पुरूष की अपेक्षा नारियों का तन एवं मन दोनों ही अत्यन्त कोमल होते हैं। गर्भाशय रूपी विशेष अंग के कारण नारी की शारीरिक संरचना भी पुरूष से भिन्न एवं अत्यंत ही जटिल होती है। इस भिन्नता एवं कोमलता के कारणों से ही प्रायः नारी अनेकानेक स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझती रहती है।
महिलाओं को जो व्याधियां सबसे अधिक परेशान करती हैं, उनमें एक विशेष व्याधि कमर या पीठ का दर्द भी है। यह रोग अत्यंत ही पीड़ादायक होता है। प्रश्न यह उठता है कि कमरदर्द होता क्यों है? जब इसके कारणों की खोजबीन की जाती है तो ज्ञात होता है कि छोटी-छोटी लापरवाहियों एवं गलतियों के निरंतर होते रहने से ही यह रोग उग्र रूप धारण करके महिलाओं को कष्ट देने लगता है।
महिलाओं में कमर दर्द होने के अनेक कारण होते हैं। प्रायः अधिकतर महिलायें श्वेतप्रदर एवं रक्तप्रदर की बीमारी से परेशान रहती हैं। खान-पान, रहन-सहन तथा सामाजिक वातावरण के दुष्प्रभावों के कारण इन बीमारियों से ग्रस्त होकर नवयुवतियां धीरे-धीरे शारीरिक क्षमताओं से इस प्रकार क्षीण होने लगती हैं जिस प्रकार दीमक लगी लकड़ी। जब तक श्वेतप्रदर की बीमारी रहती है, कमर दर्द समाप्त नहीं हो पाता और महिलाएं अस्वस्थ होती चली जाती हैं।
रक्तप्रदर का प्रकोप भी महिलाओं के लिए कम घातक नहीं होता। मासिक स्राव में अनियमितता आने पर कभी-कभी रक्त महीने भर भी निकलता रहता है। इस अनियमित रक्तस्राव के कारण महिलाएं मानसिक एवं शारीरिक, दोनों ही प्रकार के तनावों से ग्रस्त हो जाती हैं। फलस्वरूप उनका ठीक से उठना-बैठना तक मुश्किल होने लगता है।
झाडू लगाना, चौका-बरतन करना, कपड़े धोना आदि कई ऐसे काम भी हैं, जो महिलाओं को रोज झुककर ही करने होते हैं। इससे उनकी मांस-पेशियों पर दबाव पड़ता रहता है और कमरदर्द होना प्रारंभ हो जाता है। कमर दर्द के साथ ही पीठ का दर्द जब शुरू हो जाता है, तो यह स्थिति महिलाओं के लिए अत्यंत घातक एवं गंभीर हो जाती है।
शक्तिशाली एलोपैथिक दवाओं एवं नवविकसित चिकित्सा विधियों के बढ़ते प्रचलनों के कारण भी महिलाएं पीठ एवं कमर दर्द की शिकार हो जाती हैं। इस प्रकार की औषधियां एवं विधियां रोगी को तत्काल आराम पहुंचाकर राहत तो अवश्य प्रदान करती हैं किंतु वे अनजाने में ही कई शारीरिक विकारों को भी जन्म दे डालती हैं जिनके कारण एलर्जी, रक्ताल्पता (अनीमिया), कैंसर, वृक्क रोग, स्तन शैथिल्य, कामह्रास आदि अनेक प्रकार की बीमारियां महिलाओं में देखने को मिल जाती हैं।
गर्भावस्था में ऑपरेशन के दौरान (सीजेरियन) बेहोश करने के लिए जो सुई पीठ की हड्डियों में लगायी जाती है, उससे साठ प्रतिशत महिलाओं में पीठ या कमर का दर्द ‘सेक्रोइलियाइटिस’ विकसित हो जाता है। एक तो गर्भवती स्त्रा वैसे भी मानसिक तनाव से गुजर रही होती है, ऊपर से जिस प्रकार झुका कर उसकी पीठ की हड्डियों में सुई द्वारा बेहोशी की दवा को प्रवेश कराया जाता है, उससे मांसपेशियां कमजोर पड़ जाती हैं और तंतुओं के हटने से कमर या पीठ का दर्द उत्पन्न हो जाता है।
कभी-कभी ऐसा भी होता है कि ‘स्पाइनल एनस्थीसिया’ जो गर्भावस्था के ऑपरेशन के दौरान प्रयोग किया जाता है, के दुष्परिणामों के कारण भीषण कमर दर्द के साथ-साथ पैरों तथा हाथों में लकवा जैसी स्थिति आ जाती है और महिला का स्वस्थ जीवन तबाह हो जाता है।
कमर दर्द के अन्य कारकों में साइकिल या दो पहिये के वाहनों को चलाना, गद्देदार बिस्तरों पर सोना, ऊंचा तकिया लगाना, आदि जैसे अनेक कारण होते हैं। महानगरों एवं शहरी जीवन में साइकिल एवं दोपहिये वाहन को चलाकर लगभग चालीस प्रतिशत महिलाएं नित्य ही आया जाया करती हैं। महिलाओं की आंतरिक संरचनाओं पर साइकिल चलाने का बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है तथा इससे अनेक बीमारियों के साथ-साथ कमर व पीठ दर्द की परेशानियां भी आ जाया करती हैं।
कमर या पीठ दर्द की परेशानियों का सामना महिलाओं को नहीं करना पड़े, इसके लिए यह आवश्यक है कि उन्हें खान-पान, आहार-विहार के साथ-साथ योग एवं व्यायाम का भी आवश्यक ध्यान रखना चाहिए। मासिक की अनियमितता या श्वेतप्रदर जैसी बीमारियों के होते ही चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए। लापरवाही उचित नहीं होती।
कठोर बिस्तर पर सोना, तकिया नहीं लगाना, स्पंज की कुर्सियों पर न बैठना आदि भी कमर या पीठ दर्द से बचने के सहज उपाय हो सकते हैं।