बाल कथा – कितने फूल तोड़े थे

उस दिन सुबह ठंडी हवा बह रही थी। सूरज अभी नहीं निकला था। चमचम, कम्मो, बादल, रिंकी और काजू ने मिलकर यह योजना बनायी कि आज छुट्टी का दिन है। पहाड़ी पर जाकर पिकनिक मनाई जाए। सब झटपट तैयार हो गये। रास्ते में रिंकी बोली-पहाड़ी पर मंदिर भी है। हम लोग उसे भी देखेंगे।

हां, हां, क्यों नहीं? सबकी मिली-जुली आवाज थी।
चमचम ने सलाह दी-तालाब में स्नान कर पहले हम लोग मंदिर देखने चलेंगे।
विचार सुंदर है-बादल बोला।


पहाड़ी के पास पहुंचकर भेंट पुजारी से हो गयी। काजू ने पुजारी से कहा-हम लोग मंदिर देखना चाहते हैं।


अच्छी बात है। मेरे साथ चलो। वह पहले फुलवारी में गया और उसने ताजे-ताजे फूल तोड़े। फूल डालिया में रखकर वह तालाब के पास आया। उसने सबको स्नान करने को कहा और वह इस बीच फूलों को जल से धोने लगा।


स्नान कर सबने नये कपड़े पहने। पुजारी भी तालाब के बाहर आया। कम्मो को लगा कि पुजारी जी की डलिया में फूल पहले से अधिक हैं। वह बोली ‘पुजारी जी, फूल पहले से अधिक लग रहे हैं।


हां, इस तालाब के जल में यह गुण है कि जितने फूल धोओगे, दूने हो जाएंगे। पुजारी ने बताया।


सबने अचरज प्रकट किया। पुजारी सबको लेकर पहले शिव मंदिर गया। उसने शिवाजी को सोलह फूल  चढ़ाये। बचे फूल लेकर वह फिर तालाब के पास आया। फूलों को उसने फिर से धोया। फूल दूने हो गये। इस बार सबने आंखों से इस चमत्कार को देखा।
अब पुजारी राम मंदिर की ओर बढ़ा। सोलह फूल वहां भी उसने चढ़ाये। कुछ फूल फिर बच गये। उन्हें धोने पुजारी तालाब के पास आया। फूलों को उसने धोया। पहले जैसी की करामत हुई।


अब हम लोग कितने मंदिर जायेंगे? रिंकी ने पूछा।
‘कृष्ण मंदिर, उसके बाद हनुमान मंदिर, बस इस पहाड़ी पर चार ही मंदिर हैं।
कृष्ण और हनुमान जी के मंदिर में ंभी पुजारी ने पहले जैसी रीति से बचे फूलों को तालाब में धोकर सोलह-फूल चढ़ाये। अब पुजारी जी की डलियां में एक भी फूल नहीं बचा।
चारों मंदिरों का दर्शन कर पाचों काफी थक गये थे। सब लौटे। लौटते समय बादल ने पुजारी और फूलों की चर्चा छेड़ दी-‘भई, पुजारीजी ने फूलवारी से कितने फूल तोड़े थे कि प्रत्येक मंदिर में सोलह सोलह फूल चढ़ाने के बाद अंत में उनकी डलिया में एक भी फूल नहीं बचा?
रास्ते भर सब सोचते रहे। सही जवाब किसी को नहीं सूझ रहा था। अंत में घर पहुंचते-पहुंचते काजू ने हल ढूंढ लिया। उछल कर बोला-पंद्रह फूल‘


‘कैसे?‘रिकी ने जिरह की।
पंद्रह फूल तालाब में धोने से तीस हुए। शिव मंदिर में सोलह चढ़े। बचे चैदह फूल।‘
ठीक है।


बचे चैदह फूल धोने के बाद अट्ठाइस हुए जिनमें सोलह राम मंदिर में चढ़ाये गये। अब कितने रहे।


‘बारह फूल।‘ कम्पो बोली।


बारह धोने से चैबीस हुए। उनमें से सोलह पुजारी ने कृष्ण मंदिर में चढ़ाये, बचे आठ फूल।‘
बिल्कुल सही। ‘चमचम की आवाज थी।


‘आठ फूल धोने से सोलह हो गये जो हनुमान जी के मंदिर में चढ़े। अब बोलो कुछ बचा?‘
‘नहीं‘ एक साथ सब बोले।