कहानी – दो सहेलियां

सर्जना और उर्वीजा दो पक्की सहेलियां। हर जगह वे साथ.साथ दिखाई देतीं। कॉलेज की कैंटीन हो मॉल हो या कोई पिक्चर हॉलए पोपकॉर्न टूंगतीए हंसती खिलखिल करतीं वे दो.जिस्म एक जान वाली कहावत चरितार्थ करतीं।


पहले हंसिका भी उनके साथ ही उसे छोटे से फ्लैट में पार्टनर थी। मगर उसकी पढ़ते हुए ही शादी हो गई तो वह पढ़ाई छोड़कर ससुराल माने कि केनेडा चली गई जहां उसके ससुराल के लोग वहां के बाशिंदे बनकर सालों से सेटल्ड  थे।


दोनों के स्वभाव में जहां कुछ बातें मेल खाती थीं तो भिन्नता भी थी। गुस्सा सर्जना की नाक पर धरा रहता था जबकि उर्वीजा बहुत विनम्र और सहनशील थी। वैसे तो दोनों ही जिंदगी में कुछ बनकर दिखाने की ख्वाहिश रखती थीं। लेकिन जो आग सर्जना में थी उर्वीजा में वैसा कुछ न था। वह वक्त की धारा में बहते जाने में विश्वास रखती थी। उसका मानना था ऊपरवाले ने पहले ही सब की जिंदगी प्लान करके रखी है फिर हम तुम उसमें फेरबदल कैसे कर सकते हैं।


यहां पढ़ाई पूरी हुई तो सर्जना ने यूण्एसण् में केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में आगे की पढ़ाई के लिए एडमिशन ले लिया। दोनों सहेलियां बिछड़ते हुए बेहद उदास थीं। सर्जना भरे गले से बोली.श्आज एक शेर याद आ रहा है.बिछड़ते वक्त कोई बदगुमानी दिल में आ जाती उसे भी गम न होता मुझे भी गम न होता।


श्कमबख्त उर्वीए तू इतनी अच्छी क्यों हैघ्
इस पर उर्वीजा उससे लिपटकर रो पड़ी। फ्लाइट का समय हो गया था। दोनों ने एक.दूसरे को गुडबाय कहा। उर्वी नम आंखों से सखी को जाते हुए देखती रही।


वक्त का पहिया घूमता रहा। दोनों सखियों की जिंदगी में भी बहुत बदलाव आते गए। उर्वीजा अब दो प्यारे से बेटों की मां बन गई थी। सर्जना एक बड़ी उम्र के करोड़पति एनआरआई से शादी कर बेहद ऐशोआराम की जिंदगी गुजार रही थी। अपने माता.पिता की वह इकलौती संतान थी। उन्हें उसने लाख अपने पास बुलाने की कोशिश की मगर उनसे अपने देश की माटी का मोह न छूटा सो न छूटा। दरअसल वे बेटी के ब्याह से अप्रसन्न थे। उन्होंने उसकी इस धृष्टता के लिए उसे जीवन भर दिल से माफ नहीं किया। वे बेटी का गम लिए ही दुनिया से कूच कर गए। पहले मां गुजरी। रिश्तेदारों से खबर मिलने पर सर्जना आई थी। अपने घर वह पापा से चिरौरी करती रहीए श्पापा आप अकेले कैसे रह पाएंगे प्लीज चलिए न मेरे साथ। आपके दामाद आपको पूरा.पूरा सम्मान देंगे। लेकिन वह उन्हें मना न सकी। पत्नी की मौत का गम लिए कुछ ही दिन बाद वे भी सदा के लिए संसार से विदा हो गए।


उर्वीजा को जब अंकल आंटी के न रहने की खबर मिली तो वह भी पति के साथ गम  में शामिल होने चली आई थी। मुद्दतों बाद मिली थी सखियां मगर इतने गमगीन माहौल में वे दिल की बातें न कर पाईं।


ऐसे समय में विभोर ;उर्वीजा के पतिद्ध ने सारी जिम्मेदारी का भार खुद उठा लिया। वे केवल देखने में ही हैंडसम हीरो न थे। उनके कार्य करने का ढंगए बातचीत का सलीकाए तहजीब सभी कुछ तो सर्जना को इंप्रेसिव लग रहा था। उनमें जो ऊर्जा और जोश भरा था वह सर्जना के बूढ़े पति में न था।


जाने क्यों सर्जना को सखी के भाग्य से ईष्र्या होने लगी थी। उसका जमीर उसे कौंच रहा था लेकिन दिल का क्या करे। विभोर भी तो उसे जिन मीठी नजरों से देखते थे वह अपने पर काबू नहीं रख पाती थी। ऐशपूर्ण जिंदगीए ब्यूटी पार्लरों का कमाल और करोड़ों में खेलने वाली का रख.रखाव। सर्जना में विभोर को गजब की कशिश नजर आ रही थी। ऐसे ही घर समेटते.फोर्मेलिटीज निभाते वे कब एक.दूसरे की बांहों में समा गए वे स्वयं भी जान न पाए। आग दोनों तरफ बराबर लगी थी।


विदेश जाने के बाद भी सर्जना विभोर के बराबर कांटेक्ट में थी। मौका मिलते ही वे नेट पर खूब चैटिंग करते। उसका बूढ़ा पति उसके हाथों की कठपुतली बना रहता था। अपनी कमजोरियों के चलते वह बीबी के आगे शर्मसार रहता। सर्जना उसका पूरा फायदा उठाती। वह दोनों हाथों से उसकी दौलत ऐशपरस्ती पर लुटाती। फिर पति को किसी तरह मनाकर वह विभोर के आकर्षण में भारत लौट आई।


हालांकि मुंबई आकर उसकी पूरी कोशिश थी कि उनके अफेयर की भनक उसकी प्रिय सखी उर्वीजा को ना लगे लेकिन ऐसी बातें भला कहां छुपती हैं। उर्वीजा को यह तो पता लग चुका था कि पति का अफेयर चल रहा है वह उसे चीट कर रहा है। लेकिन वह दूसरी औरत कौन है यह उसे मालूम नहीं हो सका था।


उसने पति को रंगे हाथों पकडऩे के लिए प्लान बनाया। मायके जाने के बहाने वह ट्रेन से एक ही स्टेशन से वापस लौट आई। आकर उसने होटल में डेरा जमाया। ठीक आधी रात को वह अपने घर की बेल बजा रही थी। अब इस समय कौन है विभोर के साथघ् दोनों चौंक उठे। बेल लगातार बज रही थी। विभोर को दरवाजा खोलना पड़ा। सामने उर्वीजा खड़ी थी। विभोर को एक तरफ कर झपटते हुए वह अपने बैडरुम में पहुंची। सामने देखती है अस्तव्यस्त हालत में सर्जना उसके बिस्तर पर थी।


उर्वीजा को अपनी ही आंखों पर यकीन नहीं आ रहा था। उसके मुंह से इतना ही निकला. तुमए श्सर्जनाश् बस इतना ही कहकर वह वहीं पास रखे सोफे पर धम्म से बैठ गई।