सुनसुन और टुनटुन

एक जंगल में दो नन्हीं गौरेयों का एक जोड़ा रहता था। दोनों सुबह ही दाना चुनने के लिए निकल पड़ते और रात्रि को लौटते और पेड़ की डालियों के पत्तों में रात्रि गुजारते। यों ही काफी दिन बीत गये। एक बार गौरेया ’सुनसुन‘ ने घोंसला बनाने की योजना बनायी। उसने तिनके चुन-चुनकर धीरे-धीरे अपना घोंसला भी तैयार कर लिया। अब दोनों गौरेया ’सुनसुन‘ और ’टुनटुन‘ उसी घोसले में बड़े मजे से अपनी रात्रि भी गुजारने लगे।


कुछ ही दिनों में टुनटुन ने अपने घोंसले में पहली बार दो अण्डे दिये। अब टुनटुन अण्डों की देखरेख करने लगी। सुनसुन दाना लेने जाता और अपनी टुनटुन के लिए भी अपनी चोंच में दाना लाता। दोनां मिल बांट कर प्यार से खाते। फिर दोनों अण्डों से दो नन्हें से बच्चे निकले। टुनटुन अपने बच्चों से बहुत प्यार करती थी।


दोनों बच्चे धीरे-धीरे बड़े होने लगे और अब दाना खाने लायक हो गये और सुनसुन और टुनटुन दोनों अपने बच्चों के लिए दाना लाने लगे। बच्चे फिर थोड़े और बड़े हुए। इन दोनों बच्चों में एक काफी फुर्तीला और थोड़ा सुस्त था।


अब उनके छोटे-छोटे पंख भी निकल आये थे। एक बार सुनसुन ने इन बच्चों को उड़ना सिखाने की योजना बनायी। वह बड़े बच्चे को अपनी चोंच में पकड़कर घोसले से नीचे लायी और उसे उड़ना सिखाया। फिर यही प्रक्रिया उसने अपने दूसरे बच्चे के साथ भी दोहरायी।
अपनी मां टुनटुन के अथक प्रयासों से दोनों बच्चे कुछ ही दिनों में उड़ना और खुद के लिए दाना चुगना सीख गये। अब सुनसुन और टुनटुन काफी खुश थे। धीरे-धीरे समय बीतता गया। दोनों बच्चे बड़े होकर जवान हो गये और सुनसुन तथा टुनटुन बूढ़े हो गये। बढ़ती उम्र के कारण अब टुनटुन काफी बीमार रहने लगी। वह बीमार होने के कारण इतनी कमजोर हो गयी थी कि कई-कई दिनों तक वह अपने लिए दाना भी चुनकर नहीं ला पाती थी। बेचारा बूढ़ा सुनसुन अपनी प्यारी टुनटुन के लिए पूरा दिन मेहनत कर दाना लाता था।


बच्चे बड़े हो गये थे। अब वे अपने मां-बाप की बातों को नहीं सुनते थे और न ही उनकी तरफ कोई खास ध्यान ही देते थे। बेचारी टुनटुन अपने बच्चों के इस व्यवहार से काफी दुखी थी। वह मन ही मन रोती और सोचती। क्या यही सब देखने के लिए उसने और उसके सुनसुन ने सारी जिन्दगी मेहनत कर अपने दोनों बच्चों का पालन-पोषण किया था कि बुढ़ापे में बच्चे सहारा बनने के बजाय हम दोनों की उपेक्षा करेंगे।


एक दिन रात्रि का समय था। बड़े जोर का तूफान आया और उसकी तेज हवा से पेड की कई डालें टूट गयी। घोंसला उड़कर जमीन पर गिर गया। सुनसुन के दोनों बच्चे पानी से बुरी तरह भीगकर बीमार हो गये और खुद दाना लाने की शक्ति बीमारी के चलते उनमें नहीं बची। वे दोनों बच्चे पेड़ के एक कोठर में बीमार और कमजोर होकर कई दिनों तक पड़े रहे। वे दोनों बच्चे काफी भूखे थे परन्तु बीमारी के चलते खुद दाना लाने में असमर्थ थे।


बूढ़े बाप सुनसुन और माता टुनटुन से अपने दोनों बच्चों की यह दशा देखी नहीं गयी। उन दोनों एक बार से साहस, हिम्मत, मेहनत और धैर्य से फिर से अपना घांसला बनाया ओर अपने दोनों बीमार और कमजोर बच्चों के लिए दाना लाकर उन्हें खिलाया-पिलाया।
धीरे-धीरे दोनों बच्चे पूरी तरह से स्वस्थ हो गये। अब वे दोनों बच्चे अपने माता-पिता के प्रति किये गये बर्ताव से काफी शर्मिन्दा थे। उन्होंने अपने माता-पिता से अपनी करनी के लिए माफी मांगी और भविष्य में अपने बड़ों की उपेक्षा न करने की कसम भी खायी। आज टुनटुन सुनुसन और उसके दोनों बच्चे खुशी-खुशी एक साथ उसी पेड़ पर रह रहे हैं।