कहानी – आई लव यू

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‘नमस्ते,  ‘दुआ सलाम, ‘हाय हेलो की तरह ही आज का प्रचलित वाक्य है-‘आई लव यू। न चाहते हुये भी दिन में 5-10 बार कानों में यह वाक्य सुनाई पड़ ही जाता है और यदि  टी.वी. खोलकर दिन भर में 3 घंटे भी बैठें तो यह वाक्य 20-25 बार तो कानों में बज ही जाता है। लेकिन अब यह अपनी निरंतर आवृत्ति की वजह से मधुर जलतंरग-सा नहीं बजता, बल्कि सड़क पर निकलती ढ़ेर सारी साइकिलों की घंटियों की बेअसर टुनटुनाहट-सा बजकर निकल जाता है, लेकिन बूढ़ा माइकल भी अजीब शख्स है कि पूरी उम्र गुजार देने के बाद भी बचपन से जवानी और जवानी से बुढ़ापे तक  के सफर के अंतिम पड़ाव पर मृत्यु को गले लगाते-लगाते भी वह कभी अपनी प्रेयसी से लाख प्रयास करने के बावजूद ‘आई लव यू’  न कह सका। वैसे यह कोई विशेष बात नहीं है। हजारों ऐसे कायर प्रेमी होंगे जिनके दिल भरी जवानी में  कई-कई बार मचले होंगे, लेकिन हिम्मत लगातार जवाब देती रही होगी और अंत में बिना इश्क किये विवाह की वरमाला में गुंथी दुल्हन को हथिया कर सुखमय (या दुखमय)  दांपत्य जीवन बिताते हुए सुविधापूर्वक विधिवत् जिन्दगी के चार दिन काट देते हैं, लेकिन माइकल की कहानी इन सबसे अलग हटकर है।



बचपन और किशोरावस्था में पड़ोस में ही रहने वाली सोफिया के साथ स्कूल बस या साइकिल में एक साथ बैठकर स्कूल जाते तथा युवावस्था में कॉलेज तक एक साथ पढ़ाई के लिये जाते हुए संयोग से एक ही स्कूल और कॉलेज में पढ़ाई के दौरान उनकी घनिष्ठता इस कदर बढ़ती चली गर्ह कि माइकल को पता नहीं चला कि वह कब सोफिया को प्यार करने लग गया। सोफिया यदि एक दिन भी कॉलेज नहीं पहुंच पाती तो वह बैचेन हो उठता और जब वह कॉलेज आती तो, बस, क्लास रूम में माइकल उसकी नीली आंखों में डूबा रहता।
उन झील-सी नीली आंखों में उसकी कल्पना के फूल खिलते रहते और वह क्लास रूम से निकलकर अपना अस्तित्व उन आंखों में डुबो देता। अक्सर उसकी यह दीवानगी भरी तंद्रा टीचर द्वारा प्रश्न पूछे जाने पर या उसके नाम पुकारे जाने से टूटती और इस समय टूटी तंद्रा की हड़बड़ाहट में उसकी बौखलाहट पूरे क्लास रूम के स्टूडेन्ड्स के लिये अच्छा-खासा परिहास का दृश्य उपस्थित कर देती थी। उस समय न जाने क्यों सोफिया हरदम अपने आपको लज्जा भरी विचित्र स्थिति में पाती थी। लेकिन फिर भी वह माइकल से कभी भी कुछ न कह पाती थी, लेकिन बस इसके आगे तो माइकल कुछ करने का साहस ही न कर पाता। कॉलेज में साथ-साथ आते-जाते वक्त दुनिया भर की बातें वह सोफिया से बिना आंखें मिलाये कर लेता था, लेकिन वह कभी ‘आई लव यू’ का वाक्य कहने का साहस न कर पाया। जब कभी कॉफी हाऊस या उसके अथवा अपने घर में आमने-सामने बैठता, तो बस सोफिया की नीली आंखों को ही देखता रहता। ऐसे में सोफिया भी पलकें झपका कर खिलखिला कर हंस पड़ती और कहती-‘क्यों माइकल, कहां खो गये?  और वह हड़बड़ा कर हकलाते हुये अपनी सफाई देने लग जाता।



