वे दोनो सहेलियां लगभग 20 वर्षों बाद मिली। वे बचपन की सहेलियां थी। प्रायमरी से लगाकर कालेज तक साथ-साथ पढ़कर एमए किया। दोनों में दोस्ती भी प्रगाढ़ थी। जब वे झगड़ती थीं तब कई दिनों तक एक-दूसरे से नहीं बोलती थीं। मन का जब गुबार निकल जाता था तब वे एक हो जाती थीं। शरीर से भले ही वो दो थीं। मगर मन से वे एक थीं। कभी एक दिन एक-दूसरे से नहीं मिलती तब दूसरे के घर जाकर घंटों बतियाती थीं। वे भविष्य की योजना बनाती। यहां तक कि वे अपने होने वाले भावी पतियों की कल्पना भी करने लगती थीं। दोनों चाहती थीं उनके भावी पति ऐसे मिले जो उनके इशारों पर नाचे। दोनों अच्छे संपन्न परिवार की थीं।


विभा एक बिजनेसमैन की बेटी थी। चंचला एक अधिकारी की। एमए करने के बाद जब दोनों सहेलियों के लिए मां-बाप ने लड़का देखना शुरू किया तब कितने ही पापड़ दोनों को बेलने पड़े थे। विभा के पिता नहीं चाहते विभा की शादी किसी शासकीय नौकरी वाले से हो वे चाहते थे उनका दामाद यदि हो तो बिजनेसमैन। उसका करोड़ों का कारोबार हो। आखिर जितेन्द्र नाम के लड़के को उन्होंने ढंंूढ ही लिया। धूमधाम से शादी हुई, तब उसकी सहेली चंचला के लिये उसके पिता ने शासकीय नौकरी वाला लड़का देखना शुरू किया। ऐसा लड़का ढूंढने में दो वर्ष लग गए। तब चंचला को भी वैसा ही पति मिल गया। अखिलेश बैंक में कार्यरत था फिर चंचला की शादी भी हो गई। इस तरह दोनों सहेलियां गृहस्थी के खूंटे से बंध गई। फिर दोनों के बीच फोन से बातचीत होती रही धीरे-धीरे बंद हो गई। इस तरह शादी के 20 वर्ष बाद वे एक विवाह समारोह में मिलीं। बहुत देर तक खुशी से गले लगती रहीं। देखने वाले आंखें फाड़ते हुए देखते रहे। तब विभा बोली- सुना गृहस्थी कैसी चल रही है।
बहुत ठीक, यह कहते हुए चंचला के चेहरे पर उदासी बनी रही।


लगता है कुछ ठीक नहीं है, विभा ने जब यह कहा तब चंचला बोली- तू सुना तेरी गृहस्थी कैसी चल रही है?


अरे चंचला मेरी गृहस्थी खूब अच्छी चल रही है, जिंदगी में खूब ऐश है तेरे जीजाजी बिजनेसमैन हैं खूब कमाते हैं मैं मनचाहा खर्च करती हूं। मगर मेरे जीजाजी शासकीय नौकरी में है, अत: सीमित पगार में घर चलाना पड़ता होगा। चल कोई बात नहीं छोड़ यह गृहस्थी की बातें। यह तो औरत के साथ जिंदगी भर लगी रहेगी, आओ विवाह में आये हैं तो इसका आनंद लें। तब वे दोनो सहेलियां भीड़ भरे शामियाने में खो गई। विभा शादी के ऐसे स्पेशल शामियाने में ले गई जहां पर शराब का केबिन सजा हुआ था। एक टेबिल पर बैठाती हुई वह बोली- देख जिंदगी का इंजाय करते हैं।


मगर लोग यहां शराब पी रहे है, चंचला ने कहा उसने देखा उच्चवर्गीय मानसिकता वाले लोग चाहे पुरुष हो या स्त्री शराब का सेवन कर रहे है। सजे धजे आदमी शराब पिये तब और बात है मगर सजी धजी औरतें भी धड़ल्ले से शराब को पानी की तरह पी रही हैं। नशा शराब का हो या दौलत का एक जैसा होता है। वेयरा दो ग्लास रख गया। विभा बोली- चंचला पियो, जिदंगी का इंजाय करो।


नहीं विभा मैं नहीं पीती, इंकार करती हुई चंचला बोली।
अरे कमाल है तू नहीं पीती है, आश्चर्य से विभा बोली।
हां विभा मैं नहीं पीती, एक बार फिर इंकार करती हुई चंचला बोली।
अरे तू कैसी औरत है जो शराब नहीं पीती है। अरे शराब तो उच्चवर्गीय मानसिकता वालों की फैशन है।


