बालक बीरबल की बुद्धिमानी

जिस समय बालक बीरबल की उम्र पंद्रह साल की हुई, माता और पिता दोनों न मालूम किस ‘अगोचर प्रदेश’ को चले गये। उस समय ‘गरीब बीरबल’ के पास केवल पचास रूपए थे। पढ़े-लिखे भी वे बहुत कम थे। खूब सोच-समझकर बीरबल ने पान की दुकान खोली और वह भी किले के पास।
उस समय बादशाह अकबर आगरे के किले में निवास कर रहे थे। बालक बीरबल अपनी पान की दुकान पर बैठा सुपारी काट रहा था। बीरबल ने देखा कि किले से निकलकर एक ‘मियां’ लपकता हुआ आ रहा है। वह मियां आकर दुकान के सामने खड़ा हो गया और बोला-‘पिंडी जी! आपके पास चूना है?
कितना चाहिए? ‘बीरबल ने पूछा
‘पाव भर भीगा हुआ तर चूना चाहिए।’
जितना चाहो ले जाओ, पर यह तो बताओ कि पाव भर चूने की क्यों जरूरत पड़ी?
क्या बतलाऊं महाराज! बादशाह सलामत गुसल फरमाकर जो निकले तो मैंने पान पेश किया। उसे खाते-खाते वे एक कुर्सी पर बैठ गए और हुक्म दिया कि ‘पाव भर चूना ले आओ।’
’मगर अपने लिए एक कफन’ भी साथ लेते जाना!’
अरे पिंडी जी! यह आप क्या फरमाते हैं?
‘तुम बादशाह के लिए पान लगाने वाले नौकर हो?’
जी, महाराज जी!
‘कितने दिनों से?’
कोई पंद्रह साल हो गए।’
‘फिर भी पान लगाना नहीं आया?
‘आपका मतलब’?
‘मतलब यह है कि यह पाव भर चूना तुम्हें खिलाया जाएगा।’
तब तो मैं मर जाऊंगा।
इसी के लिए मैंने कफन ले जाने की सलाह दी थी।
‘आखिर मेरा कसूर?’
पान में चूना ज्यादा लगा दिया। बादशाह की जीभ कट गयी है। चूने की तीव्रता से तुमको परिचित कराने की आवश्यकता समझी गयी। यह पाव भर चूना तुम्हें खिलाया जाएगा।’
सच कहते हो-पिंडीजी! तुम ‘जोतसी’ हो। सारा हाल आईना हो गया। अल्लाह तुम्हें बरकत दे। अब मेरे बचने का भी तो कोई उपाय बताओ ज्योतिषी महाराज।
एक सेर घी पी लो, फिर चूना ले जाओ। जब बादशाह कहे कि चूना खाओ तो बेधड़क खा लेना। चूने का शत्रा घी है। घी के प्रभाव से न तो तुम्हारी जबान (जीभ) फटेगी और न कलेजा कटेगा। मरोगे भी नहीं। चूने का जहर घी मारेगा और घी का जहर चूना मारेगा। दोनों लड़कर मर जाएंगे।
‘खुदा तुम्हारा दर्जा ऊंचा करे। तुम्हारी दुकान में घी भी है?
हां-अपने खाने के लिए कल दो सेर घी लिया था। एक सेर तुम ले लो। बीरबल ने तौलकर पाव भर चूना और सेर भर घी सामने रख दिया।
दोनों चीजों के दाम देकर मियां ने घी पी लिया और चूना लेकर महल की तरफ भागा।
बादशाह ने पूछा-‘चूना लाया!’
जी हां-गरीब परवर! खोजा बोला।
यहीं बैठकर खा जाओ। बादशाह ने हुक्म दे दिया।
खोजा सामने बैठ गया। बादशाह को पाव भर चूना दिखाकर सब खा गया।
शाम को जब वही खोजा, बादशाह को पान देने गया, तब बादशाह ने पूछा-‘क्यों मुनीर! तू मरा नहीं?’ तब खोजा ने सारी दास्तान सुनाई।
बादशाह अकबर ने बीरबल को अपने दरबार में बुलाया। उसे शाही सिंहासन की दाहिनी ओर एक छोटे सिंहासन पर बैठने की जगह दी गई। शेष आठों मंत्रा उनके नीचे चौकियों पर बैठाये गए। अकबर और बीरबल का साथ बहुत दिनों तक रहा।