आखिर एक दिन उसने हिम्मत कर ही डाली और अपने फूलों के बगीचे से गुलाब का एक सुंदर-सा फूल लेकर वह कॉलेज जाते वक्त साथ हो लिया। रास्ते में एकांत देखकर सोफिया की तरफ गुलाब का फूल बढ़ाते हुये रोमांचित व थरथराते हुये स्वर में बोला-‘सोफिया, यह फूल ‘ सोफिया ने आमंत्रण भरी निगाहों से उसकी ओर देखते हुये कहा – ‘बड़ा सुंदर गुलाब का फूल है माइकल, थैंक्यू।‘  और फूल लेकर वह उसकी पंखुडिय़ों को अपने नाजुक हाथों से सहलाते हुये उसकी ओर इस आशा से देखती रह गई कि शायद वह आगे कुछ बोले, लेकिन माइकल तो बस सोफिया की नीली आंखों में खोया न जाने कल्पना के किस लोक में विचरण कर रहा था। कुछ क्षण उसकी ओर देखते हुये सोफिया खिल-खिलाकर हंस पड़ी और जल्दी-जल्दी कॉलेज की ओर कदम बढ़ाने लगी। माइकल खीझ और झुंझलाहट में अपने आपको कोसता हुआ पीछे-पीछे चल पड़ा, लेकिन फिर तो यह क्रम रोज का ही हो गया। हर दिन बगीचे में गुलाब के फूल खिलते। माइकल उनमें से एक फूल तोड़कर अपने दिल के  गुब्बारे में हिम्मत की हवा भरता, लेकिन सोफिया को गुलाब का फूल देते ही न जाने कहां से दिल के गुब्बारे से हिम्मत की हवा लीक होनी शुरू हो जाती और सोफिया गुलाब का फूल लेकर मुस्कुराते हुये ‘थैंक्यू’  कहकर आगे बढ़ जाती।  


खैर पढ़ाई खत्म हुई। माइकल और सोफिया दोनों की ही नौकरी लग गई। फिर एक बार ऐसा संयोग हुआ कि जिस ऑफिस में सोफिया टायपिस्ट की पोस्ट पर नियुक्त हुई, उसी ऑफिस में माइकल को भी क्लर्क की नौकरी मिल गई। लेकिन कॉलेज से जन्मा गुलाब का फूल भेंट करने का वह दीवानगी भरा क्रम अपने पैरों पर खड़े होकर कर्म-क्षेत्र में संघर्ष के दौरान भी जारी रहा। वह दीवानगी भरा गुलाब के फूल के अर्पण का क्रम दोनों के ही जीवन के एक कोमलता भरे अहसास का अनिवार्य हिस्सा बनकर रह गया था। अगर सोफिया कभी कुछ दिनों के लिये शहर से बाहर चली जाती तो जितने दिन वह बाहर रहती,  उतने दिन के इकट्ठे गुलाब के फूल वह मिलने पर उसे गुलदस्ता बनाकर भेंट कर देता। सोफिया भी उसकी इस दीवानगी भरी हरकत की धीरे-धीरे अभ्यस्त होती चली गई। जब टाइफाइड हो जाने पर माइकल पंद्रह दिनों तक ऑफिस न आ पाया था, लेकिन वह सोफिया के घर के सामने से निकलते ही उठकर गुलाब का फूल देने जरूर जा पहुंचता। सोफिया माइकल की इस दीवानगी पर झुंझला उठती, पर कुछ कह न पाती।


