जीवन के बदलते परिवेश

चारूलता मेरे साथ-साथ चल रही थी। बगीचे में सेवंती, जासवंती, हरी दूब, गुलाब की अद्भुत छटा देखते ही मैंने पूछा चारु इन बगीचों को देखने के लिए कितनी माली हैं? प्रश्न का उत्तर मर्मस्पर्शी था। दीदी, वृद्धाश्रम के सभी वृद्ध महिला-पुरुष अपना आस्था भरा जीवन व्यतीत  कर रहे हैं। अब जीवन के कगार पर बैठे भला आस्थाहीन जीवन क्यों बिताएं। अत: वे ही इस बगिया के माली हैं। यह उनके ही परिश्रम का प्रतिफल है। देखो दूर जो कोने में पीला सेवंती का फूल लगा है वह रज्जू दादा की मेहनत है। खिले फूल ही वृद्धाश्रम के आश्रमवासियों के जीवन की महक है। वे ही इस आश्रम के बाग के मालिक हैं। दुनिया की बावली भीड़ से दूर ये अपनी सच्ची बगिया की खोज करते हैं? खिले महकते पुष्पों में और साथियों की मुस्कान में अपने बीते दिन आसानी से भूल जाते हैं।


वृद्ध महिला कक्ष में प्रवेश करते ही कुछ वृद्धाओं ने स्वयमेव हाथ जोड़कर नमस्कार किया। दृश्य को देखकर हृदय सहानुभूति से द्रवित हो उठा। बेटे, बहू, पोते, बेटियों के बीच की इनकी मधुर यादें इन्हें सताती होंगी। इन यादों से महिलाएं अधिक पीडि़त होती हैं।
क्या ये सभी गरीब घर की हैं। ये दूखी महिलाएं हैं? शायद चारु को ऐसा प्रश्न अच्छा नहीं लगा। उसने कहा, नहीं ये संपन्न घर के हैं।


 कुछ स्वेच्छा से घर त्याग देती हैं। कुछ घर के जवान बेटों द्वारा छोड़ दी जाती हैं, मेरी दृष्टि से इनके प्रति लाचारी का भाव नहीं रखना चाहिए, क्योंकि प्रत्येक वृद्धा की अपनी कहानी है। कहानी का प्रत्येक पहलू इनकी खुली जिंदगी है। किंतु हम इन्हें बिताये दिन जो  बुरे हों, याद करने के लिए मना करते हैं। सामने देखो बाग के  दूसरे छोर पर एक मंच है। मंच के नीचे ध्यान कक्ष है। प्रात: ध्यान हेतु सबको  यहां एकत्रित होना होता है।


वृद्धों के मन में घर परिवार को लेकर कई विचार रहते हैं, जैसे, लड़का बुढ़ापे की लकड़ी हो या मरते समय मुंह में गंजा-जल देना वाला हो, लड़की का कन्यादान नहीं हो पाया है या बहू ने यह अच्छा या यह बुरा किया। यहां बताया जाता है कि सब विचार भूलकर अपने परम पिता को याद करो। वे ही आपके लिए सब कुछ हैं। ऐसा प्रेरणादायी कक्ष देखकर मुझे एक घटना याद आई हमारे पड़ोसी उर्मिला ताई  का परिवार बड़ा था। पति के स्वर्गवासी होने पर कुछ ही दिनों में आस-पास कहती पाई गई कि मेरे तो चार लड़के, दो लड़कियां है। लड़कियां अपने घर में खुश हैं।


 मेरी भी थोड़ी-सी जिंदगी अपने चार बेटों में मजे से गुजर जाएगी। उर्मिला ताई ने अपने मन को समझाकर तसल्ली दी थी। जीवन के नए मोड़ से गुजरना चाहती थीं किंतु चंद दिनों में ही पता चला कि सास-बहुओं का झगड़ा हुआ तो बेटों ने मां का  घर से बाहर निकाल दिया। छोटे बेटे ने अब उसके नाम से कुछ पैसा जमा कर वृद्धाश्रम में रख दिया है।


आज हम जिस माहौल में रहते हैं, जिस दौर से गुजरते हैं। उससे अच्छे गुण लेना बहुत मुश्किल काम है, विधवा रजनी मां ने अपने बेटों को उच्च शिक्षा देने के लिए पूरी जिंदगी होम कर दी। जब होश में आई तो पता चला बेटों ने अंग्रेजी ललनाओं के साथ विदेश में घर बसा लिया है। वे एकदम अकेली हैं। संपत्ति का बचा भाग वृद्धाश्रम में रखकर प्रतिष्ठा का जीवन जीना चाहती हैं। परिवर्तन को आत्मसात करने में मनुष्य माहिर है किंतु मन को कसैला बनाने से वंचित नहीं कर सकता।


चारु ने कहा, वह देखो दीदी सामने हॉल के पास भोजनालय।  वृद्धों में कुछ ऐसा कहने वाले भी हैं- ‘आय एम रिटायर्ड बट नॉट टायर्ड’ सभी जम के सेवा देते हैं। प्रसन्नता से खाना बनाते है। जीवन की संध्या के समय भी वे कर्मशील बने रहना चाहते हैं।


वाचनालय की ओर संकेत कर उसने उन सब विद्वान वृद्धजनों के नाम गिना दिये जिन्होंने अपनी उम्र में अनेक पुस्तकों का वाचन किया। वृद्धों को इन पुस्तकों का आनंद समझाते इनके दिन बीत जाते हैं।


मैंने पूछा ये वृद्धाएं निश्चित ही चिड़चिड़ी होंगी। उसने कहा इनकी दिनचर्या में ऐसा समय ही नहीं है जिसमें इन्हें अपनी घटनाओं को याद कर बेकाबू होना पड़े। उन्हें जीने का हक है समाज में पहले जैसा सम्मानपूर्वक स्थान बना रहे। ऐसा ही भावनाओं का प्रसार करने वाला वातावरण यहां निर्माण किया जाता है।


चारु ने इस वृद्धाश्रम के मनोरम वातावरण से परिचित करवा दिया। आप कहां रहती हैं? पूछने पर उसने सहज कहा इन वृद्धों में मेरी मां, अम्मा, भाई, अब्बाजान, दादा सभी हैं।
अब उसके  अधिक परिचय की मुझे आवश्यकता नहीं थी। जिसने सेवार्थ स्वयं को समर्पित किया। जिसके इतनो माता-पिता है उसके सच्चे माता-पिता के परिचय की आवश्यकता नहीं थी।


मानो वह सबको यह संदेश दे रही हो नई पीढ़ी को अपने जैसा जीने दो। आपकी जिंदगी उन पर हावी करने की कोशिश मत करो। वृद्धावस्था के पूर्व ही वानप्रस्थाश्रम की तैयारी ऐसी करो कि पीछे मुड़कर देखने की इच्छा न हो, क्योंकि मानमाफिक जिंदगी व्यतीत करने के लिए हर इंसान पूर्णरूप से स्वतंत्र है।


वृद्धाश्रम के बाहर आते हुए श्यामपट पर पढ़ा, आज का विचार प्रतिपल सोचो मैं आत्मा हूं और मेरा पिता परमात्मा है। वह चाहता है मेरा बेटा सदा खुश रहे।
ये विचार एहसास दिला रहे हैं बेटे का नहीं ईश्वर का चिंतन करो। मैंने देखा चारु अपनी लंबी उंगलियों को एक साथ जोड़कर नमस्ते कर रही थी।