समय से पिछड़ते हुए

दोनों प्रख्यात आई टी कम्पनी में तैनात थे। पैकेज भी आकर्षक था। अपने करियर के उत्थान की खातिर विवाह योग्य आयु कब निकल गई, पता ही नहीं चला। अंतत: विवाह के नाम पर समझौता करना ही दोनों की विवशता थी।


दोनों के परिजन मिले, एक दूसरे के परिवार से सम्बंधित जानकारियाँ साझा की गई। रिश्ता लगभग सुनिश्चत था, केवल रस्म अदायगी ही शेष थी। दोनों को एक दूसरे को समझने के लिए समय दिया जाना अपेक्षित था। सुखद दाम्पत्य हेतु सावधानियां बरतनी आवश्यक थी, अतीत को भूलकर आगे बढऩे के लिए संकल्पबद्ध जो होना था। सुमित ने अपने माता पिता से स्प्ष्ट कह दिया था कि सुनीति उसके लिए एक आदर्श जीवनसंगिनी सिद्ध होगी। सुनीति के परिवार को भी सुमित भा गया था, सो उसकी खूबियों का वे बढ़ चढ़ कर बखान करते नहीं अघा रहे थे।


यकायक सुनीति के परिवार ने सुमित की बुराइयाँ करनी प्रारम्भ कर दी। सुनीति की माँ ने प्रचारित किया कि सुमित का अन्यत्र प्रेम प्रसंग है, सो उससे अपनी बेटी ब्याहने का अर्थ जीते जी बेटी को नरक में धकेलने से कम नहीं। अच्छा हुआ, जो सुमित का सच समय रहते उजागर हो गया।


जागेश्वर बाबू दोनों परिवारों से परिचित थे। रिश्ते में मध्यस्थ की भूमिका का निर्वाह वही कर रहे थे। उन्होंने सुनीति के परिवार से सुमित की बुराई सुनी, तो क्रोध आना स्वाभाविक था कि सुमित के परिजनों ने उससे इतना बड़ा सच क्यों छिपाया कि सुमित का अन्यत्र प्रेम प्रसंग है। यदि ऐसा था, तो रिश्ते के प्रस्ताव पर ही सुमित के परिवार को पीछे हट जाना चाहिए था।
एक दिवस वह सुमित के घर पहुँचे, तदुपरान्त सुमित के पिता से प्रश्न किया – यदि सुमित का अन्यत्र प्रेम प्रसंग था, तब विवाह प्रस्ताव पर आप आगे बढ़े ही क्यों? स्प्ष्ट कह देते कि आपके बेटे का कहीं प्रेम प्रसंग है तथा वह अपनी प्रेमिका से ही विवाह करेगा।


सुमित के पिता बोले – जागेश्वर जी … आपसे ऐसा किसने कहा? मेरे बेटे के साथ ऐसा कुछ नहीं है, उसके अनुरूप रिश्ता लाइए, मैं तैयार हूँ।


यदि आप तैयार हैं , तो सुनीति का रिश्ता क्यों ठुकराया? वह तो सुमित की विवाह शर्तों पर खरी उतर रही थी। जागेश्वर जी ने कहा।


इतने में सुमित भी आ गया। जागेश्वर जी ने अपना वही प्रश्न सुमित के सम्मुख भी दोहराया।
सुमित गम्भीर हो गया और बोला – अंकल सत्य सुनना चाहते हो, मैं यह विचारकर चुप था, कि किसी की बेटी पर कलंक न लगे।


मतलब …? जागेश्वर बाबू चौंक गए।
मतलब यह है कि सुनीति की शर्त ही ऐसी थी, जिसे स्वीकार किया जाना सुखद दाम्पत्य के लिए कदाचित उचित नहीं ठहराया जा सकता। सुमित ने कहा।
ऐसी भी क्या शर्त थी? जागेश्वर बाबू ने पूछा।


यही कि कॉलेज के समय से ही वह किसी के साथ अनुबंधित है, जो उससे विवाह नहीं कर रहा है, उसकी शर्त यही थी, कि भले ही मैं उससे विवाह करूँ, किन्तु वह उससे अपना प्रेम सम्बंध नहीं तोड़ेगी। सुमित सपाट भाव से कह गया।


तुम सच कह रहे हो? जागेश्वर बाबू जैसे इस सत्य को पचा नहीं पा रहे थे। जी…मैं भला झूठ क्यों बोलने लगा।


मैंने तो यह प्रस्ताव भी दिया था, कि विवाह पूर्व प्रसंगों को भूलकर आगे बढ़ो, किन्तु सुनीति को यह स्वीकार नहीं था। मैं प्रसन्न हूँ कि उससे मेरा रिश्ता नहीं हुआ, यदि रिश्ता हो भी जाता तो उसका पूर्व प्रेम प्रसंग गृहस्थ पथ की शुचिता पर ही प्रश्नचिन्ह लगाए रखता। सुमित ने गहरी श्वांस छोड़ते हुए कहा।


जागेश्वर बाबू कुछ भी समझने की स्थिति में नहीं थे, सो बोले – लगता है कि समय बहुत आगे निकल गया है और हम समय के संग चल पाने में असमर्थ हो गए हैं।