कहानी- आलोका

loka

आलोका के घबराहट के मारे हाथ-पैर ढीले हो गए। नंदन के आने तक इंतजार संभव न था। उसने एक चिट पर चार लाइन जल्दी-जल्दी घसीटीं, उसे खाने की मेज पर फूलदान के नीचे दबाकर शयन-कक्ष की ओर भागी। अटैची में जल्दी-जल्दी चार-छह साडिय़ां आदि ठूंसी, अपना हुलिया ठीक किया, साड़ी लपेटी और पड़ोस में चाबी देकर, सीढिय़ां उतर सड़क पर आ गई। मन-ही-मन उसने चैन की सांस ली, अच्छा हुआ, बिट्टू ही सामने पड़ा, कहीं मिसेज चोपड़ा होतीं तो आधा घंटा के पहले उसे वहां से हिलने न देतीं। सारी पूछताछ करतीं, दस सलाह देतीं, कुछ सहानुभूति दिखातीं। फिर अपने साथ गुजारा कुछ इसी तरह का किस्सा ले बैठतीं। तौबा। ईश्वर बचाये ऐसी चिपकू औरत से। पास-पड़ोस का मामला है, बिगाड़ भी नहीं किया जा सकता। मगर मिसेज चोपड़ा के हद से ज्यादा बातूनीपन से आलोका खीज जाती है।


सफर में वह पूरे समय विशेष के बारे में ही सोचती रही। मां के दो बेटे गुजर गए थे। यह तीसरा बड़ी मन्नतों के बाद हुआ था इसीलिए बड़े नाज से पाला गया था। पिताजी सरकारी अफसर थे। मोटी तनख्वाह, बंगला, गाड़ी, नौकर-सभी कुछ तो था उनके पास। वहतो भैया से पांच-छह बरस छोटी थी, मगर वह अपने को छोटी समझती ही कहां थी। वह भैया पर हुकुम चलाती जिसे बजाने में भैया कृतकृत्य हो जाता। दरअसल भैया शुरू से ही बड़े परोपकारी स्वभाव का था। उसे दूसरों के लिए कुछ करने में बहुत संतोष, बहुत आनंद मिलता। यह बात और है कि कई लोग इसका फायदा उठाते। लाड़-प्यार ने भैया को जरा भी बिगाड़ा न था बल्कि जितना प्यार वह पाता, उससे कई गुना ज्यादा लुटाना चाहता था।
ऐसा प्यारा भाई ज्यादा ही बीमार होगा,।


‘तो पहुंच ही गई हमारी आलू। और वहां नंदनजी को किसके भरोसे छोड़ आई है?
‘वह क्या बच्चे हैं, भैया! और यह बताओं तुमने क्या हाल कर लिया है? कैसा तो चेहरा निकल आया है। मैं तो भाभी से ही लड़ाई करूंगी, मेरे भैया की देखभाल नहीं करती।
इतने में मीरा भाभी आँखें पोंछते हुए आकर उससे लिपट गई और लगी सुबकने। ”अरे-अरे! ये क्या है भाभी, ऐसी हिम्मत वाली, हंसमुख, रोतों को हंसाने वाली… जरा-सी बीमारी से घबरा गई?’ कहते हुए आलोका भी रो पड़ी।


”तुम भारत की सन्नारियों की आँखों में भगवान ने कितने नियाग्रा प्रपात फिट कर रखे हैं।‘
”तुम्हें तो भैया बीमारी में भी मजाक सूझ रही है। देखो मेरी प्यारी भाभी का कैसा हाल हो गया है।‘


”देखा…. देखा इस मौकापरस्त  को। अभी कहती थी भाभी से लड़ूंगी और अब एकदम उसकी पार्टी में।‘


”क्या करूं भैया, भाभी की मोहिनी सूरत है ही ऐसी। इन पर कोई गुस्सा कर ही नहीं सकता।‘
तभी हाथ में फलों का लिफाफा लिये एक आकर्षक युवती स्कूटर से उतरकर भीतर आई। उसे देखते ही भैया-भाभी दोनों के चेहरे खिल उठे। ”मोहिनी, इससे मिलो- मेरी लाड़ली छोटी इकलौती बहन आलोका। और आलोका, यह है मोहिनी-नाम के अनुरूप सब का मन मोहने वाली।‘


मोहिनी कमरे में रुकी नहीं, बस आलोका से नमस्ते कर किचन में घुस गई। उसने जल्दी से मौसमी का जूस निकाला और भैया को देकर आलोका से कॉफी के लिए पूछने लगी।
”हां-हां, ले आओ मोहिनी, सफर की थकान उतर जायेगी।‘ मोहिनी चटपट कॉफी और साथ में बिस्कुट-नमकीन ले आई। उसे देखकर आलोका को लगा मानो मोहिनी ही इस घर की मालकिन है जो मेहमानदारी का फर्ज निभा रही है। बाद में मीरा से ही पता चला, वह औरत भैया की स्टेनो है। उसके पति ने उसे छोड़ रखा है। मां-बाप पर बोझ नहीं बनना चाहती। इसीलिए अपनी जीविका स्वयं कमाकर अलग घर में रह रही है। आलोका को मोहिनी बहुत ही घिसी हुई चालाक औरत नजर आई। चलते हुए उसने मीरा को एक ओर ले जाकर धीरे से कहा- ‘इस छप्पन-छुपी से बच के रहना।‘


