वायु प्रदूषण- केवल पराली ही कारण नहीं है

वायु प्रदूषण निरंतर गंभीर समस्या बनी हुई है। 11 दिसंबर को सर्वोच्च न्यायालय ने पराली जलाने की घटनाओं के आंकड़े देखते हुए कहा है कि- अभी भी काफी पराली जल रही है, यह हर हाल में रुकना चाहिए। ध्यातव्य है कि विगत दिनों भी वायु प्रदूषण पर चिंता व्यक्त करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि- राज्य कोई भी तरीका अपनाएं लेकिन पराली जलाने की घटनाएं तुरंत रुकनी चाहिए। दिल्ली एनसीआर में वायु की गुणवत्ता निरंतर बहुत खराब श्रेणी में बरकरार है। आज भी एनसीआर के फरीदाबाद, गाजियाबाद,ग्रेटर नोएडा, गुरुग्राम और नोएडा में एक्यूआइ लगभग 300 के पार ही चल रहा है। यह भी सर्वविदित है कि पिछले लंबे समय से पराली का धुआँ बड़ा वायु प्रदूषण बना हुआ है। अकेले पंजाब और हरियाणा से हजारों मामले सामने आ चुके हैं। जीवन पर संकट होने और माननीय उच्चतम न्यायालय के निरंतर कठोर रुख के उपरांत भी राज्यों की प्रशासनिक व्यवस्थाएं सुस्त और मौन बनी हुई हैं।


यद्यपि इन दोनों पराली एक बड़ा वायु प्रदूषण का कारण बना हुआ है लेकिन पराली के शोरगुल में अन्य प्रदूषकों पर चर्चा कम है।  इन दिनों उत्तर प्रदेश में भी खेतों में बड़े स्तर पर गन्ने की कटाई का काम होता है जिसमें बड़ी मात्रा में पात्ती निकलती है। वहाँ भी किसान खेतों में ही उस पात्ती को जलाकर निस्तारण करते हैं जिससे हवा में धुएं की मात्रा बढ़ती है। खेत खलियानों में घास अथवा खरपतवारों को खुदाई के बाद सूखने पर जलाने का चलन और मानसिकता बहुत सामान्य है। गेहूं, सरसों,कपास,दलहन,धान एवं गन्ने की कटाई के बाद पत्ती और अन्य कृषि अवशेषों को जलाकर निस्तारण का लगभग पूरे देश में चलन है। यह भी सत्य है कि बहुत से किसान उनकी उपयोगिता अथवा निस्तारण की अन्य विधियों  से अनजान हैं। निस्तारण के आधुनिक यंत्र अथवा दवाइयां महंगी होने से वह उनके उपयोग से बचता है। अपना समय और धन बचाने के लालच में वह जलाने का सहारा लेता है।


ताजा आंकड़ों के अनुसार दिल्ली एनसीआर में खुले में आग जलाने और कूड़ा आदि जलाने से भी भारी वायु प्रदूषण हो रहा है। दिल्ली में अनेक स्थानों पर औपचारिक अथवा अनौपचारिक रूप से बने कचरा घरों में बड़ी संख्या ऐसी है जहाँ लगातार धुआँ उठता रहता है। अवैध बस्तियों में कचरा घर की व्यवस्था न होने से लोग किसी एक खाली स्थान पर कचरा डालते रहते हैं और फिर उसमें आग लगा देते हैं। स्थानीय प्रशासन देखकर भी अनजान बना रहता है। ताजा आंकड़ों के अनुसार दिल्ली एनसीआर के वायु प्रदूषण में वाहन और यातायात से 20-25 प्रतिशत, कोयला और फ्लाई ऐश से 8 प्रतिशत,घरेलू धुएं से 6 प्रतिशत, बाहरी कारक जिसमें एनसीआर स्थित थर्मल पावर प्लांट, ईट भट्टे, पराली का धुआँ और टायरों की रगड़ से उत्पन्न प्रदूषक कण शामिल हैं, से  25-30 प्रतिशत और औद्योगिक धुआं 1 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। दिल्ली एनसीआर में हजारों दो पहिया, चार पहिया और जुगाड़ वाहन ऐसे हैं जो बिना अनुमति के चल रहे हैं। उनके पास नियंत्रित प्रदूषण प्रमाण पत्र भी नहीं है। आने वाले दिनों में पार्कों में भारी मात्रा में पत्तियां गिरेंगी, इनके निस्तारण की भी कोई मजबूत व्यवस्था नहीं है। कुछ निस्तारण हेतु उठाई जाती हैं जबकि अधिकांश वहीं पर जला दी जाती हैं।


वायु प्रदूषण की दृष्टि से जनवरी 2023 के आंकड़े भी महत्वपूर्ण है जिसमें पावर प्लांट ऐश, ईंट भट्टे, पराली का धुआं और टायरों की रगड़ से उत्पन्न प्रदूषक कण यानी बाहरी कारक की भागीदारी 33 प्रतिशत, खुले में आग 24 प्रतिशत,वाहनों का धुआँ 17 प्रतिशत,कोयले की राख 7 प्रतिशत,घरेलू प्रदूषण 3 प्रतिशत,प्लास्टिक कचरा 2 प्रतिशत भागीदारी रही। आंकड़ों से स्पष्ट है कि वायु प्रदूषण धूल, धुएं आदि के रूप में निरंतर एक बड़ी और घातक चुनौती बनता जा रहा है। कुछ दिन चर्चा होने के बाद फिर ढाक के तीन पात। कुछ समितियां बनती हैं, थोड़ी बहुत कार्रवाई होती है और फिर मामला आया गया हो जाता है। चिंताजनक यह भी है कि वायु प्रदूषण से बच्चे, बूढ़े, युवा, महिलाएं सभी परेशान हैं।


वर्ष 2022 के आंकड़े बताते हैं कि केवल 68 दिन ही दिल्ली की वायु सांस लेने लायक रही। वायु प्रदूषण से सिर दर्द, खांसी,जुखाम,बुखार, चिड़चिड़ापन, त्वचा रोग, हृदय संबंधित रोग एवं श्वास संबंधित रोग तेजी से बढ़ रहे हैं। द ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार बाहरी वायु प्रदूषण भारत में प्रतिवर्ष 21 लाख 80 हजार लोगों की जिंदगी छीन लेता है। शोध में यह भी बताया गया है कि उद्योग,बिजली उत्पादन, और परिवहन में जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल से होने वाले वायु प्रदूषण के कारण दुनिया भर में प्रतिवर्ष 51 लाख लोगों की मौत होती है। यहाँ यह भी समझने की आवश्यकता है कि वायु प्रदूषण जहाँ एक ओर जीवन के लिए खतरा बनता जा रहा है, वहीं दूसरी ओर आर्थिकी को भी प्रभावित कर रहा है।


वायु प्रदूषण आज राष्ट्रीय और वैश्विक समस्या बन चुका है, इसके लिए केवल पराली कारण नहीं है। अन्य कारणों पर भी गंभीरता से विचार करते हुए समग्रता में योजनाएं बनाकर उन्हें तत्काल प्रभाव से क्रियान्वित करने की आवश्यकता है।