भारत रत्न सम्मान : इतिहास के आइने में

भारत रत्न देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है।यह सम्मान नस्ल, पेशा, पद, लिंग आदि के भेदभाव से परे उत्कृष्ट सेवा/उपलब्धि के लिए दिया जाता है। इन सेवाओं में कला, साहित्य विज्ञान, सार्वजनिक सेवा और खेल शामिल है। आरंभिक दौर में यह सम्मान कला, साहित्य,विज्ञान एवं लोकसेवा के क्षेत्र तक सीमित रखा गया था, लेकिन 2011में इसका विस्तार मानवीय गतिविधियों के किसी भी क्षेत्र तक कर दिया गया।


इसकी स्थापना 2 जनवरी, 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद द्वारा की गई थी। अन्य अलंकरणों के समान इस सम्मान को भी नाम के साथ पदवी के रूप में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता। प्रारम्भ में इस सम्मान को मरणोपरान्त देने का प्रावधान नहीं था, लेकिन लाल बहादुर शास्त्री की असामयिक मृत्यु के बाद उन्हें मरणोपरांत यह सम्मान देने के लिए, प्रावधानों में संशोधन कर मरणोपरांत देने की व्यवस्था 1966 में की गई। अबतक 14 व्यक्तियों को यह सम्मान मरणोपरान्त प्रदान किया गया है। एक वर्ष में अधिकतम तीन व्यक्तियों को ही भारत रत्न दिया जा सकता है।


इस पुरस्कार को इसके इतिहास में दो बार संक्षिप्त रूप से निलंबित किया गया। पहला निलंबन 13 जुलाई, 1977 को हुआ जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने सभी व्यक्तिगत नागरिक सम्मान नहीं देने का निर्णय लिया। इंदिराजी ने सत्ता में लौटने के बाद 25जनवरी,1980 को इसे पुन: शुरू किया।


ऐसा कोई औपचारिक प्रावधान नहीं है कि भारत रत्न पाने वालों को भारतीय नागरिक होना चाहिए। इसे 1980में मदर टेरेसा को प्रदान किया गया,जो जन्मजात भारतीय नागरिक नहीं थीं।दो गैर-भारतीयों,1987 में पाकिस्तान के अब्दुल गफ्फार खान और 1990 में दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला को प्रदान किया गया है। सचिन तेंदुलकर यह सम्मान पाने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति और पहले खिलाड़ी हैं।धोंडो केशव कर्वे सबसे उम्रदराज जीवित प्राप्तकर्ता थे,जब उन्हें 18अप्रैल,1958 को उनके 100वें जन्मदिन पर सम्मानित किया गया था।


भारत रत्न पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं की सूची

1. सी राजगोपालाचारी (1954)
2. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (1954)
3. सी.वी. रमन (1954)
4. भगवान दास (1955)
5. एम. विश्वरवैया (1955)
6. जवाहरलाल नेहरू (1955)
7. गोविंद बल्लभ पंत (1957)
8. धोंडो केशव कर्वे (1958)
9. बिधान चंद्र रॉय (1961)
10. पुरुषोत्तम दास टंडन (1961)
11. डॉ राजेंद्र प्रसाद (1962)
12. जाकिर हुसैन (1963)
13. पांडुरंग वामन काणे (1963)
14. लाल बहादुर शास्त्री (1966)
15. इंदिरा गांधी   (1971)
16. वी.वी. गिरी (1975)
17. के कामराज (1976)
18. मदर टेरेसा  (1980)
19. विनोबा भावे (1983)
20. खान अब्दुल गफ्फार खान (1987)
21. एम.जी. रामचंद्रन (1988)
22. भीमराव अंबेडकर (1990)
23. नेल्सन मंडेला (1990)
24. राजीव गांधी (1991)
25. सरदार वल्लभभाई पटेल (1991)
26. मोरारजी देसाई (1991)
27. अबुल कलाम आजाद (1992)
28. जे.आर.डी. टाटा (1992)
29. सत्यजीत रे (1992)
30. गुलजारी लाल नंदा (1997)
31. अरूणा आसफ अली (1997)
32. एपीजे अब्दुल कलाम (1997)
33. एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी (1998)
34. चिदंबरम सुब्रमण्यम (1998)
35. जयप्रकाश नारायण (1999)
36. अमत्र्य सेन (1999)
37. गोपीनाथ बोर्दोलोई (1999)
38. रविशंकर (1999)
39. लता मंगेशकर (2001)
40. बिस्मिल्लाह खान (2001)
41. भीमसेन जोशी (2009)
42. सी.एन.आर. राव (2014)
43. सचिन तेंदुलकर (2014)
44. मदन मोहन मालवीय (2015)
45. अटल बिहारी वाजपेई (2015)
46. प्रणव मुखर्जी (2019)
47. नानाजी देशमुख (2019)
48. भूपेन हजारिका (2019)
49. कर्पूरी ठाकुर (2024)
50. लाल कृष्ण आडवाणी (2024)
51. चौधरी चरण सिंह (2024)
52. पी. वी. नरसिंह राव (2024)
53. एम एस स्वामीनाथन (2024)