एकाएक कछुए से चलते समय ने अपनी चाल बदली और महत्वाकांक्षी प्रवृत्ति के चलते सोफिया प्रगति के सोपानों पर पग धरती साधारण टाइपिस्ट से पर्सनल सेक्रेटरी के पद तक जा पहुंची। जबकि आत्म-केंद्रित, अपने आप में खोया रहने वाला माइकल साधारण क्लर्क से एक कदम भी आगे न बढ़ सका। सोफिया की प्रगति ने उसकी आत्महीनता को इस कदर बढ़ा दिया कि वह अपने आप में सिमट कर रह गया। फिर भी उसने सोफिया को गुलाब का फूल देना बंद नहीं किया, लेकिन अब स्थिति कुछ ऐसी थी कि वह सोफिया द्वारा फूल ले लेने पर ही कृतार्थ हो जाया करता था। वह उसके चेहरे या आंखों की तरफ देखने का साहस ही नहीं कर पाता था। सोफिया उसकी इस आत्महीनता से उसे उबार कर निरंतर प्रगति पथ पर अग्रसर होने हेतु  प्रोत्साहित करती रहती थी, लेकिन इस दिशा में जितना अधिक प्रयास करती, उतना ही अधिक माइकल अपने आप में सिमटता चला जाता। सोफिया जानती थी कि इस आत्महीनता से माइकल को उसके प्रेम का प्रतिदान ही उबार सकता है। पर इसके लिए भी तो यह जरूरी था कि माइकल उसके सामने प्रेम-प्रस्ताव रखे। अपने हाव-भाव से उसने माइकल को आकर्षित करने में कोई कसर न छोड़ी, लेकिन माइकल पर हीन-ग्रंथि इतनी प्रभावी थी कि वह कभी साहस न कर पाता था। बस, अपने आप में सोचता रह जाता था कि कहीं सोफिया ने ‘नाÓ  कर दी, तो? या उसने दुत्कार दिया तो? और यदि मिलना या बात करना भी छोड़ दिया तो? बस, इसके आगे की कल्पना से ही उसे ऐसा लगता था जैसे उसकी जिंदगी की सभी खुशियां छिन जायेंगी।


शायद  फिर वह जी ही न सके। बस, गुलाब का फूल भेंट करते समय मिलने वाली मुस्कुराहट पूरे दिन के लिये  संजीवनी का काम करती, जिसे किसी भी हालत में वह खोना नहीं चाहता था। दूसरी ओर सोफिया प्रारंभ से ही नारी सुलभ लज्जा से स्वयं पहले पे्रम-प्रस्ताव नहीं रख पाती थी, लेकिन धीरे-धीरे यह उसके लिये एक चुनौती, एक आत्म-सम्मान और शायद एक हठ का विषय हो गया था कि वह पहल क्यों करें? स्थिति बड़ी विचित्र थी। दोनों के ही दिलों में एक-दूसरे के लिये आकर्षण था, लगाव था, बल्कि स्थिति यहां तक पहुंच गई थी कि दोनों एक-दूसरे से मिले बिना रह नहीं पाते थे, लेकिन दोनों के ही होठों से ‘आई लव यू’ का शब्द भी नहीं निकल पाता था। एक तरफ एक अनोखी जिद, तो दूसरी तरफ आत्महीनता भरी बेचारगी से उपजा भय प्रेम-याचना की राह की भीषण शिला बन बैठा था।
इस बीच दोनों ही के परिवारों द्वारा विवाह के लिये जोर डाला जाने लगा। पर दोनों ही कोई न कोई बहाना बनाकर टालते चले गये। कुछ परिचितों ने दोनों के परस्पर विवाह के प्रस्ताव भी उनके सामने रखे, लेकिन जहां एक ओर सोफिया अपनी मानभरी जिद की वजह से उसे स्वीकार न कर सकी, वहीं दूसरी ओर माइकल अपनी हीनता की वजह से खुद को सोफिया के योग्य ही नहीं पाता था।


अत: दोनों ही ऐसे प्रस्ताव पर या तो बात टाल देते थे या फिर बिना कोई जवाब दिये मौन व्रत धारण कर लेते थे। पर जीवन-साथी के रूप में किसी दूसरे की न तो माइकल कल्पना कर पाता था और न ही सोफिया।