बस-बस मुझे उपदेश मत दे, बीच में ही बात काटकर चंचला बोली- शराब तुझे ही मुबारक हो मुझे नहीं पीना यह जहर।


अरे चंचला तुम किस जमाने में जी रही हो।
हां विभा में 21वीं सदी में जी रही हूं।
कमाल है 21वीं सदी में जी रही है और शराब नहीं पीती है। आज मेरे साथ शराब पीने की शुरूआत कर क्या मजा आता है इसके पीने में है फिर गृहस्थी की सब बातें भूल जाएगी।
नहीं विभा तुझे मुबारक हो-इंकार करती हुई चंचला बोली- पी खूब पी जीजाजी खूब कमा रहे हैं।


अरे आज के युग में जो शराब नहीं पीता है वह पिछड़ा हुआ समझा जाता है, कहकर विभा पूरा गिलास क्षणभर में गटक गई, फिर झूमती हुई बोली- अब इसकी ऐसी आदत पड़ गई है कि छूटती नहीं।


छोडऩे पर हर चीज छूट जाती है मगर प्रयास भीतर से होना चाहिए, समझाती हुई चंचला बोली, मगर फैशन के नाम से उच्च वर्ग की महिलाएं शराब, जुआ व सिगरेट पीकर अपने को भले ही प्रगतिशील दिखायें मगर यह सब बर्बादी के संकेत है। आजकल आदमी खूब काला धन कमा रहा है, और शराब जुए में उसे पानी की तरह बहा रहा है। यहीं लोगों की प्रगतिशीलता है। अब तक विभा का नशा चढ़ चुका था झूमती हुई बोली, अरे चंचला तेरा तो भाषण चालू हो गया।


मैं कोई नेता नहीं हूं जो भाषण दूं, मैं तुझे नसीहत दे रही हूं। कालेज वाली विभा को तूने मार दिया।


हां मार दिया, नशे की हालत में फिर विभा बोली, क्योंकि जमाने के साथ चलना चाहिये, जो जमाने के साथ नहीं चलते- कहकर विभा रूक गई फिर दूसरा गिलास उठाते हुए बोली, अब तू नहीं पीती है तो मैं पी जाती हूं। फिर वह पूरा गिलास गटक जाती है। उसने कहा है- ये जिंदगी मिली है। चंचला जीवन का सभी तरह का आनंद लेना चाहिए। आनंद में ही मजा है। देख पीकर एक बार। यह दुनिया तुझे स्वर्ग दिखेगी।


चंचला ने देखा विभा की नशा चढ़ चुका है। वह अपने आपे से बाहर है फिर भी जवाब देती हुई बोली- अरे तू ही स्वर्ग देख। मुझे नहीं देखना। तू शराब पीकर भले ही अपने को प्रगतिशील बताये मगर इसे पीकर तुझ पर जो नशा चढ़ा है एक दिन जिंदगी खोखली कर देगा।


ये दारू नहीं है, दारू वे लोग पीते हैँ, जो मजदूर झुग्गी, झोपडिय़ो में रहते हैं। इसे प्रगतिशील भाषा में शराब कहो जिसे सभ्य घराने के लोग पीते हैं।


हां मेरी विभा इसे पीकर नशे में लडख़ड़ा रही है अरे शराब चाहे विस्की कहलाये है तो वही दारू जो आदमी को खोखला कर देती है।


देख चंचला तू मुझे उपदेश देने लगी।
मैं कौन होती हूं उपदेश देने वाली पीकर जिंदगी का इंजाय कर और पीना हो तो मंगाले। ब्याह वालों ने मुफ्त की व्यवस्था कर रखी है। तब विभा एक और गिलास मंगाकर गटक गई। अब नशा उस पर पूरी तरह से हावी हो चुका था। मगर विभा अब आगे बात करने से रही।


विभा कभी नशे के खिलाफ थी। जब वे दोनों कालेज में पढ़ती थीं तब विभा और दोनों में यह बात होती थी तब विभा कहती थी कि मैं ऐसा पति चाहती हूं जो शराब नहीं पीता हो।


यदि पीने वाला मिल जाये तो तू क्या कर लेगी।
अगर पीने वाला मिल गया तब उससे तलाक ले लूंगी।


मगर तलाक लेना इतना आसान नहीं है। अरे औरत कितनी भी बोल्ड हो मगर आदमी के आगे अपने हथियार डाल देती है।


देखना में हथियार नहीं डालूंगी।
रहने दे रहने दे तेरे सारे बोल्ड विचार हवा हो जायेंगे। प्राय: उनमें इस प्रकार की झड़पें हुआ करती थीं मगर आज खुद विभा को शराब पीते देखकर उसे आश्चर्य हुआ। बोली अरे विभा तुम्हारे सारे बोल्ड विचार कहां हवा हो गये।


