बच्चों को दी जाने वाली सजाएं कितनी उचितघ्

प्राचीन काल से हमारे भारतीय समाज में शिक्षक को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। शिक्षक बच्चों को शिक्षा प्रदान कर देश के भविष्य का निर्माण करता है नैतिकता का पाठ पढ़ाता है। समस्या तब उत्पन्न होती है जब यहीं शिक्षक अपना धैर्य खो बैठता है और स्कूली बच्चों को  ऐसी सजाएं देता है जो कभी.कभी उन मासूमों की मौतए कभी आत्महत्या तो कभी आत्मविश्वास को तोडऩे का कारण बनती है।


प्रश्न यह उठता है कि स्कूल परिसर में किसी भी प्रकार की सजा न दिये जाने के स्पष्ट आदेश दिये जा चुके हैं तो फिर क्यों आज भी स्कूलों में बिना किसी भय के अनुशासन के नाम पर विभिन्न प्रकार की सजाओं द्वारा उन्हें प्रताडि़त किया जाता हैघ् यह एक गम्भीर प्रस्न है जिसके समाधान का प्रयास सभी को मिलकर करना होगा विशेषकर टीचर्स और अभिभावकों को।


समझे पद की गरिमा- अध्यापन का कार्य. बेहद गरिमापूर्ण और सम्मानीय पेशा है और इसकी गरिमा को बरकरार रखना टीचर का सर्वोच्च कर्तव्य है। एक अच्छा और कामयाब टीचर वही होता है जो अपने अच्छे व्यवहार से अनुशासनहीन बच्चे को भी सुधारने का प्रयास करे न कि मारपीट के विभिन्न तरीकों से बच्चे को सजा दे। यदि टीचर मारपीट के माध्यम से बच्चे को सुधारने के प्रयास को उचित समझता है तो उसकी यह धारणा गलत है। ऐसा करके तो टीचर बच्चों के मन में शिक्षा और शिक्षक दोनों के प्रति भय उत्पन्न करेगाए वहीं बच्चों के मन में शिक्षा के प्रति अरुचि की भावना को भी विकसित करेगा।


स्नेहिल संबंध . टीचर का अपने बच्चों के साथ स्नेहिल संबंध बच्चों को अनुशासन प्रिय ही नहीं बनाता बल्कि उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैए टीचर यदि जिम्मेदारए सहनशीलए अनुशासन प्रिय और कोमल हृदय का है तो कोई सन्देह नहीं कि ऐसे आदरणीय टीचर से शिक्षा ग्रहण करने वाले शिष्य भी देश के योग्यए सभ्य व आत्मविश्वास की भावना से भरपूर नागरिक बनेंगे।


समझना होगा – जिस प्रकार हाथों की पांचों अंगुलियां समान नहीं होती उसी प्रकार हर बच्चा भी एक समान नहीं होता कुछ बच्चे बुद्धिमान होते हैं तो कुछ सामान्य तो कुछ मंदबुद्धि। लेकिन इसके उपरान्त भी यह वास्तविकता है कि हर बच्चे में कोई न कोई खूबी कोई न कोई विशेषता अवश्य होती है। बस उसी खूबी को पहचान कर उसी को माध्यम बनाकर आप बच्चे में सकारात्मक सुधार कर सकते हैं।


नकारात्मक व्यवहार है घातक – टीचर्स और अभिभावकों द्वारा बच्चों के प्रति नकारात्मक व्यवहार बहुत ही ज्यादा नुकसानदायक होता है उनके द्वारा बच्चों को लूजरए डफर आदि जैसे नकारात्मक शब्दों द्वारा सम्बोधित करना बच्चों के आत्मविश्वास को पूरी तरह से खत्म कर देता है और एक समय ऐसा आता है जब बच्चा स्वयं को लूजर और डफर ही समझने लगता है।


वजह जानें – बच्चा शरारती है बुद्धू है या कुछ भी है तो इसके पीछे भी उसकी कोई न कोई वजह अवश्य होगी। आवश्यकता तो बस टीचर और अभिभावकों को उस वजह को जानकर उसे दूर करने की होनी चाहिए न कि सजा देकर उस वजह को और बढ़ाने की। सजा देकर हम बच्चे को गलती करने से रोक सकते हैं उसे सुधार नहीं सकते।


सजा देने का तरीका रू बच्चों को जो बात प्यार से समझाई जा सकती है उसके लिए जरूरी नहीं है कि बच्चे को शारीरिक या मानसिक नुकसान पहुंचाकर ही सजा दी जायेए सजा देने का सही तरीका खोजना और उस पर अमल करना टीचर का कर्तव्य है।


बच्चे को उसकी गलती का एहसास करायेंए उसे प्यार से पुनरू गलती न करने की हिदायत दें। अगर टीचर ऐसा करे तो मुझे नहीं लगता कि कोई बच्चा अपने प्रिय टीचर को नाराज या दुरूखी करना चाहेगा।


बच्चों के सम्मान का रखें ध्यान रू ऐसे शब्दों का प्रयोग कभी न करे जो बच्चों के मन को आहत और दुरूखी करता होए और इस बात का भी विशेष ध्यान रखें कि जो व्यवहार आपको अच्छा नहीं लगता वह व्यवहार बच्चों को भी उतना ही बुरा लगता है जितना कि आपकोए इसलिए बच्चों के सम्मान का पूरा ध्यान रखें।


ये न करें रू अभिभावक हो या टीचर्स इन बातों का विशेष ध्यान रखें .
. अपनी कुंठाओं और समस्याओं के लिए बच्चों पर अपना गुस्सा कभी न निकालें।
. बच्चे द्वारा दूसरे बच्चे को थप्पड़ मरवाना।
. बिना किसी कारण के बच्चे पर किसी और का गुस्सा उतारना या उससे उल्टा.सीधा बोलना आदि।
. बच्चों के समक्ष बच्चे का मजाक उड़ाना।


पड़ता है प्रभाव . बच्चे का कक्षा में बच्चों के समक्ष टीचर द्वारा उड़ाया गया मजाक बच्चे के कोमल मन को गहरा आघात पहुंचाता है।


 वहीं उसके आत्मविश्वास को भी खत्म कर देता है और साथ ही शिक्षा और टीचर के प्रति नफरत की भावना को भी उत्पन्न करता है। वहीं मजाक उड़ाये जाने से बच्चा आगे भविष्य में शर्मीला और संकोची भी बनता है और ध्यान रहे हर समय आलोचनाओं का सामना करने वाले बच्चों में आगे चलकर दूसरों की निंदा करने जैसी बुरी प्रवृत्ति का विकास भी होता है।