महिलाओं की आवाज को स्वर देना अत्यंत महत्वपूर्ण है : पेरूमल मुरूगन

नयी दिल्ली,  आम इंसान की जिंदगी को अपने रचना संसार का आधार बनाने वाले और तमिलनाडु के ग्राम्य जनजीवन की महक को अपने लेखन में समेटने वाले तमिल साहित्यकार पेरूमल मुरूगन का कहना है कि महिलाओं की आवाज को स्वर देना अत्यंत आवश्यक है।

मुरुगन के साहित्यिक जगत में महिलाएं हमेशा से केंद्र में रही हैं, चाहे वह ‘पायरे’ की सरोजा हों, विवादास्पद ‘वन पार्ट वुमन’ की पोन्ना, या यहां तक कि ‘पूनाची’ की नामधारी बकरी भी। और वे उनके नवीनतम ‘फायर बर्ड’ में भी हैं। मुरूगन के उपन्यासों, कहानियों में प्रत्येक महिला नायक न केवल ग्रामीण वास्तविकता का एक अनिवार्य हिस्सा है बल्कि अपने कथानक को निर्णायक आकार भी दे रही हैं।

जननी कन्नन द्वारा अंग्रेजी में अनुवादित ‘फायर बर्ड’ ने साहित्य के लिए जेसीबी पुरस्कार 2023 जीता है।

मुरुगन ने एक ईमेल साक्षात्कार में पीटीआई को बताया, “महिलाओं की आवाज़ की ताकत हमारी रोजमर्रा की वास्तविकता में स्पष्ट है, खासकर हमारे क्षेत्र में। वे खेतीबाड़ी संभालती हैं, कड़ी मेहनत करती हैं। कृषि और पशुपालन जैसे कार्यों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका अपरिहार्य है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ उनके महत्वपूर्ण योगदान को पहचानते हुए, मुझे उनकी आवाज को स्वर देना महत्वपूर्ण लगा । मैं उनके नजरिए से दुनिया को देखने का लगातार प्रयास करता रहा हूं।’’

मूल रूप से तमिल भाषा में ‘‘ अलादंप पाक्षी ’’ शीर्षक से लिखा गया उपन्यास ‘फायर बर्ड’ पेरूमायी और मुथु के जीवन के इर्दगिर्द घूमता है। मुथू के साथ उसके अपने परिवार के लोग पैतृक संपत्ति के मामले में धोखाधड़ी करते हैं।

यह पेरुमायी ही हैं जो मुथु को एक बेहतर जमीन की तलाश करने और पितृसत्तात्मक और शोषणकारी पारिवारिक बंधनों से दूर एक नया जीवन शुरू करने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करती हैं।

मुरुगन ने कहा कि उन्होंने इस किरदार का नाम अपनी मां के समर्पण, सत्यनिष्ठा, करुणा और नेतृत्व के गुणों के प्रति श्रद्धांजलि स्वरूप उनके नाम पर रखा है।

‘फायर बर्ड’ से पहले, ‘पूनाची’ और ‘ए लोनली हार्वेस्ट’ को साहित्य के जेसीबी पुरस्कार के लिए चुना गया था। तमिल में उनकी पुस्तक ‘पुकुझी’ (अंग्रेजी में पायरे), को भी अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2023 की लांग लिस्ट में सूचीबद्ध किया गया था।

तमिल भाषा को अपनी अभिव्यक्ति का आधार बनाने के संबंध में मुरूगन ने कहा, “तमिल में खुद को अभिव्यक्त करना सिर्फ भाषा का मामला नहीं है; यह तमिलनाडु के पश्चिमी भाग में जीवन के संपूर्ण सार को व्यक्त करने का एक तरीका है। इसे एक सार्वभौमिक माध्यम मानकर, मैं उस जीवन को स्पष्ट रूप से चित्रित कर सकता हूं जिसकी मैं कल्पना करता हूं।’’