सौभाग्य को बढ़ाता है, प्रातःकालीन हथेली-दर्शन

मनुष्य की हथेली उसके जीवन के भविष्य को अक्षरशः सत्य बताने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पुरूष की दांयी हाथ की हथेली और नारी की बांयी हाथ की हथेली की रेखाओं में उसके जीवन से संबंधित अनेक रहस्य छिपे होते हैं।
हस्तरेखा विज्ञान एक समुद्र की तरह अनन्त रहस्यों को अपने गर्भ में समेटे भूत, भविष्य एवं वर्तमान से संबंधित, मानव से संबधित एक ऐसा विज्ञान है जो आदिकाल से लेकर आज तक उन्हीं तथ्यों को प्रकट करता आया है जो वास्तविक हैं। हां, यह बात अलग है कि आज के कुछ ‘पोंगा पंडितों’ ने हस्त रेखा विज्ञान से नाजायज लाभ उठाने की कामना से इसके मूल ध्येय पर प्रश्नचिन्ह अवश्य लगा दिया है।
शास्त्रों का कथन है कि हथेली के अग्रिम भाग में लक्ष्मी का वास है, कर अर्थात् हथेली के मध्य (बीच वाले) भाग में केशव अर्थात् श्री विष्णु का वास है तथा हथेली के सबसे नीचे वाले भाग में ब्रह्मा का वास होता है, अतएव प्रातः काल उठते ही सभी को अपनी दोनों हथेलियों के दर्शन करने चाहिए। इससे व्यक्ति का सम्पूर्ण दिन अच्छा बीतता है-
‘‘कराग्रे वसेत् लक्ष्मी, करमध्ये तु केशवः।
करमूले वसेत् ब्रह्म, प्रभाते कर दर्शनम्।।’’
हथेली का रंग दिन में तीन बार तथा उसमें स्थित रेखाएं तीन माह में एक बार बदल जाती हैं। ये परिवर्तन नाड़ी संस्थान द्वारा जैव-विद्युत के माध्यम से संचालित होते हैं। हथेली से व्यक्ति की प्रकृति का अध्ययन किया जा सकता है। प्रातः जागरण के पश्चात् आप अपनी प्रकृति का अध्ययन स्वयं कर सकते हैं।
अगर आपकी हथेली की त्वचा रूखी, हथेली में मांस-रक्त की न्यूनता, नाखूनों का रंग नीला, शीघ्र टूट जानेवाले, चमक रहित तथा अंगुलियां पतली हों तो वह हथेली ‘वातल हथेली’ कहलाती है। हथेली की त्वचा ढीली, रंग मटमैला हो तो आजीवन वात-विकारां, जोड़ां में दर्द, पेट में गैस, घबराहट एवं निराशा से व्यक्ति पीड़ित रहता है। ऐसी हथेली में असर शनि ग्रह की प्रधानता होती है।
प्रायः ऐसे व्यक्ति अन्तर्मुखी होते हैं तथा उनमें गंभीरता, उदासीनता, एकांतवास, कायरता आदि की भावनाएं देखी जाती हैं। ‘वातल हथेली’ को प्रातः काल देखते रहने से शारीरिक एवं मानसिक परेशानियां दूर होती है।
जिस हथेली का रंग गहरा लाल या पीला होता है तथा त्वचा चुस्त एवं चमकदार होती है, उसकी हथेली ‘पित्तल हथेली’ कहलाती है। यह हथेली अगर दृढ़ पीली तथा रूखी हो तो पित्त विकार, त्वचा विकार, ज्वर जलन, दाह आदि कष्ट होते हैं। ऐसे लोग स्वभाव से बहिर्मुखी, क्रोधी, एवं आक्रामक होते हैं। हथेली का प्रातः दर्शन करते रहने से सभी दोषों का नाश होता है।
जिस हथेली की त्वचा नर्म, हथेली भरी हुई एवं मांसल, रंग सफेद-गुलाबी, नाखून सफेद-गुलाबी होते हैं, वह हथेली ‘श्लेष्मल हथेली’ कहलाती है। ऐसे हथेली वाले लोग कफ विकार, खांसी, बादी, मधुमेह, सूजन तथा हृदय रोग से पीड़ित होते हैं। वे स्वभाव से उदार, सहनशील, विद्वान, तथा धैर्यवान् होते हैं। ऐसे व्यक्ति जब प्रातः काल अपनी हथेली के दर्शन करते हैं तो उनका सौभाग्य बढ़ता है तथा उनमें स्थित बीमारियाँ दूर होती हैं।
प्रातः काल उठते ही जिस स्त्रा-पुरूष की नजर सर्वप्रथम हथेली के अग्र (आगे वाले) भाग पर पड़ती है, उसे उस दिन कुछ न कुछ आमदनी अवश्य ही होती है। इसी प्रकार हथेली के मध्य भाग पर नजर पड़ने पर इच्छा की पूर्ति, मित्रों से मेलजोल तथा हथेली के मूलभाग (सबसे नीचे) प्रथम नजर पड़ने पर परेशानियों से छुटकारा मिलने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
अध्ययन करने वाले बच्चों को प्रातः काल उठकर अपनी हथेलियों का दर्शन ‘कराग्रे वसते लक्ष्मी’ मंत्रा को तीन बार पढ़कर अवश्य करना चाहिए। इसके बाद भूमि को प्रणाम करके, उस पर पैर रखें तथा माता एवं पिता के चरणों को छूकर प्रणाम करना चाहिए। इससे विद्या, बुद्धि एवं बल की वृद्धि होती है। साथ ही वह दिन उनका बहुत अच्छा बीतता है। जो व्यक्ति प्रतिदिन प्रातः उठकर अपनी हथेलियों के प्रथम दर्शन करता है, वह संसार की सभी बाधाओं को पराजित कर डालता है।