आज का शिशु कल का पूर्ण पुरूष अथवा नारी है, जिसे समाज का बोझ भी ढोना है। यदि उसे आरम्भ से ही अच्छी खुराक नहीं मिलेगी तो उसके शरीर का सही तथा पूर्णरूपेण विकास नहीं हो पाएगा। ऐसा होने पर वह बड़ा होकर अपने दायित्व ठीक से नहीं निभा सकेगा। माता पिता, अभिभावक शिशु के आहार पर जरूर ध्यान दें। शिशु जब गर्भ में रहता है तो मां अपने भोजन से ही उसका शरीर बनाती है। बच्चा पैदा होने पर भी मुख्य रूप से मां तथा अन्य पर निर्भर रहता है। पहले तो मां से प्राप्त दूध ही उसके लिये पूरी खुराक है। मगर जैसे जैसे वह बड़ा होता जाता है, उसे कुछ तरल, कुछ ठोस आहार भी दिया जाता है। जिससे उसके मन तथा शरीर का विकास भी होता है। यदि दूध पीते बच्चे को मां के दूध से पूरी आपूर्ति न होती हो तो उसे गाय का दूध देकर कमी पूरी कर सकते हैं। माता के दूध में सभी आवश्यक तत्व रहते हैं। गाय के दूध में शक्कर कम रहती है। वसा भी अधिक होता हैं मगर प्रोटीन तीन गुना होता है। अत: गाय के दूध में आधा पानी मिला दें। बच्चा जब बड़ा होने लगता है तथा उसे विटामिन ‘सी’ तथा ‘डी’ की आवश्यकता रहती है। इसके लिये उसे संतरे, मौसम्बी का रस या फिर मछली के तेल की बूंदें दी जा सकती है। पांच महीनों तक बच्चे को ठोस आहार नहीं दिया जाता। अब बारी है सूजी की खीर, मथे हुए केले, हल्की व पतली खिचड़ी की। इनके अतिरिक्त मूंग की दाल का पानी भी देते हैं। जब बच्चे को यह सब भोज्य पदार्थ मिलते रहेंगे तो उसकी दूध पीने की मात्रा स्वत: कम होती जाएगी। शरीर का विकास भी तेजी से होगा। जब शिशु रोए, तभी दूध आदि देना ठीक नहीं। रोने का कारण केवल भूख ही नहीं हो सकता। उसे निश्चित समय पर ही दूध आदि दें। बच्चा भी अपने आप को स्वत: उन समयों के अनुरूप ढ़ाल लेगा। बच्चा शौच, मूत्र आदि बिस्तर पर या कपड़ों में न करे, इसका अभिभावक ध्यान रखकर उसे समय समय पर पेशाब आदि कराते रहें। जब भी उसे तरल ठोस आहार खिलाएं वह सुपाच्य, हल्का बिना मिर्च मसालों का हो। भोजन की तासीर भी ऋतु के अनुसार हो। ऐसे आहार जिस में खटाई भी हो, शिशु को न दें। पेट में दर्द, उल्टी, ठंड लगना, गला खराब होना, पेचिश, खांसी आदि न हो पाएं, इसलिए आहार का चुनाव सोच कर करें। मां या अभिभावक ध्यान रखें कि बच्चे का आहार उसके अनुरूप हो जिससे उसका विकास सही अनुपात में हो सके।