ठंड से बढ़ जाता है अस्थमा का अटैक

ठंड के मौसम में अस्थमा के अटैक होने का खतरा ज्यादा रहता है। ऐसे में इन्हेलेशन थेरेपी सांस न ले पाने की तकलीफ को रोकने में लाभदायक साबित हो सकती है। दुनियाभर में 235 मिलियन लोग अस्थमा से ग्रस्त हैं। ठंड में यह समस्या ज्यादा गंभीर हो जाती है।


विशेषज्ञों के अनुसार अक्सर लोग मानते हैं कि यह समस्या बुजुर्गों में होती है जबकि अस्थमा फेफड़ों की बीमारी है जिसमें फेफड़ों से जाने वाली सांस की नलियों में सूजन आ जाती है। अमेरिकन लंग एसोसिएशन के तथ्यों के अनुसार, अस्थमा बचपन में पाई जाने वाली समस्याओं में आम है और वर्तमान में 18 साल से कम उम्र के 7.1 मिलियन बच्चे इस समस्या से पीड़ित हैं।


अस्थमा से ग्रस्त रोगी के फेफड़ों से जाने वाली सांस की नलियां बहुत ही संवेदनशील होती हैं और ठंड में सूखी हवा व वातावरण में वायरस या कीटाणुओं की बढ़ोत्तरी से अस्थमा की समस्या ज्यादा गंभीर हो जाती है। विभिन्न अनुसंधानों में प्रकाशित अध्ययनों के अनुसार, ठंड के मौसम में अस्पताल में अस्थमा से पीड़ित रोगियों की संख्या ज्यादा होती है।


सांस की नलियों में सूजन के कारण सांस की नलियां बहुत ज्यादा सिकुड़ जाती हैं जिससे बलगम जैसा पदार्थ जमा होने लगता है और यह नलियों को सांस लेने में प्रभावित करता है। इससे अस्थमा के रोगियों को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। सर्दी में ठंडी हवाओं के कारण सांस की नलियां और ज्यादा सिकुड़ जाती हैं जिससे सांस लेने में बहुत ज्यादा तकलीफ होने लगती है, इसलिए लोगों को यह समझना जरूरी है कि सर्दियों में सही इलाज और दवाओं से अस्थमा के लक्षणों को काफी हद तक नियंत्रित और मैनेज किया जा सकता है।


रोगियों और उनके परिवारों में अस्थमा की जानकारी व उसके इलाज को ले कर कई तरह की भ्रांतियां होती हैं। लोगों को लगता है कि अस्थमा सिर्फ उन्हीं को हो सकता है जिनके परिवार में अस्थमा की समस्या है, अस्थमा संचारी रोग है, अस्थमा को मछली वाली थेरेपी से ठीक किया जा सकता है, अन्य दवाएं ज्यादा बेहतर हैं या सिर्फ योग से अस्थमा अटैक को रोकने में मदद मिलती है। लोग सोचते हैं कि अस्थमा के ट्रिगर से परहेज करने पर इसे रोका जा सकता है और इन्हेलर अस्थमा के इलाज में आखिरी विकल्प है। अस्थमा को ले कर लोगों में इस तरह की कई भ्रांतियां हैं।


अस्थमा के इलाज के दौरान रोगी और उसके परिवार वाले अक्सर इससे जुड़ी कई गलत सूचनाओं के साथ आते हैं। इसलिए हेल्थकेयर से जुड़े लोगों को रोगियों और उसके परिवार वालों को अस्थमा से जुड़े तथ्यों के बारे में जानकारी देनी चाहिए। अस्थमा को छिपाने के बजाय उससे जुड़े इलाज के महत्व को समझाना जरूरी है। इलाज के विकल्पों में सबसे कम साइड इफैक्ट्स इन्हेल्ड कोरटिकोस्टेरॉयड यानी कि इन्हेलेशन थेरेपी की जानकारी देनी चाहिए।


स्वास्थ्य से जुड़े विशेषज्ञों ने देखा है कि अस्थमा रोगी इसे नियंत्रित करने में काफी लापरवाही बरतते हैं। इसी वजह से लगातार नियमित दवाएं लेने के बावजूद रोगी रोजाना अस्थमा के लक्षणों से प्रभावित रहता है और रोजमर्रा के कामों में उसे दिक्कत महसूस होती है। इस समस्या से नजात पाने के लिए ओरल दवाओं के मुकाबले इन्हेलेशन थेरेपी ज्यादा बेहतर है क्योंकि इसमें साइड इफैक्ट्स तो कम होते ही हैं, साथ ही यह जल्दी काम भी करती है।
इन्हेलेशन थेरेपी में इन्हेलर पंप में मौजूद कोरटिकोस्टेरॉयड सांस की नलियों में जाता है। मुश्किल यह है कि रोगी स्टेरॉयड सुन कर ही इन्हेलर का इस्तेमाल नहीं करना चाहते लेकिन लोग इस तथ्य से अनजान हैं कि कोरटिकोस्टेरॉयड प्राकृतिक रूप से शरीर में भी बनता है जो शरीर की सूजन कम करने में सहायक होता है। इसलिए यह बच्चों के साथ- साथ गर्भवती महिलाओं के लिए भी सुरक्षित है।


अस्थमा के लिए इन्हेलेशन थेरेपी और क्लीनिकल प्रभाव के बीच संबंध सकारात्मक है। अध्ययन में वयस्कों, किशोरों और बच्चों में अस्थमा के लक्षणों व फेफड़ों के काम को बेहतर तरीके से नियंत्रित करने में सुधार दिखा है। सांस की नलियों की सूजन को कम करने के लिए बहुत ही कम मात्रा तकरीबन 25 से 100 माइक्रोग्राम कोरटिकोस्टेरॉयड की जरूरत होती है लेकिन ओरल दवाओं या टैबलेट में ज्यादा मात्रा तकरीबन 10 हजार माइक्रोग्राम शरीर में चली जाती है और दवा की बहुत ही कम मात्रा फेफड़ों तक पहुंचती है। अस्थमा रोगी गोली या टैबलेट के माध्यम से लक्षणों को कम करने के लिए 200 गुना ज्यादा दवा की मात्रा लेता है।


ओरल दवाओं की ज्यादा मात्रा पहले रक्त में घुल कर सभी अंगों में पहुंचती है जिसमें फेफड़े भी शामिल हैं लेकिन इन्हेलेशन थेरेपी में कोरटिकोस्टेरॉयड सीधे फेफड़ों में पहुंचता है, इसलिए लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए स्टेरॉयड की आवश्यक मात्रा इन्हेलेशन थेरेपी से मिलती है। इस तरह आसान विकल्पों से रोगी सर्दी के मौसम में अस्थमा को नियंत्रित करके मौसम का मजा ले सकते हैं।