अच्छे जप और सेवा से प्रसन्न रहते हैं प्रभु

जप क्या है? अक्सर कई लोगों को इसका सही अर्थ नहीं पता। जप है भगवान के नाम को बार-बार याद कर उनके और निकट होना, उनके चरणों में स्थान पाना,

उनका दास बनना। प्रश्न उठता है कि अच्छा जप कैसे किया जाए? जप करने का सबका अपना तरीका है। कोई हर समय काम करते हुए भी जाप करता रहता है, मन ही मन उस प्रभु को याद करता रहता है। चाहे हाथ कुछ भी कर रहे हों, वो स्वयं कहीं भी हो, बस जुबान पर प्रभु का सिमरन चलता रहता है।


कुछ लोग माला फेर कर प्रभु को याद करते हैं, कुछ माला न लेकर उंगलियां पर गिनकर प्रभु का सिमरन करते हैं। सभी तरीके सही हैं जैसा भी आपको सुविधाजनक लगे। श्रील प्रभुपाद जी इस्कान के संस्थापक के अनुसार, ‘भक्ति में हमारी 99 प्रतिशत प्रगति जप पर निर्भर करती है। यह साधक के लिए प्राणों के समान होती है।’
इस्कॉन में हरे कृष्ण महामंत्रा का जप करने को कहा जाता है। एक भक्त को दिन में कम से कम 16 माला जाप महामंत्रा का करना होता है। कृष्ण महामंत्रा इस प्रकार है, ‘हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे।’ इस महामंत्रा का अर्थ है, हे परम आकर्षक भगवान श्री कृष्ण। हे श्रीकृष्ण की अंतरंग शक्ति श्रीमती राधा रानी। कृपया मुझे अपनी दिव्य सेवा में संलग्न करें।


श्रील प्रभुपाद जी के अनुसार, ‘हमें हरे कृष्ण महामंत्रा का जप उसी प्रकार करना चाहिए जैसे एक शिशु अपनी माता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए रोता है।’ इसी प्रकार जब हम कृष्ण महामंत्रा का जप करते हैं तो हम भगवान को पुकारते हैं और भगवान हमारी पुकार सुनकर तुरंत हमारे समक्ष प्रकट हो जाते हैं और पूछते हैं, हे प्रिय भक्त तुम्हें क्या चाहिए?


अगर हम भौतिक जीवन की वृद्धि चाहते हैं तो हम कहेंगे धन, ख्याति, पुत्रा, पति, पत्नी, बेटी, बढ़िया घर, गाड़ी और आराम का सभी सामान, वहीं, अगर हम अध्यात्मिक वृद्धि चाहते हैं तो कहेंगे, ‘हे परम आकर्षक भगवान श्रीकृष्ण! और आपकी अंतरंगा शक्ति श्रीमती राधारानी जी। मुझे अपनी सेवा का अवसर दें, मुझे अपने चरणों में स्थान दें ताकि मैं दिव्य सेवा में लग सकूं। यही अच्छे जप का रहस्य है।


जप का अर्थ है भगवान के नाम पर अपना ध्यान केंद्रित करना, अपने मन को बांधना। भगवान कृष्ण क्या स्वयं को पकड़वाये जाने की अनुमति देते हैं या किसी से बंधना स्वीकार करते हैं? यह संभव तो है पर वे तब पकड़े जाते हैं या बंधना स्वीकार करते हैं जब उन्हें विश्वास हो जाए कि भक्त मुझसे ईर्ष्या नहीं करेगा, बदले में कुछ भी चाहे बिना मेरी सेवा में ही संतोष प्राप्त करेगा।


शक्तिशाली दुर्योधन भी भगवान को नहीं बांध पाये थे पर यशोदा माता ने अपनी सेवा और प्यार से उन्हें सरलता से बांध लिया था। इसका अर्थ है सेवा हमारे और श्रीकृष्ण के बीच की कड़ी है। सेवा और जप भक्ति रूपी रेलगाड़ी की दो पटरियां हैं। इन्हें अलग करके भक्ति प्राप्त नहीं की जा सकती। जप करके हम प्रभु की सेवा की मांग कर सकते हैं। हरिनाम लेने का फल सेवा होना चाहिए। सेवा करने की इच्छा ही हमारे जप की परीक्षा है। जब कोई उत्साहपूर्वक भगवान की सेवा करता है तो समझ लेना चाहिए वह श्री कृष्ण के नामों के जप का फल प्राप्त कर रहा है।


हमें स्वयं को तिनके से भी अधिक नम्र, वृक्ष से अधिक सहनशील मानते हुए, स्वयं के लिए किसी भी मान की इच्छा न रखते हुए, सभी का पूर्ण सम्मान करते हुए सतत हरिनाम का कीर्तन करते रहना चाहिए। तभी हमें विश्वास होगा कि हमारा जप अच्छा है और भगवान हमसे प्रसन्न रहेंगे।