धीरे-धीरे दोनों ही अपने-अपने खोल में एकाकी होते चले गये। बस, दिन भर में वे ही पल उनके लिये, हसीन होते थे जब वे परस्पर मिलते  और माइकल गुलाब का फूल सोफिया को देता। सोफिया फूल लेकर मुस्कुराती, पर उस मुस्कुराहट के पीछे   एक दर्द छिपा होता।
समय गुजरता चला गया। दिन, माह व वर्ष गुजरते चले गये और न जाने कितनी ही बार दोनों ने प्रेम-याचना का निर्णय लिया। लेकिन एक-दूसरे के आमने-सामने होते ही उनके निर्णय बिखरते चले गये।


समय के साथ यौवन के दिन कब गुजर गये, पता ही न चला। उम्र युवावस्था से प्रौढावस्था और प्रौढ़ावस्था से वृद्घावस्था की ढ़लान पर फिसलती चली गई। परस्पर प्रेम का इजहार किये बिना भी दोनों एक दूसरे के प्रति इस हद तक समर्पित हो उठे थे कि एक की जरा-सी परेशानी दूसरे को बैचेन कर देती थी। पूरी उम्र अविवाहित रहने से रिश्तेदारों के संबंध भी औपचारिक होते-होते समाप्त प्राय: होते चले गये और फिर दोनों ने ही अपने आपको नितांत एकाकी पाया। बस, यदि कोई अपना  करीबी लगता था तो वह था माइकल के लिये सोफिया और सोफिया के लिए माइकल।


अब सोफिया अपनी जिद भी छोडऩे के लिये तैयार थी,  लेकिन चेहरे की झुर्रियां और सिर के पके बाल उसे आभास दिला देते थे कि यह उम्र-प्रेम-याचना या विवाह की नहीं है और यदि उसने ऐसा साहस किया भी, तो अपने उस प्रतिष्ठित समाज के बीच वह उपहास का पात्र बनकर रह जायेगी। जिसके बीच इतने दिनों की महत्वाकांक्षा की दौड़ में वह एक प्रतिष्ठित स्थान बना चुकी थी।


धीरे-धीरे जीवन के एकरसता भरे सफर में, दोनों के ही जीवन में सिर्फ एक ताजे गुलाब के फूल की महक, उसकी पंखुडिय़ों की कोमलता के रोमांचक स्पर्श से वृद्घावस्था के शरीर में भी उन दोनों का दिल तो निरंतर नवयुवा प्रेमियों-सा धड़कता रहता था। संभवत: यह अनकहे प्रेम के प्रतिदान से धड़कते दिल का रोमांचक अनुभव उन सफल प्रेमियों को भी तमाम उम्र न मिल पाया होगा, जिन्होंने प्रेम का प्रतिदान करके अपना, मनचाहा साथी पा लिया है।
परस्पर सानिध्य की डोर में बंधे उम्र गुजारते माइकल एवं सोफिया की जिन्दगी में उस समय विचलन भरी स्थिति आ खड़ी हुई जब माइकल साधारण बीमारी को अपनी लापरवाही के फलस्वरूप उग्र बनाता चला गया और अंतत: खाट पर जा लगा। ऐसे में सोफिया माइकल को इस असहाय स्थिति में अकेला न छोड़ सकी। आत्म-सम्मान, प्रतिष्ठा, जमाने की परवाह-कुछ भी तो उसकी राह न रोक सके और वह माइकल के ही घर में उसकी बीमारी की हालत में परिचर्या के उद्देश्य से रहने लगी।


गंभीर से गंभीरतम होती बीमारी की हालत से भी माइकल सोफिया को गुलाब का फूल देना एक दिन भी न भूला। बस, फर्क सिर्फ इतना था कि बगीचे से फूल तोड़कर सोफिया माइकल को देती और माइकल कांपते-थरथराते हाथों से उसे वापस सोफिया को दे देता, जिसे हाथों से लेकर अक्सर सोफिया सिसक उठती।