”नहीं, दीदी, मोहिनी को मैं और तुम्हारे भैया अच्छी तरह जानते हैं। वह आम औरतों जैसी नहीं है। बहुत सिंसियर और दु:ख में काम आने वाली है।‘ इससे आलोका को अपना महत्व कम होता नजर आने लगा था। उसे मोहिनी से ईष्र्या होने लगी थी। भैया-भाभी को उस पर अटूट विश्वास था। जब चोट खायेंगे, तभी इन्हें समझ आएगी। उसने मन को दिलासा दिया।
अगली बार जब वह भैया के इकलौते बेटे राजू के मुंडन पर आई, तब नन्दन भी साथ थे। आलोका की बातों से वे पहले ही मोहिनी के खिलाफ प्रेज्युडिज्ड थे। ”तुम उसे जरा भी लिफ्ट मत देना।‘ आलोका ने नंदन को समझाते हुए कहा, ”हमने तो भई, लाइफ में एक ही को लिफ्ट दी और वह इतनी हैवी वेट निकली कि वही नहीं संभल रही तो औरों को लिफ्ट देने के लिए गुंजाइश ही कहा।‘


फंक्शन के वक्त भी मोहिनी हर जगह पंचगिरी करती दिखाई दे रही थी।
‘भाभी को जरा भी अक्ल नहीं और विशू भैया भी बहुत बदल गये हैं। आखिर वह लगती क्या है इनकी! आलोका ने एकांत पाकर नंदन से कहा।


‘यार, तुम क्यों अपना खून जलाती हो। वह जानें, उनका काम। हमें क्या? मेहमान की तरह चार दिन के लिए आये हैं। चले जायेंगे।‘


”लेकिन मैं तो मेहमान नहीं। सगी बहन हूं उनकी। भैया का घर बरबाद होते कैसे देख सकती हूं। बड़े तो बड़े, बच्चे तक को अपने वश में कर रखा है। वह भी आंटी, आंटी की ही रट लगाये रहता है।‘


”क्यों न लगाये, वह कितना कुछ देती रहती है उसे। कल ही तो विशू भैया कह रहे थे, इतना खर्च मत किया करो, मोहिनी! बिगड़ जाएगा।‘ तिस पर वह बोली थी, ‘बिगड़ जाएगा तो हम संभाल लेंगे।‘


मुंडन से लौटने के बाद आलोका कुछ उदास-सी रहने लगी थी।
उसकी शादी को चार-पांच बरस होने को आये थे, लेकिन अभी तक कोई संतान नहीं हुई थी। उन्हीं दिनों उनके पास-पड़ोस में नये किरायेदार रहने आ गए। उनकी बेटी रीमा राजू की उम्र की थी। बड़ी प्यारी बातें करती थी। वह कुछ ही दिनों में आलोका से खूब घुल-मिल गई। इसी बहाने उसका पड़ोस में उठना-बैठना काफी बढ़ गया। उसके मन से उदासी के बादल छंटने लगे। रीमा की मम्मी उससे पूछे बगैर कोई काम नहीं करती थी। घर में कोई फंक्शन करती तो उसी को आगे करती। ठीक मोहिनी की तरह वह भी उनके घर में पंच बनी फिरती। उसके अहं को बड़ी संतुष्टि मिलती। अब धीरे-धीरे उस पर यह बात उजागर हो रही थी कि मोहिनी और उसके भैया-भाभी में क्या रिश्ता था। वह व्यर्थ ही मोहिनी के लिए मन में ऊटपटांग सोचा करती। उसके निश्छल व्यवहार और स्नेह को गलत दृष्टि से देखती थी, जीवन की एसेंशियल बोरडम को दूर करने के हर एक के अपने तरीके होते हैं।
उसने देखा, खुले दरवाजे से रीमा लॉलीपॉप चूसती हुई चली आ रही है। उसके दोनों हाथ लॉलीपॉप से चिपचिपे हो रहे थे। आते ही वह आलोका के ऊपर चढ़ गई और लॉलीपॉप उसने अपनी लॉलीपाप लोका आंटी के होंठों की ओर कर दी। ‘आंटी, चूछो ना, बोअत अच्छी है?’
अब कोई कहे भला उसे भी कि उसने बच्ची को वश में कर रखा है। ….आलोका को अपनी संकीर्ण और ओछी सोच पर बहुत शर्म आ रही थी। आज उसके मन से मोहिनी के प्रति नफरत का अंधकार पूरी तरह मिट गया उसकी जगह उषा का ऊजास फैलने लगा।
हर बात को उजास में देखने वाली आलोका अब यथार्थ में आलोका बन गई थी।