भारत रत्न सम्मान और विवाद

भारत रत्न सम्मान को लेकर भी समय-समय पर विवाद होते रहे हैं।


1. 1955 में जवाहरलाल नेहरू और 1971में इंदिरा गांधी को जब भारत रत्न सम्मान दिया गया,तब ये दोनों खुद प्रधानमंत्री थे,आलोचना करने वाले यह कहते हैं-यह तो वही बात हो गई-अंधा बांटे रेवड़ी,पुनि-पुनि खुद को दे। न्यायिक परम्परा यही है कि कोई भी व्यक्ति अपने बारे में न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा नहीं हो सकता।


2.1992 में दो जनहित याचिकाएं दायर की गईं(एक केरल उच्च न्यायालय में और दूसरी मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में) और पुरस्कारों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई। मुकदमे के समापन के बाद दिसंबर 1995में पुरस्कारों को फिर से शुरू किया गया।


3. 23 जनवरी,1992 को राष्ट्रपति सचिवालय द्वारा सुभाष चन्द्र बोस को मरणोपरांत पुरस्कार प्रदान करने के लिए एक प्रेस विज्ञप्ति प्रकाशित की गई। इस निर्णय को एक जनहित याचिका में चुनौती दी गई, जिसमें याचिकाकर्ता ने पुरस्कार देने और बोस के मरणोपरांत उल्लेख पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि पुरस्कार से अधिक महान व्यक्तित्व का सम्मान करना हास्यास्पद और लापरवाही का कार्य है। यह सुभाष चन्द्र बोस को अतीत और भविष्य के प्राप्तकर्ताओं के साथ वर्गीकृत करना भी है। इस बात का भी विरोध किया गया कि बोस को मरणोपरांत पुरस्कार नहीं दिया जा सकता क्योंकि सरकार ने आधिकारिक तौर पर 18 अगस्त, 1945 को सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु को स्वीकार नहीं किया था।  बोस के परिवार ने भी पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर फैसला देने के लिए दो जजों की विशेष खंडपीठ का गठन किया।


सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि भारत रत्न से संबंधित उचित नियमों के अनुसार पुरस्कार प्रदान करने के लिए,प्राप्तकर्ता का नाम भारत के राजपत्र में प्रकाशित किया जाना चाहिए और राष्ट्रपति के निर्देश के तहत बनाए गए प्राप्तकर्ता रजिस्टर में दर्ज किया जाना चाहिए। यह नोट किया गया कि केवल प्रेस विज्ञप्ति द्वारा एक घोषणा की गई थी,लेकिन सरकार ने राजपत्र में नाम प्रकाशित करके और राष्ट्रपति द्वारा सनद प्रदान नहीं किए जाने पर रजिस्टर में नाम दर्ज करके पुरस्कार प्रदान करने के लिए आगे नहीं बढ़ाया था। 4अगस्त,1997 को, सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश दिया कि चूंकि पुरस्कार आधिकारिक तौर पर प्रदान नहीं किया गया था, इसलिए इसे रद्द नहीं किया जा सकता और घोषित किया जा सकता है कि प्रेस विज्ञप्ति को रद्द माना जाए। अदालत ने मरणोपरांत उल्लेख पर कोई भी निर्णय पारित करने से इनकार कर दिया।


4.अटल बिहारी वाजपेयी,जब प्रधानमंत्री थे,तो उन्होंने विनायक दामोदर सावरकर को मरणोपरांत भारत रत्न सम्मान दिए जाने की अनुशंसा की थी। लेकिन,तत्कालीन राष्ट्रपति के. आर. नारायणन ने अटलजी का ध्यान इस तथ्य की ओर आकृष्ट किया था कि सावरकर ने ब्रिटिश हुक्मरानों से माफी मांगी थी। के.आर.नारायणन की आपत्तियों के आलोक में यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया था।


5. 2019 में जब भूपेन हजारिका और प्रणव मुखर्जी को भारत रत्न सम्मान देने की घोषणा की गई,तो यही माना गया था कि 2011 के असम विधानसभा और प.बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान वोटरों को रिझाने का यह प्रयास है।


6.महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव, 2019के पहले अपने संकल्प पत्र में भाजपा ने वादा किया था कि अगर वह सत्ता में आई,तो विनायक दामोदर सावरकर को मरणोपरांत भारत रत्न सम्मान देगी। लेकिन, भाजपा को सत्ता मिली ही नहीं।