जो बच्चे बचपन में वीर और साहसी होते हैं, वे बड़े होकर भी इतने वीर और साहसी बन जाते हैं कि वे कभी-कभी देश के भाग्य विधाता और इतिहास निर्माता बन जाते हैं। इस तरह का एक वीर और साहसी बालक न केवल बचपन में अपितु बड़े होकर भी वीरता और साहस के साथ अन्याय का मुकाबला करता रहा। बड़ा होकर यह बालक इतना वीर और साहसी हुआ कि इस देश का महान और अमर नेता बन गया तथा इस देश के कोई 600 राजाओं को उसके सामने झुकना पड़ा। आज हम भारत का जो नक्शा देखते हैं, वैसा नक्शा 15 अगस्त 1947 को नहीं था। यह देश 600 छोटे-बड़े राज्यों में बंटा हुआ था। कई राज्य तो सिर्फ एक-एक या दो-दो गांव के थे। इन रियासतों और राज्यों के राजा आपस में लड़ते रहते थे। इस लड़ाई में वे अपनी जनता की भलाई की बात भी नहीं सोचते थे। इसी आपसी लड़ाई के कारण यह देश गुलाम हो गया था और व्यापारी बनकर आए अंग्रेज इस देश पर शासन करने लगे थे।
भारत जब आजाद हुआ तो इस देश के एक महान एवं साहसी नेता ने अपने सारे साहस के साथ कहा कि यह देश इसी प्रकार राज्यों में बंटा रहा तो कभी भी उन्नति नहीं कर सकेगा। इस नेता ने चेतावनी दी कि यदि 15 अगस्त के पूर्व इस देश के राजा अपनी रियासतों को स्वाधीन भारत में विलीन नहीं कर देते तो फिर बाद में स्थिति अलग होगी और राजाओं के बारे में कोई विचार नहीं किया जाएगा।
इस नेता की दृढ़ता और साहस के सामने राजाओं को झुकना पड़ा और सारी रियासतों को मिलाकर इस महान देश भारत वर्ष का नवनिर्माण हुआ। इस साहसी नेता का नाम था- सरदार वल्लभ भाई पटेल, जो लौहपुरुष के नाम से भी विख्यात थे।
सरदार पटेल बचपन से ही साहसी थे। उनके साहस की एक घटना बड़ी मशहूर है। जब वे बहुत ही छोटे थे, तब उन्हें एक फोड़ा हुआ था। उनके गांव में न तो डॉक्टर था और न ही अस्पताल। उन दिनों फोड़ा ठीक करने का यह उपाय प्रचलित था कि फोड़े के स्थान को गर्म सलाख से दाग दिया जाता था। सरदार पटेल भी अपने गांव के ऐसे व्यक्ति के पास पहुंचे जो फोड़ों पर गर्म सलाख लगाता था। उस व्यक्ति ने सलाख गर्म की, इतनी गर्म कि वह सलाख भी आग की तरह लाल हो गई। मगर वह व्यक्ति सरदार पटेल की कम उम्र देखकर हिचकने लगा। सरदार पटेल ने वह गर्म सलाख उस व्यक्ति के हाथ से ली और फोड़े को दाग दिया। यह दृश्य जिसने भी देखा, वह देखता ही रह गया। मगर सरदार पटेल के चेहरे पर दर्द या पीड़ा का कोई भी भाव नहीं आया।
31 अक्टूबर 1875 को जन्में सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्राथमिक शिक्षा गुजरात के करम साड एवं नाडियाद नामक स्थानों पर हुई। वह जिन शालाओं में दाखिल हुए वहां भी उन्होंने साहस के साथ अन्याय का मुकाबला किया। नाडियाद की एक शाला की घटना है। इस शाला का एक शिक्षक छात्रों को जबरन पाठ्य पुस्तकें बेचा करता था। यदि कोई छात्र उस शिक्षक से पुस्तकें नहीं खरीदता था तो छात्र को तंग किया जाता था। सरदार पटेल ने इस अन्याय का विरोध किया। उन्होंने शाला के सभी छात्रों से चर्चा की और तय किया कि इस अन्याय के विरोध में कोई भी छात्र शाला नहीं जाये। सप्ताह भर तक शाला में कोई नहीं गया। शिक्षक को अपनी गलती सुधारनी पड़ी।
अन्याय को साहस के साथ मुकाबला सरदार पटेल जीवन भर इसी सिद्धांत का पालन करते रहे। उन दिनों इस देश में आजादी नहीं थी। अंग्रेजों का शासन था। सन् 1920 से सन् 1947 तक सरदार पटेल अंग्रेजों के अन्यायी शासन से लड़ते रहे। इसके लिए उन्होंने अपनी हजारों रुपये महीने की आमदनी वाली वकालत छोड़ दी तथा अनेक बार जेल यात्राएं की। 15 अगस्त 1947 को जब भारत को आजादी मिली तो उन्होंने स्वाधीन भारत में सभी रियासतों को साहस के साथ विलीन किया। जूनागढ़ एवं हैदराबाद की रियासतें विलीन होने की विरोधी थी, मगर सरदार पटेल की साहसी कार्यवाहियों के आगे इन रियासतों को भी झुकना पड़ा। इसी प्रकार कश्मीर पर हुए पाकिस्तानी हमले को भी सरदार पटेल ने पूरी हिम्मत के साथ रोका। 15 दिसम्बर 1950 को भारत माता के इस साहसी सपूत का स्वर्गवास हो गया।