रतलाम में पूर्व केंद्रीय मंत्री भूरिया एवं मध्य प्रदेश के वन मंत्री की पत्नी अनीता के बीच मुकाबला

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इंदौर (मध्यप्रदेश),  रतलाम लोकसभा क्षेत्र में वैसे तो मुख्य चुनावी भिड़ंत पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया और मध्यप्रदेश के वन मंत्री नागर सिंह चौहान की पत्नी अनीता चौहान के बीच है, पर इसकी पृष्ठभूमि में क्रमश: कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दोनों उम्मीदवारों के परिवारों में इस आदिवासी बहुल इलाके पर वर्चस्व की जंग भी छिड़ी है।

इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भूरिया की उम्मीदवारी की घोषणा के बाद उनके विधायक बेटे विक्रांत ने अपने पिता के लोकसभा चुनाव लड़ने का हवाला देते हुए युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष का पद आठ अप्रैल को छोड़ दिया था।

झाबुआ के कांग्रेस विधायक विक्रांत भूरिया ने भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष श्रीनिवास बीवी को लिखे पत्र में कहा था कि पिता की उम्मीदवारी के चलते उन्हें अपना अधिकतम समय रतलाम लोकसभा क्षेत्र में देना पड़ रहा है।

राज्य के वन मंत्री नागर सिंह चौहान भी अपनी पत्नी की जीत के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं और अनीता की उम्मीदवारी की घोषणा के बाद से उनके चुनाव अभियान के अधिकांश सूत्र उन्हीं के हाथ में हैं।

रतलाम सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित है। लोकसभा चुनाव के चौथे चरण के तहत इस सीट पर 13 मई को होने वाले मतदान के लिए करीब 20.94 लाख लोग पात्र हैं। इनमें शामिल भील और भिलाला समुदायों के आदिवासियों की चुनाव परिणाम तय करने में निर्णायक भूमिका होती है।

कांग्रेस की अगुवाई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में मंत्री रहे भूरिया (73) लोकसभा में पांच बार रतलाम सीट की नुमाइंदगी कर चुके हैं। हालांकि, 2014 और 2019 के आम चुनावों में उन्हें इस सीट पर लगातार दो बार हार का सामना करना पड़ा था। इसके बावजूद कांग्रेस ने एक बार फिर अपने इन दिग्गज आदिवासी नेता पर दांव लगाया है।

भूरिया ने भाजपा प्रत्याशी पर निशाना साधते हुए ‘‘पीटीआई-भाषा’’ से कहा,‘‘वन मंत्री नागर सिंह चौहान की पत्नी अनीता का रतलाम क्षेत्र के विकास में कोई योगदान नहीं है। वह एक गृहिणी मात्र हैं।’’

उन्होंने केंद्र और राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा पर रतलाम क्षेत्र की अनदेखी का आरोप लगाते हुए कहा कि इस आदिवासी बहुल इलाके की सड़कें, हैंडपंप, तालाब और बांध कांग्रेस शासनकाल की देन हैं।

भूरिया ने कहा,‘‘रोजगार के अभाव के चलते अब भी रतलाम क्षेत्र के आदिवासियों को मजदूरी के लिए गुजरात और राजस्थान जाना पड़ रहा है। हजारों पदों पर सरकारी भर्तियां अटकी पड़ी हैं।’’

रतलाम सीट के मतदाताओं में हर 1,000 पुरुषों पर 1,014 महिलाएं हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की निगाह में अनीता नागर सिंह चौहान (39) को भाजपा द्वारा इस सीट से उम्मीदवारी की कमान सौंपने के पीछे महिला मतदाताओं की निर्णायक संख्या का अहम कारक भी शामिल है।

कानून में स्नातकोत्तर उपाधि हासिल करने वाली अनीता, अलीराजपुर जिला पंचायत की अध्यक्ष हैं। रतलाम सीट पर जीत की ‘‘हैट्रिक’’ बनाने के लक्ष्य में जुटी भाजपा ने एक बड़े कदम के तहत अपने निवर्तमान सांसद गुमान सिंह डामोर का टिकट काटकर अनीता को टिकट दिया है।

संयत लहजे में बात करने वाली अनीता ने कहा कि उन्हें भाजपा संगठन की मजबूती पर पूरा भरोसा है और वह कांग्रेस उम्मीदवार भूरिया को अपने सामने कोई चुनौती नहीं मानतीं क्योंकि भाजपा में सही मायनों में प्रत्याशी नहीं, बल्कि कार्यकर्ता चुनाव लड़ते हैं।

उन्होंने कहा,‘‘हम रतलाम लोकसभा क्षेत्र से पलायन करके दूसरे राज्यों का रुख करने वाले आदिवासी मजदूरों से बात कर रहे हैं कि उनके गृह क्षेत्र में किस तरह के रोजगार की व्यवस्था की जा सकती है। हम चुनाव के बाद इन मजदूरों के लिए रतलाम क्षेत्र में रोजगार के नये मौके पैदा करेंगे।’’

रतलाम सीट के दोनों मुख्य प्रतिद्वंद्वियों के परिजनों की भी एक-दूसरे के खिलाफ जुबानी जंग जारी है। भूरिया के विधायक बेटे विक्रांत ने कहा,”लोकसभा चुनाव में भले ही वन मंत्री नागर सिंह चौहान की पत्नी अनीता उम्मीदवार हैं, लेकिन परदे के पीछे वन मंत्री ही चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा परिवारवाद के खिलाफ कोरी बातें जरूर करती है, लेकिन खुद भाजपा ने एक मंत्री की पत्नी को उम्मीदवार बनाया है।”

वन मंत्री चौहान ने कहा,‘‘यह सोचना कतई सही नहीं है कि अनीता को भाजपा ने महज इसलिए टिकट दिया है कि वह मेरी पत्नी हैं। वह पिछले 20 साल से भाजपा की सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में काम कर रही हैं। परिवारवाद तो कांग्रेस में है।’’

रतलाम सीट का भूगोल अन्य इलाकों से बेहद अलग है। रतलाम, झाबुआ और अलीराजपुर जिलों की कुल आठ विधानसभा सीट समेटने वाले इस लोकसभा क्षेत्र में आदिवासियों की बड़ी आबादी दुर्गम जगहों पर स्थित ‘‘फलियों’’ (छितरी हुई बसाहट जिनमें घाटियों पर घर बने होते हैं) में रहती है जहां बिजली, पानी और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी है।

रोजगार के अभाव के कारण इन आदिवासियों को आजीविका के लिए गुजरात और अन्य राज्यों का रुख करना पड़ता है। यही वजह है कि रोजगार और बुनियादी सुविधाओं के मुद्दे रतलाम के चुनावी रण में इस बार भी सबसे अहम हैं।

 

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