रोमांस से सिंचित प्रणय वृक्ष में ही सुखमय वैवाहिक जीवन के फल लगते हैं और साहचर्य, खुला व्यवहार, पारस्परिक मनोरूचियों का ध्यान, परस्पर आदर भाव, और नैतिक मूल्यों में सामंजस्य इस ’वृक्ष‘ के लिए खाद का काम करते हैं।
यदि लोग पारस्परिक मनोरूचियों और नैतिक मूल्यों को नहीं बढ़ाते तो वे एक दूसरे से उकताने लगते हैं। वैवाहिक अनुरक्ति एक लौ है। यह धीमे धीमे जल कर दिलों को उष्णता देती है। उदारता, एक दूसरे का लिहाज, संसर्ग, एक दूसरे की आदतों से समझौता करना आवश्यक है। अलग-अलग गतिविधियों में मिलकर, तत्परता से हिस्सा लेने, नैतिक मूल्यों में सामंजस्य स्थापित करने और पारस्परिक आदर भाव के बिना वैवाहिक अनुरक्ति का कोई अस्तित्व ही नहीं रह जाता।
अपने पति या पत्नी को साथ लिए बिना कुछ करने या कहीं जाने पर बहुत से लोग अपने आप को दोषी महसूस करते हैं। एक सफल और सुखमय विवाह के लिए यह जरूरी है कि दंपति को 74 से 80 प्रतिशत एक एक दूसरे का साथ मिले। साथ ही निजी उन्नति और एकांत के लिए उनमें पर्याप्त दूरी भी होनी चाहिए।
आमतौर पर एक दूसरे की भावनाओं की जिम्मेवारी अपने ऊपर ले लेने की गलती हो जाया करती है। यदि कोई सोचने लगे कि उसका सुख दूसरे के हाथ में है तो प्रवृत्ति यह हो जाती है कि वह खुद तो निठल्ला बैठा रहे और सुख की सारी खीर उसी के आगे परोसी जाए।
अपने संतोष और परिपूर्णता का भार स्वयं अपने ऊपर लें। इससे आपके विवाह के आनन्दकारी और लाभप्रद होने की संभावनाएं बढ़ेंगी।
अधिकांश व्यक्ति यह आवश्यक समझते हैं कि दफ्तर या कारखाने में वे अपना व्यवहार, किसी भी हाल में शालीन रखें, इसलिए घर ही मन के अंदर की दबी और उमड़ रही भावनाओं का मुक्ति स्थल बन जाता है। वे अपनी कुंठाओं के मूल कारणों का सामना नहीं करते, इसके बजाय वे कभी अपने बच्चों को पीटते हैं, कभी कुत्ते को ठोकर मारते हैं, या फिर अपने पति या पत्नी पर गालियां बरसाते हैं। घर में घुसते ही जो सामने पड़ गया, सारी भड़ास वहीं निकाल दी। वे यह नहीं देखते कि इसमें क्या अनुचित या शर्मनाक है।
व्यवहार कुशलता, नम्रता और अच्छे शालीन हास-परिहास से घर में प्रसन्नता और प्रेम का समावेश हो जाता है। अपने पति या पत्नी को इतना आदर तो अवश्य ही दें जितना आप किसी अजनबी को देते हैं।
बहुत बार ऐसा देखा जाता है कि पति या पत्नी बिना कहे ही दूसरे से मन की बात समझ लेने की अपेक्षा करते हैं, अगर वह मुझे सचमुच प्यार कर रहा होता तो वह इसे बिना कहे ही जान जाता।
दरअसल यह सब वाहियात बातें हैं। प्रेम की प्रबलता के बावजूद एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की भावनाओं को अपने आप नहीं समझ सकता। इन बातों को शिक्षा, उदाहरणया गलतियां कहते और सुधारते ही सीखा जा सकता है। थोड़ा लिखा, बहुत समझना की उक्ति जबरन हर जगह लागू मत कीजिए।
होशियारी इस बात में है कि दंपति एक दूसरे को परस्पर सद्भाव और सहयोग का उत्तम तरीका सिखायें। मतलब यह कि सचमुच जो आपका आशय हो वही कहें और जो कहा जाए उसका वही मतलब निकालें। लक्षण, श्लेष, वक्रोक्ति और अतिशयोक्ति के प्रयोग से बचें। अपने भागीदार से यह अपेक्षा न करें कि अपने आप वह आपके मन की बात जान जाए।
अधिकांश सफल विवाह असुरक्षा की क्षीण भावना पर टीके होते हैं। अपनी पत्नी या पति की निष्ठा या अनुरक्ति के विषय में पूरी तरह आश्वस्त रहना उसे बहुत ज्यादा निश्चित मानना है। अगर आपके पति या पत्नी इतने सामान्य हैं कि दूसरों को आकर्षित नहीं कर सकते तो यह विश्वास आपके मन को आदरभाव, उत्साह या संतोष नहीं प्रदान कर सकता। वैवाहिक जीवन में उपेक्षा या दुर्व्यवहार मिलने पर यदि आप अपने पति या पत्नी में दूसरों को आकर्षित करने की क्षमता पाते हैं तो आप निश्चय ही उसका और भी ख्याल रखेंगे और अपना प्यार जतायेंगे।
जिस तरह सच्चे भावनात्मक प्रेम की परिभाषित नहीं किया जा सकता, उसी तरह सफल, सार्थक वैवाहिक जीवन के कुछ ऐसे भी फार्मूले हैं जिन्हें शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। और, ये अव्यक्त भावनाएं ही सफल वैवाहिक जीवन में अहम् भूमिका रखती हैं।