़ें। ‘ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे।‘ अच्छा गाना है- गुनगुनाती रहा करें।