कोहरा खतम हो गया

इन दिनों बहुत तेज ठंड है। सुबह-सुबह घना कोहरा छाया रहता है। बिस्तर छोडऩे का मन नहीं होता है। रमन के साथ भी यही है। पलंग पर रजाई ओढ़े पड़ा हुआ है। नींद तो खुल गई है, पर उठने का मन जरा भी नहीं हो रहा है।


उसने देखा पत्नी रश्मि नहीं है। समझ गया, वह उठ गयी है। नित्यकर्म में लगी होगी। उसने जोर से आवाज लगाई- रश्मि!


रसोई से आवाज आयी- हाँ भाई हाँ! मैं उठ गई हूं। और चाय बना रही हूं। आप भी उठकर हाथ मुंह धो लें। चाय लेकर आ रही हूं।


थोड़े समय बाद वह चाय लायी। उसे इस तरह देख थोड़ी नाराजी के अंदाज में बोली- सचमुच आप तो बच्चे से भी बच्चे ही हो। अरे बच्चे भी बिना ठंड की परवाह किए समय पर उठ जाते हैं और तैयार होकर स्कूल के लिए निकल जाते हैं।


रमन हंसा और बोला- डार्लिंग! कहां तुमने बने बनाए मूड को ठंडा कर दिया। चलो अब जल्दी से चाय दो, ताकि गरम होकर हम मूड में आएं और मजा करें।


रश्मि हंसी और बोली- जनाब! लीजिए चाय और पीकर मूड में आईये मैं तो चली- बहुत काम है।


वह उठा, रजाई एक ओर फैंककर रश्मि के पास पहुंचकर बोला- ऐसी भी क्या नाराजी? देखो तुम्हारे इतना भर कह देने से जैसे ठंड ही गायब हो गई। हां बाहर अभी कोहरा जरूर है। थोड़े समय में वह भी खत्म हो जाएगा।


दोनों चाय पीने लगे। रश्मि मन में बोली- रमन! तुम्हारा कहना सही है। बाहर जो कोहरा है, वह धूप के आते ही खत्म हो जाएगा। मेरे जीवन के कोहरे को अगर तुम खत्म नहीं करते,  तो आज तक मैं उसी में भटकते रहती।


उसे याद आया। कॉलेज की पढ़ाई खत्म होते ही मम्मी-पापा के पीछे पड़ गई कि अब जल्दी से जल्दी रश्मि के लिए अच्छा लड़का देखो और इसे दुल्हन बनाकर इस घर से विदा करो।
पापा हंसकर कहते- कहां की फिकर में लगी हो। अपनी रश्मि  लिए हमें भटकना नहीं पड़ेगा। मेरी होनहार और सर्वगुण सम्पन्न बेटी के लिए रिश्तों की कमी नहीं होगी और लड़के परिवार वालों के साथ रश्मि को देखने आने लगे। पर हमेशा किसी न किसी कारण या बात पर हां होते-होते नहीं हो जाती और रिश्ता नहीं हो पाता।


बहुत लड़के रश्मि को देख चुके पर बात नहीं बन पा रही थी। मम्मी-पापा मौन रहते पर उनके चेहरे बतला देते कि वे कितने उदास हैं।


एक दिन जाने किस बात पर मम्मी ने उसे डांटा और गुस्से में बोली- न जाने किस जनम का पाप है जो ऐसे दिन देखना पड़ रहे हैं।


गुस्से में रश्मि बोली- ये सब मेरी वजह से हो रहा है। मैं आज ही और अभी यहां से चली जाती हूं। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी..!


और वह जाने लगी। मम्मी आयी उसके हाथ जोड़ते हुए बोली- बेटी! मुझे माफ कर दे। गुस्से में तुझे जाने क्या-क्या बोल गई। इस जुबान को आग लगे।


वह आई, मम्मी के हाथ पकड़कर बोली- आप एक वादा करो, आज के बाद आप मेरे विवाह को लेकर चिन्ता नहीं करेंगी और न पापा पर दबाव बनाकर कुछ कहेंगी। मम्मी ने उसके हाथ पर हाथ रख दिए।


पर जब तब मम्मी-पापा में उसके विवाह को लेकर बात होती रहती। ठंड के दिनों में एक दिन बहुत सुबह उसकी नींद खुल गई। उसने कमरे की खिड़की को थोड़े से खोला, देखा बहुत दूर तक घना कोहरा है। उसने खिड़की बंद की और मन में बोली जैसे ये घना कोहरा सभी ओर है, इसी तरह का घना कोहरा मेरे जीवन पर भी छाया हुआ है और लाख कोशिश करने के बाद भी खतम नहीं हो रहा है। जाने कब खत्म होगा और शायद कभी भी नहीं…!
इसी तरह दिन बीत रहे थे। एक दिन मम्मी ने बोला- बेटी! आज तुझे एक लड़का देखने आ रहा है। शायद तू उसकी पसंद बन जाए। सुना है लड़का अकेला है और थोड़े दिन पहले ही ट्रांसफर होकर यहां आया है।


शाम को रश्मि को देखने रमन आया। दोनों ने एक-दूसरे को पसंद कर लिया। मम्मी-पापा से वह बोला- मैं सादा विवाह पसंद करूंगा और शुभ मुहुर्त में वे एक-दूसरे के हो गए।
सुहागरात को रश्मि रमन से बोली- सचमुच आप मेरी जिंदगी में सूरज बनकर आये, और मेरे जीवन पर छाए घने कोहरे को पल में दूर कर दिया। आपका यह अहसान जिंदगी भर याद रहेगा।


हंसते हुए रमन बोला- पगली! ये क्या कह रही हो। अहसानमंद तो मुझे तुम्हारा होना चाहिए, क्योंकि निपट अकेला जानकर कोई भी लड़की और उसके घर वाले मुझसे विवाह के लिए राजी नहीं होते थे। तुमने एक पल में हां कहकर मेरे जीवन के कोहरे को खत्म किया है। चलो हम इस खूबसूरत रात को यूं ही नहीं गवाएं, क्योंकि फिर से सुबह होते ही घना कोहरा छा जाएगा।


वह हंसी और बोली- रमन! वह कोहरा छाए तो छाए हमारे जीवन में कभी कोहरा नहीं छाएगा। रमन ने उसे बांहों में भर लिया था।


अचानक रमन की आवाज से उसका ध्यान टूटा। हंसते हुए वह कह रहा है- देखो रश्मि! सूरज ने अपना राज आसमान में जमाकर कोहरे को खतम कर दिया है। वह हंसी और बोली- हां देखो आसमान से किरणें बिखराकर वह अपनी जीत पर हंस रहा है। आओ हम उसको नमन करें।


रमन हंसा, सूरज की ओर मुंह करके हाथ जोड़कर बोला- हमारे प्यारे सूरज! यूं ही हरदम दमकतें रहना और अंधियारे याने कोहरे को  समाप्त करते रहना। जीवन को सुखमय रखना। रश्मि ने भी हाथ जोड़े। रमन ने उसे बांहों में भर लिया।