हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने वाली लोकोक्तियां

हिन्दी साहित्य में लोकोक्तियों की भरमार है। इनके माध्यम से थोड़े शब्दों में गंभीर बात कह दी जाती है। देखिए कुछ प्रमुख लोकोक्तियों की बानगी-


जादू वही जो सिर चढ़कर बोले: उपाय वही अच्छा जो कारगर हो। झटपट की घानी आधा तेल : जल्दबाजी का काम खराब होता है। झूठ कहे सो लड्डू खाय साँच कहे सो मारा जाय : आजकल झूठे का बोलबाला है। जैसी बहे बयार पीठ तब वैसी दीजै : समय देखकर रणनीति बनानी चाहिए। टके का सौदा नौ टका विदाई : साधारण वस्तु हेतु खर्च अधिक करना। टेढ़ी उंगली किए बिना घी नहीं निकलता : सीधेपन से काम नहीं चलता। टके की हांडी गयी पर कुत्ते की जात पहचानी : थोड़ा नुकसान उठाकर धोखेबाज को पहचानना। डूबते को तिनके का सहारा : संकट में थोड़ी सहायता भी लाभप्रद होती है।


ढाक के तीन पात : एक सी स्थिति में रहना। ढोल में पोल : वास्तविकता छिपाना, तीन लोक से मथुरा न्यारी : सबसे अलग विचार बनाए रखना। तू डाल-डाल मैं पात-पात : चालाक से चालाकी से पेश आना। तेल देखो तेल की धार देखो : नया अनुभव करना, धैर्य के साथ सोच-समझकर कार्य करो, परिणाम की प्रतीक्षा करो। तेली का तेल जले मशालची का दिल जले : खर्च कोई करे बुरा किसी और को ही लगे, तन पर नहीं लत्ता पान खाये अलबत्ता :

 

अभावग्रस्त होने पर भी ठाठ से रहना। तीन बुलाए तेरह आए : बिन बुलाए आना। तीन कनौजिये तेरह चूल्हे : व्यर्थ की नुक्ता-चीनी करना, ढोंग करना। थोथा चना बाजे घना : गुणहीन व्यक्ति अधिक ढींगे मारता है/आडम्बर करता है। दमड़ी की हाँडी भी ठोंक बजाकर लेते हैं: छोटी चीज को भी देखभाल कर लेते हैं। दान की बछिया के दांत नहीं गिने जाते : मुफ्त की वस्तु के गुण नहीं देखे जाते। दाल भात में मूसल चंद : किसी के कार्य में व्यर्थ में दखल देना। न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेंगी : ऐसी अनहोनी शर्त रखना जो पूरी न हो सके। नीम हकीम खतरे जान, नीम मुल्ला खतरे ईमान : अधकचरे ज्ञान वाला अनुभवहीन व्यक्ति अधिक हानिकारक होता है। नौ नगद, न तेरह  उधार : भविष्य की बड़ी आशा से तत्काल का थोड़ा लाभ अच्छा। नौ दिन चले अढ़ाई कोस : बहुत धीमी गति से कार्य का होना। पढ़े फारसी बेचे तेल, देखो यह विधना का खेल : शिक्षित होते हुए भी दुर्भाग्य  से निम्न कार्य करना। पराधीन सपनेहु सुख नाहीं : परतंत्र व्यक्ति कभी सुखी नहीं होता। प्रभुता पाय काहि मद नाहीं : अधिकार प्राप्ति पर किसे गर्व नहीं होता। पानी में रहकर मगर से बैर : शक्तिशाली आश्रयदाता से वैर करना। प्यादे से फरजी भयो टेढ़ो टेढ़ो जाय : छोटा आदमी बड़े पद पर पहुंचकर इतराकर चलता है। फटा मन और फटा दूध फिर : एक बार मतभेद होने पर पुन: नहीं मिलता। बारह बरस में घूरे के दिन भी फिरते हैं : कभी न कभी सबका भाग्योदय होता है। बद अच्छा बदनाम बुरा : कलंकित होना बुरा होने से भी बुरा है। बावन तोले पाव रत्ती : बिल्कुल ठीक। बाप न मारी मेंढकी बेटा तीरन्दाज : बहुत अधिक बातूनी या गप्पी होना। बाप भला न भैया, सबसे बड़ा रुपइया : आजकल पैसा ही सबकुछ है। बिल्ली के भाग छींका टूटना : संयोग से किसी कार्य का अच्छा होना। बैठे से बेगार भली : खाली बैठे रहने से तो किसी का कुछ काम करना अच्छा। बोया पेड़ बबूल का आम कहां से होय : बुरे कर्म कर अच्छे फल की इच्छा करना व्यर्थ है। भई गति सांप छछूंदर जैसी : दुविधा में पडऩा। भूल गये राग रंग भूल गये छकड़ी, तीन चीज याद रही नोन, तेल, लकड़ी-गृहस्थी के जंजाल में फंसना। भूखे भजन न होंय गोपाला : भूख लगने पर कुछ भी अच्छा नहीं लगता। बिच्छू का मंत्र न जाने सांप के बिल में हाथ डाले : योग्यता के अभाव में उलझनदार काम करने का बीड़ा उठा लेना। मन चंगा तो कटौती में गंगा : मन पवित्र तो घर में तीर्थ है। मन के हारे हार है मन के जीते जीत : हतोत्साहित होने पर असफलता व उत्साहपूर्वक कार्य करने से जीत होती है। यथा राजा तथा प्रजा : जैसा स्वामी वैसा सेवक। कसौटी में खरी : पूर्ण शुद्ध माल। का बरसा जब कृषि सुखानी : बे मौसम बरसात। देखन में छोटे लगैं घाव करैं गंभीर : लघु का विराट स्वरूप।