युवतियों में समाजसेवा का बढ़ता शौक

आज की युवा पीढ़ी की इमेज स्वच्छंद, बिंदास, मौजमस्ती की ही जिंदगी का दूसरा नाम समझने वालों, सेल्फिश केयरलैस किस्म की पीढ़ी की है जो शायद काफी हद तक सच है लेकिन अब जो युवतियों में समाजसेवा का शौक पैदा हो रहा है वह निश्चय ही एक पॉजिटिव साइन है, कारण और मोटिव चाहे जो हो।

एम बी ए कर रही बीस वर्षीया माही स्वराज का कहना है कि हम शौकिया ही सोशल सर्विस नहीं कर रहे। हम चाहते हैं कि अपनी शिक्षा से औरों के जीवन में भी उजाला करें। समाज के पिछड़े वर्ग की लड़कियां जो हमारी तरह खुशनसीब नहीं हैं, वे भी स्कूल तक पहुंच पाएं।
एम सी ए की छात्रा करूणा अग्रवाल का मानना है कि समाज से जहां हमें इतना कुछ मिला है, हमारा भी फर्ज बनता है कि हम भी उसे कुछ लौटायें ताकि हम लेन देन का हिसाब बराबर रख सकें।


अनीशा मेहता जो अभी केवल सोलह वर्ष की हैं, एक एन जी ओ से जुड़ी हैं। वो कहती हैं कि लोग अक्सर मुझे ताना मारते हैं कि मैं अखबारों, मैगजीन्स आदि में अपना नाम और फोटो देखने के लिए गांवों, झुग्गी झोंपड़ियों में जाकर बच्चों को पढ़ाती हूं। काश वे मेरे मन के भीतर झांक पाते तो समझ पाते इससे कितनी संतुष्टि मिलती है। कितना नैतिक बल मिलता है।


सोशल सर्विस करना निस्संदेह समाज में एक पुण्य का कार्य समझा जाता है, इसीलिए युवतियों के पेरेंट्स भी उन्हें इसके लिए पूरा सपोर्ट देते हैं। इस कार्य में मुश्किलें भी कम नहीं हैं। झुग्गी झोंपड़ियों में कई छात्रा जो किशोर उम्र के या कुछ बड़ी उम्र के होते हैं, वे बुरी आदतों के शिकार होते हैं। उन्हें ंमैनेज कर पाना आसान नहीं होता।


आज की युवतियां स्मार्ट हैं। वे मल्टीटास्क में एक्सपर्ट भी हैं। आई टी क्षेत्रा में क्रान्ति आने से इन्हें एक्सपोजर मिला है। इनमें इंटेलिजेंस बढ़ी है। विचारशक्ति बढ़ने से वे अपने से इतर समाज और देश के बारे में सोच सोशल अवेयरनेस जताने लगी हैं। इनकी उम्र स्वीट सिक्सटीन से लेकर टीन एज की समाप्ति और युवावस्था की शुरूआती दौर तक के बीच की ज्यादा देखने को मिलती है।


सामाजिक बदलाव की एक कड़ी है ये युवतियां जो कम उम्र में ही जिम्मेदारी का भार उठाने की ट्रेनिंग स्वयं ही लेने को तत्पर हैं।


शिक्षा का कार्य सबसे नोबल कार्य माना जाता है जिसे ज्यादातर सोशल वर्कर युवतियां अपनाये हैं। ये न सिर्फ अनपढ़ को लिखना पढ़ना सिखा रही हैं बल्कि वक्त के अनुसार उन्हें ओवर ऑल पर्सनेलिटी डेवलपमेंट के गुर भी बताती हैं।


अपनी व्यस्तताओं के बावजूद इन युवतियों में एक पवित्रा जज्बा जागा है जो काफी इनफैक्शस है। ये युवतियां अपना भविष्य संवारने के साथ ही दूसरे अनप्रिवलेज्ड जरूरतमंदों का भविष्य संवारने में जुटी हैं। इनका अपना लाइफ स्टाइल कैसा भी बिंदास और अल्ट्रामाडर्न क्यों न हो, वो इनका पर्सनल मैटर है लेकिन इस तरह सोशल सर्विस के लिए अपना अनमोल समय देकर निस्संदेह वे बहुत प्रशंसनीय कार्य कर रही हैं।


शौक सब तरह के होते हैं, अच्छे बुरे सभी तरह के। समाज सेवा का शौक एक अच्छे शौक की केटिगरी का है, चाहे इसे कुछ लोग फैशनबेल ही क्यों न मानें। शौक की ही तरह फैशन भी अच्छा बुरा हो सकता है और अगर सोशलसर्विस करना आज फैशन बन गया है तो ये एक अपनाये जाने जैसा फैशन है।


आज की पीढ़ी प्रैक्टिकल है जो कुछ कर गुजरना चाहती हैं। उनमें ऊर्जा है, मजबूत आत्मविश्वास है। वे हाथ पर हाथ धरे बैठने और केवल कटु आलोचना करते रहने के बजाय विचारों को कार्यान्वित करने में विश्वास रखती हैं।