कौन से बोल्ड विचार, नशे की हालत में विभा ने उसकी तरफ देखा।
भूल गई तूने एक दिन कहा था शराब की उम्र भर सख्त विरोधी रहूंगी। जहां भी मेरा विवाह होगा वहां शराब किसी को पीने नहीं दूंगी, मगर खुद शराब पीने लगी है। फिर विभा को देखा उसका नशा पूरी तरह से चढ़ चुका है आगे बोलना व्यर्थ है। चंचला बोली-ऐ विभा उठ पेट में चूहे कबड्डी खेल रहे हैं चल उठ खाना खाते है। फिर खूब सोना रात भर, ऐ चल उठना। इतनी क्यूं पी ली, जो चढ़ गई तुझे। चल उठ।


चल, कहकर विभा लडख़ड़ाते उठी है दो कदम उठती है फिर वहीं गिर गई। चंचला ने सोचा विभा को अब कैसे उठाये इसने इतनी अधिक पी ली कि नशा ज्यादा चढ़ गया। अब एक ही बात है जितेन्द्रजी को ढूंढकर लाया जाये, ताकि वे इसे ले जायें। तभी जितेन्द्रजी उधर आते हुए बोलेन् अरे चंचला विभा को देखा है।


विभा शराब पीकर बेहोश पड़ी है। चंचला ने कहा- जितेन्द्र ने जब देखा विभा बेसुध पड़ी है तो उठाते हुए बोले-ए विभा उठो लगता है बहुत चढ़ गई है।


हां चढ़ गई जीजाजी। देखो ना सभ्य घराने की होकर भी इसने कैसा तमाशा किया, इसे शराब पीने से क्यों नहीं रोकते हो।


चंचला इसमें गलती इसकी नहीं मेरी है। मैंने ही इसे जबर्दस्ती पिलाना सिखाया।
तुमने सिखाया तू इसका आदमी होकर इसे शराब पीना सिखाया। पास खड़ी बुढिय़ा बोली जो उसकी बातें सुन रही थी। वह नाराजगी से बोली-कैसा आदमी है तू शराब पिलाता है अपनी औरत को देख लिया इसका तमाशा। अच्छा हुआ यह पीकर सड़क पर नहीं गिरी। सभ्य समाज की होते हुए भी इसे लाज शर्म नहीं आती। ले जा इसे गाड़ी में बैठाकर, यहंा पीकर तमाशा करने की क्या जरूरत है।


कहकर बुढिया तो चली गई। चंचला को जो कुछ कहना था वह बुढिय़ा कह गई। इस समय जितेन्द्र के चेहरे की सारी रौनक गायब हो चुकी थी, विभा को शराब पिलाने का उसे आज परिणाम मिल चुका था। चंचला ने भी सुनाते हुए कह दिया आपने यह क्या किया जीजाजी इसे पिलाना सिखा दिया, इसे आपने नहीं आपकी दौलत ने बिगाड़ा है।
हां चंचला हेतु मुझे कितना नीचे देखना पड़ा।


अब इसे छुड़वाते क्यों नहीं। अधिकारपूर्वक चंचिला बोली।
हां चंचला अब इसे शराब छुड़वा दूंगा, मैं तुमसे यह वादा करता हूं।
अरे तुम मर्दों का वादा झूठा होता है जीजाजी, कहने को चंचला ने आक्रोश में कह दिया मगर जीतेन्द्र भीतर ही भीतर शर्मिंदा हुआ, आज कई लोगों के बीच विभा का इस तरह शराब पीने का तमाशा देख वे अंदर ही अंदर शर्म से झुक गए। फिर चंचला बोली- ले जाओ इसे अपने घर।


हां चंचला तुम मदद करो। जितेन्द्र ने जब यह कहा दोनों ने उसका हाथ पकड़ते हुए उठाया फिर विभा जितेन्द्र के कंधे से लग गई, जितेन्द्र ने कहा आज इतनी पी ली विभा अपना होश भी गंवा बैठी। देख तेरी सहेली चंचला कितनी नाराज है मुझसे।


क्या करूं यह आदत आपने ही डाली, लडख़ड़ाती जुबान से विभा बोली।
बस आज के बाद तुम नहीं पियोगी। आज तुमने तमाशा बना दिया, सब लोगों ने मुझे ही भला बुरा कहा है।


तुमने तो मुझे यह जहर पीना सिखाया है, नशे में लडख़ड़ाती हुई विभा बोली।
अच्छा बाबा अब खुद भी नहीं पीऊंगा और तुम्हें भी नहीं पीने दूंंगा। उसे कंधे के सहारे पीछे के दरवाजे तक ले गया। कई लोगों ने यह दृश्य देखा तब शर्म से जितेन्द्र गड़ गया ।