सोफिया के दिल में इन दिनों विचित्र-सा संघर्ष चल रहा था। रह-रह कर जहां वह अनजाने भविष्य की कल्पना करते सिहर उठती थी, वहीं दूसरी और टूटते, क्षीण होते शरीर से माइकल को भी अपना अंतिम समय समीप आता नजर आ रहा था। ऐसी स्थिति में रह-रह कर उसके दिल में एक ही कसक उठती थी कि क्या वह बिना अपने प्रेम का इजहार किये ही इस दुनिया से चला जायेगा? भले ही अब प्रेम के इजहार से उसे कुछ हासिल न हो, लेकिन वर्षों से जो चिंगारी दिल में दबी हुई थी, वह अब अंतिम समय में ज्वाला बनकर भभक उठी थी। मात्र प्रेम का इजहार तथा प्रेयसी द्वारा उनकी प्रेम-याचना का स्वीकारा जाना ही उसके जीवन की इस समय की सबसे महत्वपूर्ण अभिलाषा थी। पर अब भी उसके दिल में कहीं यह आशंका भी दबी हुई थी कि कहीं सोफिया मुझसे प्यार न करती हो।


मात्र इतने दिनों  के साथ की वजह से  सहानुभूति के नाते ही वह उसकी देखभाल कर रही हो। यदि ऐसा हुआ तो यह अहसास मरने के बाद भी उसकी आत्मा को बैचेन किये रहेगा।
एक दिन जब माइकल की हालत काफी बिगड़ गई तब डाक्टर ने भी जवाब दे दिया तो नजदीक खड़ी रोती हुई सोफिया को ओर करीब बुलाकर तकिये के नीचे से सुबह सोफिया के ही द्वारा तोड़े हुये गुलाब को उसकी ओर बढ़ाते हुये माइकल लरजते स्वर में बोला- ‘सोफिया!


मैं पूरी उम्र तुमसे कुछ कहना चाहता रहा, लेकिन कह न सका। सोफिया! आई..लव..यू!’  और उसके आगे काल के क्रूर हाथों ने उसे कुछ कहने का मौका ही न दिया। सोफिया हिचकियां लेती हुई उठी और पागलों की तरह माइकल के चेहरे को चूमती हुई बोली- ‘माइकल, तुम न कह सके, पर मैं जानती हूं।


 मेरे शरीर के रोम-रोम को अहसास है कि तुम मुझे बहुत प्यार करते हो। आई लव यू माइकल, आई लव यू।‘  और फिर उठकर उसने अपने उस बड़े बक्से को खोला जिसे वह अपने साथ लेकर आई थी तथा पूरी जिंदगी कोई न जान सका था कि सोफिया उस बक्से में अपनी कौन-सी बेशकीमती वस्तु रखती थी जिसे वह कभी भी किसी को न दिखाती थी।
 उस बक्से में ऊपर तक भरे हुये सूखे हुये वे गुलाब के फूल थे जो माइकल उसे रोज भेंट करता था और वह उस प्रेम की अनमोल थाती को सहेज कर रखती जाती थी।


 धीरे-धीरे बक्से से फूलों को उठा-उठाकर वह माइकल के शव पर बिखेरती चली गई और बुदबुदाती रही- ‘माइकल, आई लव यूं।‘   पर पूरी उम्र जिस वाक्य को कहने एवं सुनने की माइकल को बेकरारी थी, वह अब इस दुनिया में नहीं था।


सुबह जब मोहल्ले वालों ने देर तक दरवाजा न खुलते देखकर मकान का दरवाजा तोड़ा तो कमरे में चारों ओर बिखरे, मुरझाये हुये गुलाब के फूलों की पंखुडिय़ां और कल का एक ताजा गुलाब का फूल लिये खड़ी थी मानसिक संतुलन खो चुकी सोफिया, जो बार-बार कांपती-थरथराती आवाज में बस एक ही वाक्य कहती जा रही थी- ‘आई लव यू माइकल, आई लव यू…माई डियर माइकल..आई लव यू टू मच!’